अंतिम समय में परमानंद की अनुभूति

29 Mar 2022 13:04:59
अंतिम समय में मनोस्थिति के दो उदाहरण धर्म ग्रंथों में जटायु और भीष्म पितामह के रूप में पाए जाते हैं ! रावण सीता जी का हरण करके आकाश मार्ग से ले जा रहा था, जटायु ने सीता जी की सहायता की पुकार पृथ्वी पर सुनी और उन्होंने बिना अपनी जान की परवाह किए रावण को रोकने का प्रयास किया और रावण से युद्ध किया जिसमें वह बुरी तरह घायल होकर पृथ्वी पर गिर गए और अपनी मृत्यु का इंतजार करने लगे ! वहीं पर भीष्म पितामह कुरु वंश में सबसे बड़े बुजुर्ग थे ! इस स्थिति में भी उनके वंशज प्रपोत्र कौरव और पांडव भरी सभा में जुआ जैसा अनैतिक खेल, खेल रहे थे ! इसके बाद युधिष्ठिर ने सब कुछ हारने के बाद अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया ! जिसको वह हार गए और उसके बाद शर्म और अनैतिकता की पराकाष्ठा को पार करते हुए दुशासन भरी सभा में द्रोपदी को निर्वस्त्र करने लगा ! जिसे भीष्म गर्दन झुका कर देखते रहे ! इस प्रकार अपने परिवार की पुत्रवधू को बेइज्जत और निर्वस्त्र होते देखते हुए भी वह पूरे होशो हवास में उदासीन बैठे रहे ! जबकि उन्हें इस अनैतिकता का विरोध जटायु की तरह अपने सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया !
 
Bhishma Jatayu 
 
क्योंकि जटायु अपने धर्म का पालन अपने सामर्थ्य के अनुसार करते हुए अपने अंतिम क्षणों में पहुंचे थे इसलिए उन्हें कोई मानसिक द्वंद् नहीं था, और वह खुशी खुशी अपनी मृत्यु को गले लगाने के लिए तैयार थे ! वहीं पर भीष्म की आत्मा पर द्रौपदी का भरी सभा में चीरहरण देख कर भी उदासीन रहने का भारी अपराध बोध था ! जिसके कारण वह अपने अंतिम समय में शस्त्रसैया रूपी अपनी मनोंस्थिति के दर्द से पूरे 6 महीने तक पूरी तरह से पीड़ित और विचलित रहे और उन्होंने इसी स्थिति में इस संसार को छोड़ा ! वहीं पर जटायु ने परमआनंद की अवस्था में इस संसार से विदा ली !
 
इन दोनों उदाहरणों को देखते हुए मनुष्य जीवन में ना तो अनैतिक कार्यों को स्वयं करना चाहिए और ना ही ऐसे कृत्यों को देख कर निष्क्रिय रहना चाहिए जैसा कि 2012 में दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था ! यदि मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस नियम का पालन करता है तो उसे ना तो मृत्यु का भय होगा और ना ही अंतिम क्षणों में उसे कोई पीड़ा या मानसिक अवसाद होगा और वह परमानंद में संसार से विदा लेगा !
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