गुलामी की सोच से कब आजाद होगा भारत

20 Aug 2022 13:02:08
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव भाषण में लाल किले की प्राचीर से देश को पांच प्रण लेने के लिए आवाहन किया है इसमें दूसरा प्रण है दासता से मुक्ति ! 1947 में देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिल गई थी परंतु देश में सामंती व्यवस्था के जीवित रहने के कारण अभी तक देश के बहुत से हिस्से दासता से बुरी तरह ग्रसित है ! प्रधानमंत्री ने खासकर अपने भाषण में कहां है कि हम अपने मन के भीतर आदतों मे गुलामी का कोई अंश बचने ना दें क्योंकि किसी भी वस्तु की प्राप्ति मन के द्वारा ही होती है , यदि मन के अंदर दासता की भावना शेष रह जाती है तो वह हमारी कार्यप्रणाली में भी झलकती है ! इसी दासता की सोच के कारण देश में चारों तरफ भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का माहौल है ! क्योंकि दास और पशु दोनों एक समान होते हैं, यह दोनों केवल स्वयं के स्वार्थ और भय की भाषा ही समझते हैं ! दासता की सोच के कारण अक्सर हमारे देशवासी बुरा देखते हुए भी धृतराष्ट्र की तरह अंधे बने रहते हैं ! समाज शास्त्रियों के अनुसार देश में व्याप्त सामाजिक बुराइयों का मुख्य कारण यही दास्तां की सोच है ! स्वार्थ के वशीभूत होकर देशवासी बुरा देख कर भी उसके विरुद्ध आवाज नहीं उठाते हैं अक्सर स्वार्थ चापलूसी निंदा चुगली और गलत भाषा के प्रयोग से भी यह नहीं चूकते हैं ! इसी कारण देश में पश्चिमी देशों और अमेरिका की तरह अभी तक पूर्ण स्वाधीनता नहीं आई है !
 
When will India be free from the thought of slavery PM Modi

दासता की सोच का सबसे उदाहरण है अभी भी हमारे देश में सत्ता एक पारिवारिक व्यवस्था बन गई है, जिस प्रकार राजाशाही में राजा का पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता है उसी प्रकार ज्यादातर देश की सत्ता अपने परिवार को ही सौंपी जाती है ! जैसा कि देश के बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश बिहार पंजाब इत्यादि में देखने में आता है केवल दासता की भावना से ही देश के लोग इन परिवार के उत्तराधिकारीयों को अपना नेता मानने लगते हैं और उन्हें गद्दी सौंपने में गौर आनंद महसूस करते हैं ! दासता की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र संघ की बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि गुलामी अभी भी आधुनिक रूप में विश्व भर में जारी है और खासकर उन देशों में जहां पर पहले विदेशी शासन था ! संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विदेशी शासन में रहे देशों में अनुवांशिक प्रभाव के कारण अभी तक दासता की भावना जीवित है जिसके कारण मनुष्य स्वयं को शक्ति और व्यवस्था के सामने समर्पित करके दासता को स्वीकार कर लेता है ! भारत में 11 वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक विदेशी शासन था जिसमें देशवासियों को कोई अधिकार नहीं थे इसलिए इस लंबी गुलामी के कारण हमारे देश में भी गुलामी की जड़े अभी तक देशवासओ के अंदर जीवित है और खासकर यह देश के पिछड़े राज्यों बिहार उड़ीसा पूर्वी यूपी में और भी भयावह रूप में मौजूद है !

अमेरिका में 1787 की क्रांति के बाद प्रजातंत्र स्थापित हुआ इसी प्रकार इंग्लैंड में 1832 में पार्लियामेंट्री प्रजातंत्र की स्थापना हुई और इन दोनों देशों में प्रजातंत्र की स्थापना के बाद से आज तक सस्ता का हंस हस्तांतरण परिवारों में नहीं हुआ है ! तात्पर्य कि अमेरिका में केवल एक अपवाद के अलावा जिसमें उस परिवार के दो व्यक्ति वहां के राष्ट्रपति रह चुके हैं इसके अलावा अभी तक पिछले करीब 400 वर्षों में कभी भी राष्ट्रपति पद पर किसी भी परिवार का व्यक्ति दोबारा नहीं बैठा है ! इसी प्रकार इंग्लैंड में भी 1832 के बाद से आज तक वहां के प्रधानमंत्री पद पर कोई परिवारवाद नहीं देखा गया है ! इसी प्रकार इन देशों में अन्य संस्थाओं में भी परिवारवाद के लिए कोई स्थान नहीं है जबकि लंबी दास्तां भुगतने वाले देशों जैसे भारत पाकिस्तान और अरब देशों में जहां पर विदेशी शासन या अन्य पवारवादी शासन रहा है वहां पर दासता की भावना के कारण अभी भी परिवारवाद के द्वारा ही अक्सर सत्ता का हस्तांतरण होता है ! क्या भारत और अन्य गुलाम रहे देशों में यह सोचा जा सकता है कि एक भूतपूर्व राष्ट्रपति के घर पर इंटेलिजेंस एजेंसियों का छापा पड़ सकता है परंतु अमेरिका में अभी कुछ दिन पहले तक राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप के घर में वहां की इंटेलिजेंस एजेंसियों ने गोपनीय दस्तावेजों के लिए उनके यहां छापा डाला ! यह केवल इसलिए हो पाया कि वहां का हर व्यक्ति स्वयं को स्वतंत्र और देश के प्रति समर्पित मानता है ! इसलिए देश के हित में वह ऊंच-नीच का भेद नहीं करते हैं और कानून के अनुसार शासन को चलाते हैं !

परंतु हमारे देश में अक्सर सत्ता प्राप्ति के बाद राजेशाही की भावना जागृत हो जाती है जिसके कारण सत्ता में स्थापित व्यक्ति तरह तरह के भ्रष्टाचार ओं और अपने माफिया और बाहुबलियों के द्वारा आतंक फैलाकर जनता को आतंकित करते हैं ! इसके उदाहरण देश के अनेक राज्यों में अक्सर दिखाई देते है ! राजनेता अक्सर जनता के धन को अपने स्वार्थ पर खर्च कर देते हैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी कुछ दिन पहले श्रीलंका में देखने में आया जहां पर वहां के राष्ट्रपति ने चीन से ऋण लेकर उसे अपने गृह क्षेत्र में अलाभकारी योजनाओं पर ख़र्च कर दिया जिसके कारण श्रीलंका जैसे छोटे देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई और वहां पर ग्रह युद्ध की स्थिति बन गई ! हमारे देश में भी इन राजनेताओं ने जनता के धन को अपनी व्यक्तिगत प्रयोग के साधनों पर ख़र्च किया है जिसका जनता से कोई लेना देना नहीं है ! तात्पर्य इससे केवल इन राजनेताओं के व्यक्तिगत लाभ के अलावा प्रदेश या जनता को कोई भी फायदा नहीं हो रहा है ! परंतु देश की जनता इस सबको दासता की भावना के कारण चुपचाप देख रही है !

हमारे देश में दासता की भावना को जीवित रखने में देश की शासन व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ है ! 1947 में आजादी के समय सरदार पटेल ने अंग्रेजो के द्वारा लागू सिविल सर्विस एक्ट और पुलिस एक्ट जिनका पूरी तरह से औपनिवेशिक स्वरूप है उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर लिया था सिविल सर्विस एक्ट के द्वारा देश की नौकरशाही और पुलिस एक्ट के द्वारा पुलिस नियंत्रित होती है ! इन दोनों एक्टो की मुख्य भावना अपने मालिक के प्रति वफादारी है, इसीलिए अक्सर देश के सत्ताधारी स्वयं को देश का राजा समझने लगते हैं ! जबकि स्वतंत्रता के बाद में इन दोनों कानूनों को इस प्रकार परिवर्तित किया जाना चाहिए था कि इनका मुख्य स्वरूप देश की जनता के प्रति जवाबदारी हो ना की केबल अपने राजा के प्रति ! सरदार पटेल ने इन्हें यह समझकर स्वीकार कर लिया कि जब अंग्रेज इन एक्टो के द्वारा आसानी से राज चला सके तो यह स्वतंत्र भारत में भी उपयोगी होंगे परंतु ऐसा नहीं हुआ ! इन दोनों कानूनों के विरुद्ध देश में अक्सर आवाज उठती रहती है परंतु देश की सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं देती हैं ! क्योंकि पुराने कानून देश के सत्ता धारियों को को हर प्रकार की सहायता देते हैं इसलिए देश की सरकार है इन कानूनों को नहीं बदल रही है !

जबकि 2007 में देश की उच्चतम न्यायालय ने देश में लागू पुलिस एक्ट को बदलने के लिए आदेश जारी किए परंतु अभी तक दासता को परोक्ष रूप से जारी रखने के लिए देश की राज्य सरकारों ने इन सुधारों को राज्यों में पूरी तरह लागू नहीं किया है हां केवल दिखावे के लिए छोटे-मोटे सुधार किए हैं, जिनसे देश की जनता को ज्यादा लाभ नहीं होता है ! शासन व्यवस्था की मुख्य धुरी भारतीय प्रशासनिक सेवा केअधिकारियों को और ज्यादा अभय दान देने के लिए देश के संविधान में ऐसा प्रावधान किया गया है जिसके द्वारा एक आईएएस अधिकारी के विरुद्ध उसके भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के लिए कानूनी कार्रवाई आसानी से नहीं की जा सकती है ! इस संवैधानिक प्रावधान के अनुसार एक आईएएस अधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने के लिए देश की संबंधित सरकार जैसे प्रदेश या केंद्र सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है और अक्सर सरकार अनुमति नहीं देती या देती है तो इस प्रक्रिया में 5 से 10 साल लग जाते हैं ! जिसमें अक्सर इनके विरुद्ध साक्ष्य खो जाते हैं या इतने समय में यह साक्ष्य को स्वयं समाप्त कर देते हैं ! इसलिए इस सेवा के अधिकतर अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं जिसका सबूत देश की गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं ! इसके कारण शासन तंत्र को चलाने वाले प्रशासनिक सेवा के अधिकारी स्वयं को सामंत समझकर अपने क्षेत्र की जनता को अपने गुलाम की तरह समझते हैं जिसके कारण भी देश में गुलामी की सोच अभी तक जिंदा है !

इसलिए देश में दासता के आधारभूत ढांचे को नष्ट करने के लिए सबसे पहले सत्ता में इसकी जड़ों को समाप्त करना होगा ! इसके लिए देश के शासन तंत्र को नियंत्रित करने वाले सिविल सर्विस एक्ट और पुलिस एक्ट को इस प्रकार बनाना होगा जिसमें देश की नौकरशाही और पुलिस व्यवस्था स्वयं को देश की जनता के प्रति जवाबदार समझे ! इसके अतिरिक्त इन सेवाओं में नियुक्ति के लिए चुनाव प्रक्रिया इस प्रकार बनाई जानी चाहिए जिससे एक समर्पित व्यक्ति ही देश में प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में नियुक्त हो सके, जैसा कि देश की सेनाओं में किया जाता है !

 भारतीय सेना में एक अधिकारी का चुनाव करने के लिए उम्मीद वार कोउसे सर्विस सिलेक्शन बोर्ड के सामने उपस्थित होना होता है ! इसमें पूरे 5 दिन तक उसे सिलेक्शन बोर्ड के पास ही रखा जाता है जिसके दौरान उसकी मनोवैज्ञानिक सोच और उसके व्यक्तित्व का पूरा अध्ययन किया जाता है ! जिसके बाद ही उसे सेना में अधिकारी के रूप में भर्ती दी जाती है ! यह प्रक्रिया द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मन सेना में प्रचलित थी और जर्मन सेना में समर्पित अधिकारियों को देखने के बाद में विश्व के ज्यादातर देशों ने इसे अपना लिया है ! इसलिए इसी प्रकार की प्रक्रिया देश के सिविल अधिकारियों को चयनित करने वाली संस्था यूपीएससी को भी अपनानी चाहिए जिससे एक भ्रष्ट और अविकसित मानसिकता का व्यक्ति इन सेवाओं में प्रवेश ना कर सके !

इसके अतिरिक्त सरकारों को माफियाओं और अंडरवर्ल्ड के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि अक्सर उन्हीं के द्वारा पिछड़े देश क्षेत्रों में वहां की जनता को दास्तां में रखा जाता है ! जिसके उदाहरण बिहार में देखे जा सकते हैं ! सरकारों को ऐसे संगठित अपराधियों को रोकने के प्रावधान करने चाहिए इसके लिए देश की कानून प्रक्रिया में भी परिवर्तन करने की शीघ्र आवश्यकता है ! क्योंकि अक्सर अपराधिक मुकदमे देश की अदालतों में 20 से 30 साल तक चलते रहते हैं इस प्रकार न्याय में देरी न्याय ना मिलने के बराबर है ! इसके परिणाम स्वरूप जनता दासता को स्वीकार करने में ही अपनी भलाई समझती है क्योंकि उनका न्याय व्यवस्था से विश्वास ही उठ गया है ! माफिया और बड़े-बड़े बाहुबली लंबे समय तक अदालती देरी के कारण अपने अपराध के व्यवसाय को उसी प्रकार चला कर जनता को आतंकित करते रहते हैं !

प्रधानमंत्री मोदी ने देश में दास्तां की भावना को समाप्त करने के लिए अगले 25 साल का समय तय किया है ! यदि प्रधानमंत्री देश में दास्तां की भावना को समाप्त करना चाहते हैं तो उन्हें देश की व्यवस्था को चलाने वाले कानूनों और देश की न्याय व्यवस्था में शीघ्र अति शीघ्र प्रजातांत्रिक भावना के अनुसार परिवर्तन करने होंगे ! और इन परिवर्तनों को प्राथमिकता के आधार पर करना होगा अन्यथा यदि इन कानूनों में परिवर्तन नहीं किया गया तो अगले 100 साल तक भी देश में दासता की भावना समाप्त नहीं होगी इसलिए जहां आधारभूत ढांचे के नाम पर सड़कों तथा अन्य साधनों को तैयार किया जाता है वहीं पर व्यवस्था को चलाने वाले आधारभूत ढांचे को भी प्रजातंत्र की भावनाओं के अनुसार आधुनिक बनाना होगा !

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