भारतीय पुलिस तथा नौकरशाहों की उपनिवेशवादी प्रवृत्ति का रहस्य

20 Jul 2021 17:00:19
इलाहाबाद उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को निर्देश देते हुए कहां है की पुलिस कार्यवाही से पूर्व निजी स्वतंत्रता व सामाजिक व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखें ! इस व्यवस्था के संदर्भ में न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का भी हवाला दिया है ! न्यायालय को यह निर्देश देने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि अक्सर पुलिस अपने आप को सर्वोपरि समझते हुए किसी की भी स्वतंत्रता को मर्जी से छीन लेती है ! भारतीय पुलिस का व्यवहार आम जनता के साथ एक प्रकार से उपनिवेशवादी या सामंती होता है ! जिसमें पुलिसकर्मी अपने आप को जनता के प्रति उत्तरदाई न मानते हुए केबल सरकार के प्रति ही अपनी जिम्मेदारी समझते हैं ! जबकि विकसित पश्चिमी देशों और अमेरिका में पुलिस जनता की पुलिस की तरह व्यवहार करती है ! पुलिस के इस व्यवहार का मुख्य कारण है 1857 मैं प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद अंग्रेजो के द्वारा भारत की जनता को दबाने के लिए पुलिस को तैयार करना !
 

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इसके लिए उन्होंने अपने विशेषज्ञों के द्वारा तैयार किया उपनिवेशवादी पुलिस एक्ट 1861 को भारत में लागू किया ! इस एक्ट में वह सब प्रावधान है जिनके द्वारा पुलिस किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता का हनन कर सकती है ! जिसको दोबारा प्राप्त करने के लिए उसे अदालतों की शरण लेनी पड़ती है जिसमें अदालतों की कार्यप्रणाली के कारण बरसो लग जाते हैं ! इसलिए देश का हर निवासी पुलिस से भयभीत रहता है ! अपनी इस छवि का प्रयोग पुलिसकर्मी तरह-तरह के भ्रष्टाचार संगठित अपराधियों को संरक्षण देने इत्यादि के लिए करते हैं !, और इन कर्मियों को संविधान का भी संरक्षण प्राप्त है ! जिस का प्रावधान अंग्रेजों ने अपनी पुलिस और नौकरशाहों को सुरक्षा देने के लिए किया था !इन प्रावधानों कारण कोई भी नागरिक इनके गैर कानूनी व्यवहार के विरुद्ध कोई अदालती नहीं कर सकता !इसी कारण इनकी कोताही और मिलीभगत के कारण हुई मौतों के लिए आज तक किसी भी पुलिस या नौकरशाह को जिम्मेवार नहीं ठहराया गया है ! वहीं पर भारतीय सेना एक समर्पित बल है जिसको हर देशवासी श्रद्धा और आदर से देखता है ! क्योंकि सेना सीमाओं पर तो दुश्मन को रूकती ही है परंतु उसके साथ साथ प्राकृतिक आपदाओं और कानून व्यवस्था के बिगड़ने की स्थिति में इसे दोबारा लागू करने में अपना सहयोग भी प्रदान करती है ! यह सबसेना देश की जनता के प्रति सद्भाव की भावना रखकर करती है !
 
पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक पुलिस कर्मियों के द्वारा महिलाओं के साथ किए अपराधों की खबरें आ रही हैं ! इसी क्रम में एक डिप्टी एसपी को अपनी सहकर्मी एक महिला सिपाही के साथ एक होटल में आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया ! इनके नग्न और अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं ! इसी प्रकार एक पुलिसकर्मी ने एक युवती का जबरन धर्म परिवर्तन करके उसके साथ विवाह रचाया है ! 2 साल पहले उत्तर प्रदेश के ही उन्नाव में हुई बलात्कार की घटना और उसके बाद में पुलिस के व्यवहार और सबूतों को मिटाने में अपराधियों की सहायता के बारे में खूब चर्चा रही थी ! जिसमें मीडिया की सक्रियता के बाद एक विधायक को जेल की सजा भी हो मिली थी ! कानपुर के विक्ररू कांड के बारे में सब जानते हैं कि किस प्रकार विकास दुबे को लंबे समय तक पुलिस का संरक्षण मिलता रहा और इससे वह अपना साम्राज्य बढ़ाता रहा और बाद में उसका परिणाम हुआ 5 पुलिस वालों की उसके द्वारा हत्या ! अक्सर जहरीली शराब या नशीली दवाओं के द्वारा हुई हत्याओं के बारे में खबरें आती हैं! परंतु यह सब लंबे समय से प्रभावित क्षेत्र में, पुलिस की नजर में चलता रहता है, क्योंकि अपराधी संबंधित पुलिस को रिश्वत देते रहते हैं ! बड़े-बड़े कांड हो जाते हैं परंतु आज तक इन कांडों को रोकने की जिम्मेवारी वाले पुलिसकर्मियों या अन्य संबंधित सरकारी कर्मियों के विरुद्ध उन्हें इन हत्याओं का जिम्मेवार ठहराने के लिए किसी अदालत में ना तो कोई कार्यवाही हुई है और ना ही ऐसे कर्मियों को विभागीय कार्यवाही के द्वारा उचित दंड दिया गया है ! हां केबल ट्रांसफर या निलंबन जैसे दिखावे से प्रेस और मीडिया को संतुष्ट किया गया है !
 
होना तो यह चाहिए था की जैसे ही देश में आजादी आई उसी समय उपनिवेशवादी प्रावधानों को सरकार की कार्यप्रणाली से बाहर कर देना चाहिए था और देश में राष्ट्रवादी स्वदेशी कानूनों को लागू करना चाहिए था, परंतु ऐसा हुआ नहीं ! 1919 में अंग्रेजों का गुलाम भारत पर शासन करने के लिए लागू किया हुआ सिविल सर्विस एक्ट तथा पुलिस एक्ट 1861 अभी तक चल रहा है ! जिसके कारण अक्सर शासकों की उपनिवेशवादी प्रवृत्ति झलकती है ! हालांकि दिखावे के लिए हमारे राजनीतिक शासक स्वयं को जनता का सेवक बताते हैं परंतु जनता पर शासन करने के उनके नियम कानून वही गुलामों वाले हैं ! 1977 में जनता पार्टी के शासन के समय पुलिस कार्यप्रणाली में सुधार के लिए आयोग गठित किए गए ! इन आयोगों की अध्यक्षता देश के प्रसिद्ध पुलिसकर्मियों जैसे जूलियस रिवेरा इत्यादि ने की थी ! इन्होंने अपने अनुभवों और वास्तविकताओं के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करके संबंधित सरकारों को सौंपी जो ठंडे बस्ते में चली गई ! परंतु 2006 में उत्तर प्रदेश के एक भूतपूर्व पुलिस डीजीपी श्री प्रकाश सिंह ने देश की उच्चतम न्यायालय में इन रिपोर्टों को लागू करने के लिए गुहार लगाई ! जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने 12 सूत्रीय पुलिस सुधार पूरे देश में लागू करने का आदेश जारी किया और इन आदेशों को लागू करने की रिपोर्ट अदालत ने जनवरी 2007 तक मांगी थी ! परंतु आज तक केवल कुछ सरकारों ने दिखावे के लिए कुछ किया है जबकि असली पुलिस सुधारों को देश में कहीं भी लागू नहीं किया गया है !
 
यहां पर यह प्रश्न उठता है की ऐसा क्यों, हमारे देश की जनता के द्वारा चुनी सरकारें इन पुलिस सुधारों को लागू क्यों नहीं कर रही है ! तो इसका उत्तर है यह है कि देश में अभी तक दासता की मानसिकता का जीवित रहना! इसका तात्पर्य है कि हर शासक जनता को डरा धमका कर शासन करना चाहता है और पुलिस को अपनी पकड़ बनाने के लिए इस्तेमाल करता है ! जैसा कि गुलाम भारत में अंग्रेज करते थे ! वे गिने चुने भारत के बाहुबली सामंतों की देखभाल करते थे जिनके द्वारा वह आम जनता का शोषण करते थे ! इसी प्रकार आज के शासक संगठित अपराधों के सरगनाओ और सांप्रदायिक सरदारों इत्यादि को संरक्षण देकर उनके द्वारा वोट बैंक का इंतजाम अपने अगले चुनाव जीतने के लिए करते हैं ! इसका खुलासा उत्तर प्रदेश तथा देश के विभिन्न हिस्सों में नजर आ रहा है ! जिस प्रकार विकास दुबे, इकबाल अंसारी और मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम इत्यादि ने अपने बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित किए और संबंधित सरकारें और पुलिसकर्मी इसके मूकदर्शक बने रहे ! क्या इसका जवाब उस समय के शासक या पुलिस प्रमुख दे स कते हैं कि किस प्रकार इनकी करोड़ों की अवैध संपत्तियां खड़ी हो गई ! क्या कोई राजनेता या मुंबई पुलिस का अधिकारी बता सकता है कि अभी भी दाऊद इब्राहिम और अन्य अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई में अवैध वसूली और सुपारी किलिंग किस प्रकार करा रहे हैं !मीडिया की सक्रियता ने इनकी सब कार्यप्रणाली को जनता के सामने रख दिया है परंतु फिर भी आतंक और भय के कारण आम नागरिक कुछ नहीं कर पाता है !
 
 
इस प्रकार की व्यवस्था का सबसे बड़ा प्रभाव देश के नागरिकों की सोच और मानसिकता पर पड़ता है ! अक्सर राष्ट्रीयता की भावना की जगह-जगह बात होती है परंतु कोई भी जरूरी उपायों को नहीं बताता जिनके द्वारा यह भावना उत्पन्न और प्रोत्साहित की जा सके ! यहां पर यह जरूरी है एक नागरिक को उसका आत्मसम्मान, समान न्याय व्यवस्था और उसकी स्वतंत्रता का भरोसा हमेशा रहना चाहिए परंतु देश में व्यवस्था को लागू करने वाली पुलिस का नियंत्रण तंत्र पुलिस एक्ट ही उपनिवेशवादी नियमों पर आधारित है, तो किस प्रकार एक नागरिक को स्वतंत्र देश की जरूरी सुविधाएं प्राप्त कराई जा सकती हैं ! इसलिए जनता को चाहिए राजनेताओं से आधारभूत ढांचे मैं सुधार की बात पर उन्हें केवल सड़क रेल या बिजली तक सीमित न रहकर उस व्यवस्था को सुधारने के लिए मांग करनी चाहिए जिसके द्वारा उनकी दिन प्रति दिन की जिंदगी नियंत्रित होती है और उनकी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की रक्षा होती है ! और यह देश की पुलिस व्यवस्था को नियंत्रित करने वाली पुलिस एक्ट नाम की नियमावली को एक स्वतंत्र देश की भावनाओं के अनुसार बनाकर किया जा सकता है ! परंतु यदि स्वयं पुलिस के संरक्षण में संगठित अपराध और तरह तरह के अवैध धंधे जैसे जहरीली शराब नशीली दवाइयों का कारोबार चलेगा तो किस प्रकार एक नागरिक सुरक्षित रह सकता है ! इसके साथ साथ सेना की तरह पुलिस और नौकरशाही में भी प्रावधान होना चाहिए कि यदि कोई करनी अपने पद की गरिमा के अनुसार अपने पद का निर्वहन नहीं कर रहा है तो उसकी सेवाओं की समाप्ति तुरंत की जा सके ऐसा प्रावधान भारतीय सेना में सैनिक कानून के धारा 45 के अनुसार है !
 
इसको देखते हुए अब समय आ गया है जब देश की सरकारों को शासन व्यवस्था की आधारभूत इकाई नौकरशाही और पुलिस के स्वरूप को एक स्वतंत्र देश का स्वरूप देना चाहिए ! देशवासियों को यह पता होना चाहिए की भारत में लागू पुलिस एक्ट इंग्लैंड में या और किसी स्वतंत्र देश में प्रयोग में नहीं है इसके अतिरिक्त भारतीय सेना को नियंत्रित करने वाली नियमावली और सैनिक कानून इंग्लैंड और विश्व के ज्यादातर देशों में लंबे समय से प्रयोग में है जिसके कारण भारतीय सेना विश्व की किसी भी देश की सेना से अपने आचरण में पीछे नहीं है ! क्योंकि पश्चिमी देशों में समाज को नियंत्रित करने वाले नियम कानून उपनिवेशवादी नहीं है और वहां पर हर नागरिक के आत्मसम्मान की रक्षा होती है इसलिए वहां पर राष्ट्रीयता की भावना उच्च कोटि की है जबकि हमारे देश में आवश्यकता पड़ने पर देश के नेता राष्ट्रीय भावना की मांग करते हैं परंतु इस भावना को जागृत करने और प्रोत्साहित करने के लिए कोई प्रयास नहीं करते ! सरकार के इसी प्रकार के रवैया के कारण एक आम नागरिक व्यवस्था से तंग आकर विद्रोह कर उठता है और माओवाद जैसे आतंकवादी संगठनों में सम्मिलित हो जाता है ! इसलिए देश के अंदर इस प्रकार की प्रवृत्तियों को रोकने के लिए देश की सरकार को पुलिस और नौकरशाही से उपनिवेशवादी प्रवृत्तियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए !
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