पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तृणमूल कांग्रेस के नेता भादू शेख की हत्या के बाद भड़की हिंसा में 2 बच्चों सहित 10 लोगों की मौत हो गई थी। जिस गांव में आगजनी हुई, वहां लोग दहशत में गांव छोड़कर जा रहे हैं। कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले पर खुद हस्तक्षेप किया है। चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने गुरुवार दोपहर 2 बजे तक राज्य सरकार से रामपुरहाट हिंसा पर रिपोर्ट मांगी है। साथ ही हाईकोर्ट ने जिला जज की मौजूदगी में CCTV कैमरे लगाने और घटना स्थल की चौबीसों घंटे निगरानी करने का निर्देश दिया है।
राज्य सरकार का दायित्व है कि वह राज्य में राजनीतिक हिंसा राेके। पिछले कई सालों से बंगाल की कानून व्यवस्था धीरे-धीरे नीचे की तरफ जा रही है। विधानसभा चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है फिर भी कानून व्यवस्था में कोई सुधार नहीं है। पुलिस फ़ोर्स को केवल राजनीतिक काम में लगाया जा रहा है। कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का काम है।
वहीं दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग इन हत्याओं पर लीपापोती करने में लग गया है आज के टेलीग्राफ अखबार काे देखने से कुछ ऐसा ही लगता है जैसे यह अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र हाे। एक समुदाय विशेष द्वारा किये गये हत्याकांड को देखिए कम्युनिस्टों का यह अखबार न्यायसंगत ठहरा रहा है। बता रहा है कि तृणमूल नेता की हत्या की प्रतिक्रिया में आठ लोगों को जला दिया। इसके बाद ये भी समझा रहा है कि जलाने वाले गुस्से में थे।
इस अखबार को पढ़ने वाला मन में यही सोचेगा, चलो जो किया सही किया। अगर आप किसी मुस्लिम की हत्या करेंगे तो बदले में आपका सामूहिक नरसंहार हो जाए तो गलत क्या है? शायद कम्युनिस्ट प्रतिक्रिया में हुई हत्याओं को जस्टिस मानते हैं। वो समुदाय विशेष द्वारा की गयी हिंसा को हिंसा नहीं मानते? क्या उनके लिए ऐसी हिंसा हिंसा नहीं होती, नेचुरल जस्टिस होती है?