साधारणतया आज के युग में तपस्या के बारे में यही विचार है कि परिवार और संसार को त्याग कर तपस्वी जंगलों में जाकर स्वयं को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित कर देता है ! परंतु गीता में भगवान ने तपस्या के प्रकारआज के युग के अनुसार इस प्रकार बताए हैं जिनके द्वारा अनुसार एक सामान्य व्यक्ति भी संसार में रहते हुए तपस्या कर सकता है ! इस तपस्या के तीन प्रकार हैं ! परमेश्वर, ब्राह्मण, गुरु, माता-पिता और गुरुजनों का आदर और उनकी सेवा, सच्चे मृदु भाषी तथा अन्य का हित करने वाले और सुनने वालों को मानसिक कष्ट न पहुंचना बोलने की की तपस्या है ! इसी क्रम में मन पर नियंत्रण करते हुए संतोष, सरलता, गंभीरता, आत्म संयम एवं शुद्ध जीवन प्रणाली मन की तपस्या कहलाती है !
भौतिक लाभ की इच्छा न करने वाले तथा केवल परमेश्वर में प्रवत श्रद्धा से संपन्न यह तीन प्रकार की तपस्या सात्विक तपस्या कहलाती हैं ! जो तपस्या दंम्वपूर्वक तथा सम्मान सत्कार एवं लाभ पाने के लिए संपन्न की जाती है वह रजोगुणी कहलाती है और यह स्थाई नहींहोती है ! मूर्खता-बस आत्म उत्पीड़न के लिए या अन्य को विनष्ट करने या हानि पहुंचाने के लिए जो तपस्या की जाती है वह तामसी कहलाती है ! परंतु आज के युग में स्वयं को अच्छा दिखाने के लिए घमंड के साथ लोग दान और ईश्वर का नाम जप करते हैं ! तथा इच्छापूर्ति के लिए पशुओं की बलि चढ़ाना तथा स्वयं के शरीर को विभिन्न प्रकार के कष्ट जैसे भोजन, निद्रा इत्यादि का त्याग करना तामसी तपस्या कहलाती है !जैसे रावणने अपने शीश काटकर भगवान शिव को समर्पित किए यह एक तामसिक तपस्या का उदाहरण है !
हर जीव ईश्वर अंश है तथा प्रत्येक जीव के हृदय में परमेश्वर स्वयं रहते हैंजो हर समय जीव की हर हरकत और उसकी धरना पर नजर रखते हैं ! लोग दंम्व तथा अहंकार से प्रभावित होकर शास्त्र विरुद्ध कठोर तपस्या व्रत करते हैंऔर काम तथा आसक्ति द्वारा प्रेरित होते हैं ! ऐसे लोग शरीर के भौतिक तत्वों को तथा शरीर के अंदर स्थित परमात्मा को कष्ट पहुंच!ते हैं ! इसके बारे में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है की भोजन का त्याग या शरीर की अन्य आवश्यकताओं का त्याग तामसी तपस्या के उदाहरण है ! इसलिए मनुष्य कोअपने शरीर कीआवश्यकताओं की उचित प्रकार से पूर्ति करते हुएअपना निमित्त जीवन जीना चाहिए ! इस प्रकार से कहा जा सकता है कि केवल सात्विक तपस्या के द्वारा ही ईश्वर प्राप्ति संभव है !
संसार में 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य योनि को ही विवेक प्राप्त है तथा जीव को मनुष्य योनि इसी उद्देश्य से प्राप्त होती है कि वह अपने विवेक के द्वारा मुक्ति का प्रयास कर सके, और अंत में उसे मोक्ष प्राप्त हो सके ! परंतु विवेक के होते हुए भीअपनी इंद्रियों की तृप्ति के लिए ज्यादातर मनुष्य राजशी या तामसी तपस्या में लीन रहते हैं ! इसका परिणाम होता है कि अंत में उनके द्वारा किए हुए कार्यों की यादें उनकोआती है ! क्योंकि ईश्वर हर समय जीव के साथ रहते हैं और वह जीव को उसकी यादों के अनुसारअगला जन्म या मोक्ष उपलब्ध कराते हैं ! इसलिए हर मनुष्य कोअपने विवेक के द्वारा सात्विक तपस्या करते हुए मोक्ष का प्रयास करना चाहिए जो मनुष्य योनि का परम उद्देश्य है !