आधुनिक युद्ध तकनीक द्वारा यूक्रेन का महाविनाश —बांग्लादेश और पाकिस्तान को सबक लेने की आवश्यकता

NewsBharati    25-Feb-2025 10:00:04 AM   
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यूक्रेन पहले सोवियतरूस का हिस्सा था जो बाद में 1918 में स्वतंत्र देश बना ! दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद विश्व में शीत शुरू हो गया जिसमें विश्व के ज्यादातर देश दो हिस्सों में बट गए गए !जिसमें एक के प्रमुख अमेरिका जिसे नाटो के नाम से पुकारा गया और दूसरे का सोवियत संघ जिसे वारसा संधि के नाम से जाना गया ! नाटो देशों की कैपिटिलीस्ट तथा वारसा देशो की कम्युनिस्ट विचारधारा थी जिनकी नीतियां एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न थी ! अमेरिका के नाटो संगठन मेंअमेरिका,कनाडा तथा पश्चिमी यूरोप के देश शामिल थे ! इसी प्रकार सोवियत संघ ने नाटो तथा अमेरिका से टक्कर लेने के लिए पूर्वी यूरोपीय देशों तथा अपनी सामूहिक सुरक्षा के लिए वारसा संधि नाम का संगठन तैयार किया जो 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद समाप्त हो गया !


pakistan and bangladesh

वारसा संधि के समाप्त होने के बाद भी रूस विश्व की एक महा शक्तियों में गिना जाता हैऔर वह नाटो तथा अमेरिका का एक विरोधीके रूप में माना जाता है ! रूस का प्रभाव अभी भी पूरे पूर्वी यूरोप के देशों में है ! इस सब के बावजूद यूक्रेन जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा था वह 2014 से नाटो संगठन की सदस्यता के लिए प्रयास कर रहा है ! जिसके कारण पूरे पूर्वी यूरोप में रूस की सीमाओं पर नाटो देशों की सैनिक गतिविधि बढ़ने का पूरा अंदेशा है ! जिसे रूस अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मान रहा है ! इस सब के बावजूद 2019 में जेलेंसकी ने यूक्रेन का राष्ट्रपति पद संभालते हीऔपचारिक रूप सेनाटो की सदस्यता के लिएआवेदन कर दिया जो रूस को पसंद नहीं आया ! जब काफी समझाने के वाद भी यूक्रेन अपनी मांग पर अड़ा रहा तब 2022 में रूस ने क्रूज मिसाइलो से यूक्रेन पर हमला कर दियाऔर यह हमला इतना जबरदस्त था जिसके कारण यूक्रेन में चारों तरफ तवाही मच गई !इसके बाद यूक्रेन ने भी हमले का जवाब दिया जो इतना विनाशकारी नहीं था जितना रूस का हमला था इसके बाद दोनों देशों में घमासान युद्ध छिड़ गया जो अब तक जारी है !

आज के युग में युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा जाता है बल्कि दुश्मन सीमाओं से ज्यादा देश के आंतरिक हिस्सों पर हमला करता है ! यह तकनीक का युग हैऔर इस युग में युद्ध मिसाइलों, रोकिटो तथा हवाई हमले के द्वारा लड़ा जाता है जिनका निशाना इलेक्ट्रोनिक तकनीकों द्वारा अचूक होता है ! आंतरिक हमलों के टारगेट देश का आधारभूत ढांचा होता है इसमें यातायात के साधन,आर्थिक संसाधन तथा ऊर्जा के केंद्र तथा ऐसे स्थान जिनके द्वारा देश की जनता का मनोबल गिराया जा सके ! हमले कामुख्य उद्देश्यदुश्मन देश कोसमर्पण के लिए मजबूर करना होता है जिनके द्वारा प्रभावित देशअपनी बर्बादी को देखते हुए समर्पण कर दे !

जैसा कि सर्वविदित है यूक्रेन पहले रूस का हिस्सा था और बाद में सोवियत संघ का हिस्सा होने के कारणउसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संघ की ही थी ! इसलिए ज्यादातर सैनिक संसाधनों के लिए वह रूस पर निर्भर था ! इस कारण यूक्रेनअभी भी परमाणु हथियारऔर तरह-तरह केआधुनिक हथियारों सेउस प्रकार तैयार नहीं है जिस प्रकार रूस की सेना है ! 2022 मेंयुद्ध के शुरू होने के बाद से रूस लगातार यूक्रेन केआधार भूत ढांचे पर हमला करके उसे समर्पण के लिए तैयार करना चाह रहा है जिससे वह नाटो की अपनी ज़िद छोड़ दे ! रूस के हमलों में वहां पर पावर हाउस, बिजली के संसाधन, यातायात के साधन तथा जनता के रहने की बडी -बड़ी इमारतै धराशाई हो चुकी है ! युद्ध के करण अब तक यूक्रेन की 90%आबादी गरीबी रेखा से नीचे जा चुकी है ! युद्ध का प्रभाव पूरे विश्व के वातावरण पर भी पढ़ रहा है इससे अब तक175 मिलियन टन के बराबर कारवन डाइऑक्साइड गैस पैदा हो चुकी है और लगातार ग्रीनहाउस गैसबढ़ रही है ! वातावरण के खराब होने और जीविका के संसाधन बर्बाद होने के कारण यूक्रेन की ज्यादातर आबादी वहां से पलायन करके पड़ोसी देशों में जा चुकी है ! आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार यूक्रेन में अब तक100 बिलियन पाउंड तक का नुकसान हो चुका है !एक प्रकार से दूसरे विश्व में जो स्थिति जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की अमेरिका के परमाणु हमले के बाद हुई थी , वही स्थिति आज पूरे यूक्रेन की हो चुकी है ! युद्ध के द्वारा रूस ने यूक्रेन की 20% खेती योग जमीन पर भी कब्जा कर लिया है ! इतने विनाश के बाद भी हिटलर की तरह वहां के राष्ट्रपति जेलेंसकी किसी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है !आजकलअमेरिका वहां परशांति के लिए प्रयास कर रहा है परंतु इसमें भी जेलेंसकी कोई रुचि नहीं दिखा रहे है ! प्रकार इस प्रकारउनके इस रवैया से विश्व के नकशे से शायद यूक्रेन का नाम ही मिट जाएगा !

यूक्रेन के उपरोक्त महाविनाश को देखकर यह प्रश्न उठता है कि आखिर इस महाविनाश का कारण क्या है तो इसका उत्तर है यह केवल वहां के राष्ट्रपति के कारण ही हुआ है ! सोवियत संघ 1949 से आज तक पूरे पूर्वी यूरोपीय देशों को नाटो संगठन से बचाता आया हैऔर वह नहीं चाहता की कोई भी सोवियत संघ या पूर्वी यूरोप का देश नाटो का सदस्य बने परंतु जेलेंसकी ने यूक्रेन का राष्ट्रपति बनते ही उसी नाटो की सदस्यता के लिए प्रयास शुरू कर दिये जो रुस की इच्छा के विरुद्ध है ! इसी कारण रूस ने 2022 में यूक्रेन को सबक सिखाने के लिए उस पर हमला कर दिया ! पूरा विस्व जनता है की जेलेंसकी एक हास्य कलाकार थे जो पहले फिल्मों और नाटकों में हास्य भूमिका किया करते थे ! उन्होंने नाटो संगठन को भी एक नाटक के रूप में ही लियाऔर इसके परिणाम के बारे में नहीं विचार किया कि उनके इस निर्णय पर उस क्षेत्र की महाशक्ति रूस किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगी !यह उसी का परिणाम है कि यूक्रेन को इस महाविनाश का सामना करना पड़ रहा है ! जेलेंसकी की हट- धर्मिता का ही परिणाम है की यूक्रेन का पिछले 50 वर्षों का विकास केवल पिछले 3 साल में इस युद्ध के द्वारा तबाह हो चुका है !जिस प्रकार दूसरे विश्व युद्ध में तानाशाह हिटलर ने विश्व में महायुद्ध छेड़ दिया थाऔर इसमें यूरोपीय तथा एशिया के कुछ देशों में विनाश हुआ था अब यूक्रेन का वही हाल हो चुका है !डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने रूस यूक्रेन युद्ध समाप्ति तथा शांति के लिए रूस से शांति वार्ता शुरू कर दी है !इस बातचीत के बारे मेंराष्ट्रपति जेलेंसकी के रुख से तो यही लगता है कि वेअभी भी शांति नहीं चाहते हैं ! इसको देखते हुए जेलेंसकी ने म्यूनिच में एक सम्मेलन के दौरान कहा है कि ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद अब यूरोपअमेरिका द्वारा पहले की तरह सैनिक सहायता की आशा नहीं कर सकता ! इसको देखते हुए अब उन्होंने मांग की है कि अब यूरोप को पूरे यूरोप की लिए एक सामूहिक सेना का गठन करना चाहिए जिससे रूस की तरह जब भी कोई बाहरी देश किसी देश परहमला करें तो उसका सामना यह सेना कर सके ! जेलेंसकी फिल्मी कल्पनाओं के द्वारा ही इस विचार के द्वारा पूरे यूरोपीय देशों को दूसरे विश्व युद्ध की तरह युद्ध में झोंकना चाह रहे हैं जो एक प्रकार से तीसरा विश्व युद्ध ही होगा !
आज का युग सूचना का युग है जिसमें विश्व के हर कोने की सूचना पूरे विश्व में शीघ्रता से फैल जाती है !इसके कारण यूक्रेन के महाविनाश तथा उसके जिम्मेदार के बारे में भी पूरे विश्व को विस्तार से जानकारी मिल चुकी है ! फिर भी भारत के पड़ोसी बांग्लादेश यूक्रेन जैसी हरकत भारत के विरुद्ध पिछले कुछ समय से कर रहा है !इतिहास गवाह है1970-71में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने तरह-तरह के अत्याचार किए थे !1970 के आम चुनावों में शेख मुजीब रहमान की पार्टीअवामी- लीग बहुमत से चुनाव जीती थी !

बहुमत के अनुसार शेख मुजीबुर रहमान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था ! परंतु पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल याययां खान को यह पसंद नहीं था की कोई बंगाली पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने ! इसी कारण उन्होंने शेख मुजीबुर रहमान को प्रधानमंत्री बनाने से मना कर दिया ! जिसको देखते हुए पूरे पूर्वी -पाकिस्तान में इसके खिलाफ आवाज उठने लगी और इसने एक बड़े विद्रोह का रूप धारण कर लिया ! इसको दबाने के लिए यायान्ह खान ने पाकिस्तान की सेना को आदेश दिया कि वह बल पूर्वक पूर्वी पाकिस्तान की जनता को दबाकर चुप करें ! इसके द्वारा सेना ने वहां पर तरह-तरह के अत्याचार करने शुरू कर दिए ! जिनके द्वारा तीन लाख बांग्लादेशी स्त्रियों का बलात्कार किया और वहां केआवाज उठाने वालों को या तो समाप्त कर दिया या उन्हें जेल में डाल दिया ! इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान को भय औरआतंक का केंद्र बना दिया ! जिसको देखते हुए पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ शरणार्थी शरण के लिए भारत में प्रवेश कर गए जिनका पूरा रहन-सहन और खाने पीने की व्यवस्था भारत सरकार को उठानी पड़ रही थी ! पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहनी नाम का संगठन गठित हुआ जिसने पाकिस्तान की सेना पर हमले शुरू करने शुरू कर दिये ! इसका पूरा आरोप वहां की सेना ने भारतवर्ष पर डाला और3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत के 6 सैनिक हवाई अड्डों पर हमला कर दिया ! जिसके जवाब में भारतीय सेना ने भी पाकिस्तान की सेना पर हर मोर्चे पर जवाबी हमला किया ! इस प्रकार1971 का युद्ध शुरू हो गया ! इस युद्ध में भारत के 7000 सैनिकों नेअपना बलिदान दिया तथा भारतीय अर्थ- व्यवस्था का एक पंचवर्षीय योजना का धन इस युद्ध में लग गया !

पिछले युद्धओ की तरह इस बार भी पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना के सामने नहीं टिक पाई औरआखिर में16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना नेभारतीय सेना के सामने आत्म समर्पण कर दिया ! इसके बाद 16 दिसंबर को ही ढाका में बांग्लादेश के स्वतंत्रता घोषणाकर दी गई ! इस प्रकार केवल भारत के बलिदानों और प्रयासों के कारण ही बांग्लादेश पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होकर एक स्वतंत्र देश बन सका !परंतु पिछले कुछ समय से बांग्लादेश ने भारत के बलिदानों कोभुला दिया है और वहां पर भारत के विरुद्ध तरह की हरकतें की जा रही है ! यह सब वही पाकिस्तान करवा रहा है जिसने 1970 में बांग्लादेश की जनता पर इतने जुल्म ढाए थे ! परंतु आज का बांग्लादेश उन सब को भूलकर दोबारा पाकिस्तान के चंगुल में जाने की कोशिश कर रहा है ! जैसा कि सर्व- विदित है पाकिस्तान अब तक भारत से चार युद्ध हार चुका है ! इसलिए उसने यह सोचा है कि अब वह भारत से सीधा युद्ध नहीं जीत सकता इसलिए उसने परोक्ष युद्ध के रूप मेंबांग्लादेश में पिछले कुछ सालों सेभारत के विरुद्ध माहौल बनाना शुरू कर दिया !और आखिर मेंअगस्त 2024 में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाकरउन्हें भारत में शरण लेने के लिएमजबूर कर दिया ! अब बांग्लादेश के कुछ विद्यार्थी कहे जाने वाले वहां पर रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों पर तरह-तरह के अत्याचार कर रहे हैं ! इसके बादअब बांग्लादेश यूक्रेन की तरह ही इस क्षेत्र में सार्क सम्मेलन को दोबारा से जीवित करने की मांग कर रहा है ! जिससे उसमें भारत पर दबाव बनाने के लिए कोशिश की जा सके !

पाकिस्तान और बांग्लादेश को यह नहीं भूलना चाहिए कि अब भारत विश्व की आर्थिक और सैनिक महाशक्ति बन चुका है जिसकोअमेरिका के राष्ट्रपतिडोनाल्ड ट्रंप ने भी कबूल किया है ! इसलिए इन दोनों कोअब भारत के विरुद्ध कोई भी गलत हरकत करने से पहले सोचना चाहिए कि उनका भी यूक्रेन की तरह ही परिणाम होगा ! जो पाकिस्तानभुखमरी और तरह-तरह की गरीबी से जूझ रहा है वह भारत से दोबारा युद्ध करके हो सकता है दुनिया के नक्से से ही मिट जाए ! इसी प्रकार जो बांग्लादेशभारत की आर्थिक मदद के कारण प्रगतिशील देश की श्रेणी में आ चुका था अब वह धीरे-धीरे वह गरीबों की ओर बढ़ने लगा है ! यह सब उसकी भारत विरोधी हरकतों का ही परिणाम है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.