60 और 70 के दशक में जब मध्य प्रदेश के चंबल घाटी में डाकू समस्या चरम पर थी उस समय बहुत से कुख्यात डाकूओ ने यह स्वीकार किया था कि उन्हें डकैत बनाने में उनके साथ होनेवाला अन्याय बहुत बड़ा जिम्मेवार है ! भिंड मोरेना का पूरा क्षेत्र पिछड़ा हुआ था जहां पर सामंत शाही चल रही थी और यह सामंत जनता के साथ अन्याय करते थे जिस से विद्रोह स्वरूप कुछ दुखी चंबल में पहुंचकर डकैत बन जाते थे ! आजकल इसी प्रकार की कहानी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में देखने को मिल रही है जिसमें 24 फरवरी को राजू पाल हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी गवाह उमेश पाल की अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा सरेआम दिन में हत्या की गई ! इसके बाद इस हत्या की पूरी कहानी प्रिंट मीडिया और टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही है और इससे यह चैनल अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं ! दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो रहा है परंतु किसी मीडिया ने कहीं पर यह नहीं दिखाया की उमेश पाल जिस राजू पाल हत्याकांड में गवाह थे वह हत्या 18 साल पहले जनवरी 2005 में की गई थी और राजू पाल बहुजन समाज पार्टी से लोकसभा के सदस्य थे !
फिर भी इस स्तर के व्यक्ति की हत्या का मुकदमा अभी तक जिला अदालत में केवल प्रारंभिक स्तर तक ही पहुंचा है और प्रत्यक्षदर्शी गवाह उमेश पाल को 18 साल बाद भी अभी तक गवाही देने का मौका नहीं मिल पाया है ! यदि उमेश पाल की गवाही हो गई होती तो अब तक इसमें शामिल हत्यारों को कड़ी सजा मिल गई होती ! इसी क्रम में जमीन के बदले नौकरी देने के मामले में लालू यादव और उनके परिवार तक जांच एजेंसियां पूरे 19 साल बाद पहुंची है जबकि यह कारनामा लालूजी ने 2004 में किया था जब वह रेल मंत्री थे ! 1984 में दिल्ली में दंगे हुए जिनमें 2500 सिखों की निर्मम हत्या की गई ! परंतु इस सबके बावजूद अभी तक पूरे 40 साल बाद भी इन दंगों की जांच प्रारंभिक स्तर पर ही है और इन दंगों में शामिल अपराधियों को अदालतों द्वारा कोई सजा नहीं दी गई है ! देश के भूत पूर्व रेल मंत्री एलएन मिश्रा की 1975 में एक षड्यंत्र जिसमे बम विस्फोट द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी इस मामले में भी पूरे 39 साल बाद 2014 में न्याय हो सका और अपराधियों को सजा दी गई ! इसी प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जिनमें विभिन्न कारणों से 4 करोड़ मुकदमे देश की अदालतों में लंबित है और इनमें करीब 100000 केस केस निचली अदालतों में 30 सालों से ज्यादा फैसले का इंतजार कर रहे हैं ! आंकड़ों के अनुसार इनमें से ज्यादातर केस उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल और महाराष्ट्र राज्यों से हैं जो राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय राज्य हैं !
ऊपर जिन राज्यों में ज्यादा आपराधिक मामले लंबित हैं वह दर्शाते हैं कि इन राज्यों में न्याय व्यवस्था की स्थिति कितनी सोचनीय है इसलिए इन प्रदेशों में व्यवस्था से विद्रोह के रूप में यहां के निवासी निराश होकर अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं ! न्याय व्यवस्था की इस स्थिति ने उत्तर प्रदेश बिहार और महाराष्ट्र में तरह-तरह के माफियाओं और अपराधियों को बढ़ावा दीया क्योंकि इन माफियाओं के यहां के राजनीतिक दलों से संबंध होने के कारण इनके विरोध पुलिस कोई ठोस कार्यवाही नहीं करती थी इससे यह दिन रात मजबूत होते चले गए !कानून व्यवस्था की स्थिति के कारण इन राज्यों का विकास ठप सा हो गया और यहां के नौजवान रोजगार के लिए देश के महानगरों की तरफ रुख करने लगे ! किसी भी देश की न्याय व्यवस्था के दो प्रमुख अंग होते हैं जिसमें अदालतें जिसमें जज और इनमें काम करने वाले कर्मचारी होते हैं और इसका दूसरा आवश्यक अंग है शासन तंत्र जो पुलिस व्यवस्था और जेलों को संचालित करती है !
परंतु इन दोनों की अव्यवस्था का हाल देश का मीडिया रोजाना दिखा रहा है कि किस प्रकार अक्सर देश की पुलिस और जेलों का दुरुपयोग राजनीतिक संबंधों और वोट बैंक के द्वारा बड़े-बड़े अपराधी और माफिया कर रहे हैं ! यह अपराधी अब जेल को एक सुरक्षित स्थान के रूप में इस्तेमाल करके वहां से अपने अपराध के कारोबार को नियंत्रित करते हैं अतीक अहमद जेल में दरबार लगाता है जिसमें वह अपने साथियों को तरह-तरह के निर्देश देता है ! सूत्रों के अनुसार अतीक के भाई अशरफ ने बरेली जेल के गोदाम में बैठकर ही उमेश पाल की हत्या साजिश अपने 8 सहयोग के साथ रची थी और यह सहयोगी आराम से उसके पास जेल में पहुंचे और यहां पर इन्होंने लंबी मंत्रणा की ! इस प्रकार जेलों के बारे में देखकर यह प्रतीत होता है कि देश की दंड प्रक्रिया का जरूरी अंग होते हुए भी ये अपने उद्देश में विफल होती नजर आ रही हैं ! अपराधियों को अब जेलों में कोई डर ही नहीं लगता और वह आराम से वहां पर ऐसो आराम से रहते हैं और मोबाइल टेलीफोन के द्वारा अपने अपराधिक धंधों को नियंत्रित करते हैं !
कानून की दृष्टि से देश का हर नागरिक एक प्रकार से सरकार की संपत्ति के रूप में माना जाता है इसलिए जब भी किसी भी नागरिक के साथ कोई अपराधिक घटना घटती है तो अदालत में पीड़ित का पक्ष प्रस्तुत करने की जिम्मेवारी सरकार की होती है और इस जिम्मेदारी को राज्य पुलिस निभाती है ! इसमें पुलिस अपराध करने वाले अपराधी को पकड़ कर अदालत में पेश करती है तथा उसके विरुद्ध अपराध से संबंधित सबूत अदालत के सामने प्रस्तुत करके अपराधी को सजा दिलवाती है ! परंतु पुलिस एक्ट 1861 के अनुसार पुलिस पर पूरा नियंत्रण शासन तंत्र का होता है जिसे सत्तारूढ़ राजनीतिक दल नियंत्रित करते हैं !
यह दल अपने राजनीतिक उद्देश्यों और वोट बैंक के लिए पुलिस को अपने इशारों पर नचा कर इनसे संबंध रखने वाले अपराधियों के मुकदमों में इनकी पूरी मदद करने के लिए कहते हैं जिसके कारण पुलिस अफसर साक्ष्यों को अदालतों में या तो पेश नहीं करती या काफी लंबे समय के बाद पेश करती है जैसा कि एलएन मिश्रा तथा दिल्ली दंगों के मुकदमों में देखने में आया जिसके कारण अक्सर ऐसे मुकदमों में काफी लंबे समय के बाद में न्याय आता है और यह न्याय भी साक्ष्यों के अभाव में पीड़ित को उचित न्याय नहीं देता है !इसी प्रकार की देरी और जेलो तथा पुलिस द्वारा अपनी नियत जिम्मेदारी को नहीं निभाने के कारण ही प्रयागराज में उमेश पाल की इतनी योजनाबद्ध तरीके से हत्या हो सकी !
अभी कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए इन्वेस्टर सम्मिट का आयोजन किया गया इस समय का मुख्य उद्देश्य था इन्वेस्टरो को प्रदेश में उपलब्ध संसाधनों और यहां की कानून व्यवस्था के बारे में विश्वास दिलाना ! अभी तक यहां पर कम निवेश और पिछड़ेपन का मुख्य कारण यहां की कानून तथा न्याय व्यवस्था को ही ठहराया जाता था जिसके कारण मध्य तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश माफिया के चंगुल में फंस गया जिनमें कानपुर के विकास दुबे रिजवान सोलंकी इलाहाबाद के अतीक अहमद आजमगढ़ और गाजीपुर पुरके मुसताक अंसारी आदि प्रमुख माफिया हैं ! इनके विरुद्ध अब उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़े स्तर पर अभियान छेड़ा है और इनको इनकी असली जगह जेलो में पहुंचाया गया है !
इसके साथ साथ इनके द्वारा अर्जित अवैध संपत्तियों को बुलडोजर के द्वारा गिरा कर जनता को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि कानून के हाथ बहुत लंबे हैं और इससे इन्वेंटरों को भी भरोसा दिलाया जा रहा है यहां की कानून व्यवस्था अब पंगु नहीं है और वह मजबूत है ! हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार माफिया और अपराध के विरुद्ध काफी सख़्ती दिखा रही है परंतु फिर भी आवश्यकता है की न्याय प्रणाली और पुलिस व्यवस्था में ऐसे बदलाव किए जाएं जिनके द्वारा एक आम नागरिक को स्वयं ही अदालतों से उचित न्याय उपलब्ध हो सके ! पुलिस व्यवस्था को समय अनुसार जनता के प्रति उत्तरदाई बनाने के लिए पुलिस कानून 1861 मैं मैं बदलाव और पुलिस सुधार के आदेश उच्चतम न्यायालय ने 2006 में ही दे दिए हैं जिनको अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है ! इसलिएअभी शीघ्र अति शीघ्र पुलिस सुधारों को देश में लागू किया जाना चाहिए जिससे पुलिस व्यवस्था राजनीतिज्ञों के नियंत्रण से बाहर निकल कर स्वतंत्र रूप देश में कानून का राज लागू कर सकें !
मीडिया में तथा बुद्धिजीवियों द्वारा देश की न्याय व्यवस्था पर उठाए गए सवालों का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय सरकार के गृह मंत्रालय ने न्याय के लिए प्रयोग किए जाने वाली कानूनी प्रणाली आईपीसी, सीआरपीसी तथा भारतीय साक्ष्य कानूनों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है ! इसके लिए गृह मंत्रालय ने देश की जनता और न्याय विदो से सुझाव मांगे हैं ! केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार ने लोकसभा को सूचित किया है कि अपराधिक कानूनों में सुधार के लिए सुझाव देने के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के उप कुलपति की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है ! उन्होंने और बताया कि गृह मंत्रालय मामलों से संबंधित संसद की स्थाई समिति ने अपनी 140वी रिपोर्ट में इसकी जरूरत बताई थी और उन्होंने विस्तार से बताया कि कानून के अधिनियम में टुकड़े-टुकड़े संशोधन करने की बजाय पूरी व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है ! जिसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी को युक्तिसंगत इस प्रकार बनाया जाना चाहिए जिससे कोई इनका दुरुपयोग ना करके न्याय में देरी करके व्यवस्था के प्रति देशवासियों में अविश्वास पैदा कर सके !
चाणक्य ने शासन को अच्छा और मजबूत बनाने के लिए त्वरित और ईमानदार न्याय व्यवस्था को बहुत जरूरी माना है ! इसलिए देश में शीघ्र अति शीघ्र पूरी न्याय प्रणाली को आज के समय के अनुसार बदलना और इसमें सुधार करना जरूरी हो गया है !