मृत्यु ईश्वर की देन है ! जब हमारे निकटतम रिश्तेदार या मित्र कोई भी हमें दुखों से नहीं बचा पाता तब वही हमें सांसारिक दुखों से मुक्त करती है !मृत्यु में जिसे दुख कहा जाता है वह वास्तव में पूरे जीवन का एकत्रित दुख है जो मनुष्य की जीवन शैली द्वारा एकत्रित होते हैं ! मुख्यतः मृत्यु के समय चार प्रकार के दुख प्रमुख हैं !यह है शरीर वेदनातमक, पापस्मरणतक, इंद्रियों में लिप्त होने की कामना और आखिर मेंअगले जन्म के बारे में चिंता की अगले जन्म मेंक्या होगा ! भगवान ने अर्जुन के मोह को दूर करने के लिए बताया था कि संसार में हर प्राणी की मृत्यु एक अटल सत्य है तो फिर इसके प्रति इतना भय क्यों !
इतना जानने के बाद मनुष्य इस भय का निराकरण भीअपने विवेक द्वारा कर सकता है !मृत्यु जीवन का अंतिम पड़ाव हैजिस प्रकार सोने से शरीर को आराम मिलता है परंतु प्राण को आराम मृत्यु के बाद की महानिद्रा से ही मिलता हैजिसे परम शांति भी कहा जाता है !मृत्यु के समय केदुखों पर विजय प्राप्त करने के लिए मनुष्य को जीवन मेंसंयम की आवश्यकता है इसके लिए सनातन धर्म में जीवन में वर्ण आश्रम कीव्यवस्था की गई है !जिसमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, बानप्रस्थ तथा सन्यासआश्रम प्रमुख है ! इस व्यवस्था से मनुष्यअपने नियत कर्मों को करते हुए धीरे-धीरे मोह माया सेअलग होता हुआ आखिर में सम स्थिति में पहुंच जाता है ! यह एक अटल सत्य है की मृत्यु के समय मनुष्य को उसके पाप कर्मो स्मरण होने लगता है ! इतना जानने के बाद मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन में पाप कर्मों से दूरी बनाए !
सम स्थिति मेंपहुंचने के लिए महर्षि पतंजलि के द्वारा बताया गया यम और नियम का मार्ग सर्वश्रेष्ठ माना गया है !इसमें ब्रह्मचर्य,अहिंसा,सत्य, अपरिग्रह ,तथाअसते ,यम हैं तथा स्वाध्याय, तप सौच संतोष और ईश्वर प्रणिधान नियम के अंतर्गत आतेहैं ! इसके बादउसे धीरे-धीरेईश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा पैदा करने का प्रयास करना चाहिए !इस प्रकार वह इंद्रियों पर नियंत्रित करता हुआ मोह माया से दूर होकरअपनी आत्मा के साथ रहने लगता हैजिसे आत्म साक्षात्कार कहा जाता है ! यह ऐसी स्थिति है जब वहअपनी स्वयं की आत्मा से पहचान स्थापित कर लेता हैऔर जान जाता है किवह शरीर नहीं केवल आत्मा है ! और मृत्यु केवल शरीर की होती हैऔर आत्मा तो अजर अमरहै !
रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार मृत्यु का मिटाने के लिए मनुष्य को मृत्यु से पहले हीअपनी मृत्यु कर लेनी चाहिए इसका तात्पर्य है कि उसे सांसारिक मोह और बंधनों से मुक्त करके केवल अपनी आत्मा के साथ रहना चाहिए ! इस प्रकार उसका मृत्यु के बाद का अंजाना भय समाप्त हो जाएगा बल्कि वह मृत्यु को एक नई यात्रा के रूप मेंदेखने लगेगा !और जबउसकी ईश्वर में पूरी श्रद्धा है तो उसे विश्वास रहेगा कि ईश्वर उसे मोक्ष ही प्रदान करेंगे !
इस प्रकार मनुष्य का मृत्यु का भयसमाप्त हो जाएगाऔर वह इसको भी एक नई यात्रा के रूप में लेगा !