ज्ञान का महत्व

08 Nov 2022 10:12:05
संसार में हर मनुष्य की इच्छा है कि उसे ईश्वर प्राप्ति हो और इस प्राप्ति का मार्ग केवल ज्ञान द्वारा जाना जा सकता है ! इस ज्ञान के लिए मनुष्य को क्षेत्र क्षेत्र क्षेत्रज्ञ तथा ज्ञाता के बारे में जानना जरूरी होता है ! प्रत्येक जीब प्रकृति के पांच महा भूतों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी तथा आकाश से निर्मित होता है ! इसके साथ शरीर में पांच कर्मेंद्रियां तथा पांच ज्ञानेंद्रियां होती है जैसे आंख नाक कान त्वचा मन इत्यादि ! इन पांचों इंद्रियों के इंद्रिय विषय होते हैं इच्छा द्वेष सुख दुख कामनाएं क्रोध मोह इत्यादिहोते हैं जिनके द्वारा यह इंद्रियां कर्म क्षेत्र में कार्य करती है ! इसी के साथ शरीर में बुद्धि तथा अहंकार भी होते हैं !
 
meditation 

इंद्रिय विषयों के प्रकारों की मात्रा प्रकृति के गुणों के प्रभाव के अनुसार होती है जैसे यदि किसी मनुष्य में सतोगुण की प्रधानता है तो उसके इंद्रिय विषय उसी प्रकार के होंगे जिनके द्वारा वह सतकर्म करते हुए इनके फलों को ईश्वर को समर्पित करता रहता है ! उसी के विपरीत तमोगुण की प्रधानता में वह एक पशु के समान केवल स्वयं के बारे में सोचता है ! इस पूरे शरीर को क्षेत्र कहा जाता है और इस क्षेत्र में जीव कर्म करता है इसलिए जीव को इस क्षेत्र का छेत्रज्ञ बुलाया जाता है ! इसी के साथ साथ शरीर में ब्रह्म स्वयं भी विराजमान रहते हैं जो इस कर्म क्षेत्र के ज्ञाता के रूप में रहते हैं ! यह ब्रह्म संसार के समस्त प्राणियों में ज्ञाता के रूप में हर समय मौजूद हैं और वह जीव के सारे क्रियाकलापों को बिना कोई दखल दिए देखते रहते हैं ! इसलिए परम ब्रह्म पूरे संसार के ज्ञाता हैं !

इस पूरे ज्ञान को जानने के बाद यह पता लग जाता है कि ईश्वर हमारे शरीर में ही विद्वान हैं और हम उसे अपने कर्म और सोच के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं ! भगवान ने स्वयं गीता में कहा है जो अपने सारे कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अविचलित भाव से मेरी भक्ति तथा पूजा करते हैं तथा अपने चित को मुझ पर स्थिर करके निरंतर मेरा ध्यान करते हैं वह मुझे शीघ्र प्राप्त कर लेते हैं ! इस प्रकार में उन्हें जीवन मृत्यु के सागर से शीघ्र मुक्त करके उन्हें मोक्ष प्रदान करता हूं !

उपरोक्त विवरण से हमें ज्ञात हो जाता है कि ईश्वर प्राप्ति का मार्ग केवल स्वयं के द्वारा ही अपने कर्मों और ईश्वर की भक्ति के द्वारा खोजा जा सकता है ! मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है और यह समझने के बाद में उसे अपने विवेक के द्वारा गीता में सुझाए हुए कर्म योग के द्वारा अपने इंद्रिय विषयों को नियंत्रित करते हुए कर्म करना चाहिए और कर्मों का फल ईश्वर को समर्पित करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूरी करनी चाहिए ! और साथ में अपने चित को हमेशा ईश्वर में स्थित करके भक्ति करनी चाहिए ! इस प्रकार बिना किसी आडंबर और दिखावे के उसे अंत में मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति हो जाएगी !
और यही सच्चा ज्ञान है !
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