आतंकवाद, हथियारों की होड़ को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कुछ नहीं किया। विश्व की आधी से अधिक आबादी भूख, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्याओं से ग्रसित है, लेकिन विश्व के ताकतवर देश हथियारों के निर्माण, बिक्री और भंडारण में संलग्न है, संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कानूनों की मदद से इसे रोक सकता है अगर संयुक्त राष्ट्र प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो उसे अपना प्रभाव और विश्वसनीयता बढ़नी होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से उसकी संरचना में सुधार की बात रखकर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। भारत ने जिस प्रकार तमाम समकालीन वैश्विक मुद्दे उठाते हुए लोकतांत्रिक जीवन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता जताई और आतंकवाद पर चाेट के साथ ही संयुक्त राष्ट्र में सुधार पर जोर दिया वह भारत की कूटनीतिक - रणनीतिक दृढ़ता काे दिखाता है।
प्रधानमंत्री ने विश्व व्यवस्था, कानून और मूल्यों को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सशक्तिकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया है। मौजूदा वक्त में अगर वैश्विक संगठन प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो उसे अपना प्रभाव और विश्वसनीयता बढ़ानी होगी। भारत के महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य के शब्द ''जब सही समय पर सही कार्य नहीं किया जाता तो स्वयं समय ही उस कार्य की सफलता को समाप्त कर देता है'' से सीखते हुए संयुक्त राष्ट्र को तत्काल सुधार करना चाहिए।
अफगानिस्तान संकट, दुनिया के कई हिस्सों में छद्म युद्ध, दो देशों के बीच विवाद, समुद्र में निर्बाध आवाजाही, आतंकवाद के खिलाफ जंग, वैश्विक ताकतों द्वारा कमजोर देशों की संप्रभुता का अतिक्रमण आदि ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर संयुक्त राष्ट्र मूकदर्शक साबित हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में जब इसकी स्थापना हुई थी, उस वक्त विश्व की जो स्थिति थी, आज पूरी तरह बदल चुकी है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को भी आज की वैश्विक जरूरत के अनुरूप बनाया जाना जरूरी है। सबसे बड़ा बदलाव यूएन के वीटो नियमों में जरूरी है। 193 सदस्यों वाले यूएन में केवल पांच स्थाई सदस्य होना न्याय नहीं है।
आज आतंकवाद से पूरी दुनिया चिंतित है, अमेरिका, यूरोप, रूस और अरब देशों में अलग -अलग रूपों में आतंकवाद, छद्म युद्ध भी जारी है। लेकिन इसके बावजूद आतंकवाद पर कोई सामाजिक और संगठनात्मक कार्यवाही आज तक नहीं की जा सकी। क्या संयुक्त राष्ट्र इसका जवाब दे सकता है ? क्या कुछ देशों की वीटो पाॅवर शेष दुनिया से भी महत्वपूर्ण और ताकतवर हो सकती है। क्या वीटो को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत नही है ?
चीन ने अपने वीटो पावर का सबसे अधिक दुरुपयोग भारत के संदर्भ में किया है। इसलिए जरूरी है कि या तो वीटो पावर का विस्तार किया जाना चाहिए और भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील को वीटो पावर दिया जाना चाहिए। या वीटो सिस्टम को खत्म कर देना चाहिए व बहुमत के आधार पर वैश्विक फैसला होना चाहिए। क्या वीटो को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत नही है ?
आज दुनिया बहुध्रुवीय है, शक्ति संतुलन बदल गया है, नए देश महाशक्ति बन कर उभर रहे हैं, जिसके चलते हितों का टकराव बढ़ रहा है, जिससे विश्व में तनाव का माहौल बना है। वैश्विक शांति पर खतरा मंडराता दिख रहा है। अफगानिस्तान में वैश्विक आतंकियों से लैस तालिबान के सत्ता में आने पर संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी इस संस्था के औचित्य को कटघरे में खड़ा करती है। विश्व आतंकवाद से परेशान है और यूएन ने अभी तक इसकी परिभाषा तक तय नहीं किया है।
आतंकवाद, हथियारों की होड़ को रोकने के लिए यूएन ने कुछ नहीं किया। विश्व की आधी से अधिक आबादी भूख, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्याओं से ग्रसित है, लेकिन विश्व के ताकतवर देश हथियारों के निर्माण, बिक्री और भंडारण में संलग्न है, संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कानूनों की मदद से इसे रोक सकता है अगर संयुक्त राष्ट्र प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो उसे अपना प्रभाव और विश्वसनीयता बढ़नी होगी ।