प्रजातंत्र में व्यवस्था और शासन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी कार्यपालिका की होती है ! जिसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नीति निर्धारण करते हैं और उन्हें जमीन पर लागू करने की जिम्मेदारी नौकरशाही की होती है ! इस प्रकार देश की नौकरशाही कार्यपालिका का मुख्य हिस्सा है ! अक्सर कार्यपालिका के द्वारा जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य न करने के कारण सरकारें बदल जाती हैं परंतु कार्यपालिका को चलाने वाली नौकरशाही वही रहती है ! इसको देखते हुए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2016 के सिविल सेवा दिवस पर नौकरशाहों को अपने भाषण में बताया की-- इस समय देश वासियों के हृदय में नौकरशाहों के प्रति अभाव है अर्थात उनके प्रति कोई भावना नहीं है !
देशवासियों के हृदय भाव शून्य होकर उदासीन हो गए है ! यह प्रधानमंत्री का नौकरशाही के कार्यकलापों का आकलन करके एक प्रकार से प्रमाण पत्र था ! उन्होंने इसको और समझाते हुए कहा कहा था की नौकरशाही में सीनियर-- जूनियर का बहुत बड़ा अंतर कायम है ! जिस कारण सीनियर जूनियर की और ना ही जनता की बात सुनना चाहते हैं और यह दासता की सबसे बड़ी निशानी है ! एक प्रकार सेदेश की नौकरशाही में मध्य काल की सामंत शाही नजर आती है ! जिससे सामंतों की तरह नौकरशाह जनता का भ्रष्टाचार द्वारा शोषण करना चाहते हैं ! कुछ समय पहले देश के समाचार पत्रों केप्रथम पेज पर छपा था कि उत्तर प्रदेश के जिला कौशांबी के डीएम रहे सत्येंद्र सिंह ने अपने कार्यकाल में खनन पट्टों की हेरा फेरी में बड़ी रिश्वत लेकर गैर कानूनी ढंग से गलत लोगों को इन का आवंटन किया था ! इस विषय पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका में सीबीआई को जांच के आदेश दिए ! सीबीआई के छापे में सत्येंद्र सिंह के ठिकानों से सीबीआई को 2.5 करोड़ के जेवरात 44 संपत्तियों के दस्तावेज तथा बड़ी मात्रा में कैश बरामद हुआ ! यह सब सत्येंद्र सिंह ने भ्रष्टाचार के द्वारा एकत्रित किया था ! उसी समाचार पत्र में उसी दिन उसके साथ ही मुखपृष्ठ पर दूसरी खबर थी की जयपुर में हाईवे निर्माण कंपनी से 38 लाख की रिश्वत लेते एक आईपीएस अधिकारी मनीष अग्रवाल को वहां की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने रंगे हाथों पकड़ा है ! इस प्रकार की खबरें कोई नई नहीं है क्योंकि स्वयं भारत सरकार के वेबसाइट पर हर समय 10 भ्रष्ट तम नौकरशाहों की सूची हर समय उपलब्ध रहती है !
जो भ्रष्टाचार की मात्रा के अनुसार बदलती रहती है ! इस समय भ्रष्टाचार के द्वारा एकत्रित की हुई धनराशि के साथ इस सूची में प्रमुख नाम है--- नीतीश जनार्दन ठाकुर केवल 12 साल के सेवा में मुंबई में 200 करोड़ मध्य प्रदेश के अरविंद एवं टीना जोशी 250 करोड़, उत्तर प्रदेश की नीरा यादव जिनकी अकूत संपत्ति का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि इन्होंने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जमीन घोटालों में यह सब एकत्रित की है !
उत्तर प्रदेश के ही राकेश बहादुर 400 करोड़ जिनके विरुद्ध मायावती ने 2012 में कार्यवाही शुरू की परंतु अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद फाइल बंद कर दी ! इस प्रकार के अनेक उदाहरण देश में आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं !नौकरशाहों को भ्रष्टाचार मुक्त रखने के उद्देश्य से उन्हें हर साल अपनी चल और अचल संपत्ति का ब्यौरा सरकार को सौंपना होता है ! परंतु देखने में आया है कि हर साल इस नियम की अनदेखी करते हुए अधिकांश अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा सरकार को नहीं देते हैं ! और इसमें सब से निराशा पूर्ण यह है कि इस नियम का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही भी नहीं होती है ! उदाहरण के तौर पर केवल उत्तर प्रदेश राज्य में वर्ष 2015-- 16 के लिए जो ब्यौरा 31 मार्च 2016 तक जमा होना चाहिए था उसे प्रदेश के 138 आईएएस अधिकारियों ने जमा नहीं किया था जबकि प्रदेश में केवल उस समय 621 आईएएस अधिकारी थे ! इस प्रकार यह संख्या अपने आप में यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि किस प्रकार देश के नौकरशाह अपनी मनमानी कर रहे हैं ! अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देना ही यह प्रदर्शित करता है कि इनकी संपत्ति इमानदारी से कमाई हुई नहीं है ! यहां पर यह देश का दुर्भाग्य है कि ज्यादातर यह सब इसी प्रकार चलता रहता है परंतु देश का शासन तंत्र खामोश रहकर इनकी इस कार्यप्रणाली का मूकदर्शक बना रहता है ! चुनाव का समय आता है जनता अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए सरकारों को सत्ता से बेदखल कर देती है परंतु नौकरशाह अपनी गद्दी पर वैसे ही बने रहते हैं !
अक्सर देश की जनता यह विचार करती है कि देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में नौकरशाही का इस प्रकार का स्वरूप क्यों है ? इसका उत्तर है अंग्रेजों द्वारा लागू सिविल सर्विस कोड 1919तथा पुलिस एक्ट1861 का उसी स्वरूप में स्वतंत्रता के समय अपनाया जाना ! अंग्रेजों ने इस सिविल कोड में शासन तंत्र को चलाने वाली नौकरशाही को पूरी शक्ति और अधिकार दिए जिसके द्वारा यह अपना कार्य बिना किसी दबाव और बंधन के कर सकें !नौकरशाहों को भय मुक्त करने के लिए इन्हें अंग्रेजों ने शासन की तरफ से कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की थी ! सरदार पटेल ने 1947 में यह सोच कर कि इस सिविल सर्विस कोड और पुलिस एक्ट1861 को अपना लिया की यदि अंग्रेज इंग्लैंड में बैठकर भी देश का शासन सफलतापूर्वक 200 साल तक चला सके तो यह कोड स्वतंत्र भारत में भी उतना ही सफल होगा ! परंतु वह यह भूल गए इंग्लैंड एक ऐसा देश है जहां के नागरिकों ने जीवन में कभी गुलामी नहीं देखी है ! इसलिए इनके व्यक्तित्व राष्ट्रीयता और देश के प्रति कर्तव्य परायणता की भावना से ओतप्रोत है ! इसलिए अंग्रेजी नौकरशाहों ने शासकों के द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों को उसी भावना के अनुरूप लागू किया इस कारण देश की जनता अंग्रेजी नौकरशाही को भी अच्छी दृष्टि से देखती थी !इसलिए अंग्रेजी समय में देश में भ्रष्टाचार बहुत कम था ! परंतु दुर्भाग्य से हमारा देश 800 साल तक गुलाम रहा जिसके कारण यहां के निवासियों में दासता की भावना घर कर गई !
इस मनोवृति के अनुसार मनुष्य मौका मिलते ही अपने स्वार्थ की पूर्ति करता है ! और यही सब देश की नौकरशाहीअपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके कर रही है ! जहां अंग्रेजों ने अपनी नौकरशाही को सुरक्षा प्रदान की थी वहीं पर संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 311 के अनुसार देश की नौकरशाही को सुरक्षा प्रदान की है ! इसके अनुसार किसी भी अधिकारीके सेवाकाल में उसके द्वारा किए हुए कार्यों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्य या केंद्रीय सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य है ! इस सुरक्षा का दुरुपयोग करते हुए हमारे देश के नौकरशाहों की कार्यप्रणाली सामंतों जैसी बन गई जैसे सामंत शक्ति प्राप्त होते ही इसका प्रयोग अपने नियंत्रण में आने वाली जनता का शोषण करने में करते थे ! इसी तरह से देश की नौकरशाह भी जनता का शोषण करने के लिए उन्हें तरह-तरह की लालफीताशाही और कायदे कानूनों का हवाला देकर परेशान करती है ! जिससे तंग आकर जनता इन्हें रिश्वत दे !
नौकरशाह शासन की सबसे प्रमुख इकाई जिले के प्रमुख होते हैं ! और यदिजिले का प्रमुख इस प्रकार का कार्य करता है तो उसके अधीनस्थ भी उसका अनुसरण करेंगे ! इसलिए पूरे देश में भ्रष्टाचार के कारण अक्सर सरकार की विकास और जन कल्याण की योजनाएं विफल होती नजर आती हैं ! इनके उदाहरण उत्तर प्रदेश का शोपीस कहे जाने वाले नोएडा में देखा जा सकता है ! नोएडा के नोएडा एक्सटेंशन में औद्योगीकरण के लिए वहां के बिसरख, खैरपुर इत्यादि 16 गांव की पूरी जमीन अर्जेंसी क्लॉज के अंतर्गत 2007-- 8 में अधिकृत की गई थी ! इसका मुख्य उद्देश्य था कि लंबे समय से बेरोजगारी से ग्रस्त क्षेत्र के नौजवानों को इस भूमि पर स्थापित होने वाले उद्योगों में रोजगार उपलब्ध कराना ! परंतु इन नौजवानों की रोजी रोटी की परवाह न करते हुए नोएडा विकास प्राधिकरण ने चुपके से 2009 में इस जमीन का लैंड यूज़ उद्योग से बदलकर रिहायशी करके इसे बड़ी-बड़ी रिश्वत लेकर 100 बिल्डरों को बहु मंजिल आवासीय भवन बनाने के लिए दे दिया ! इसी प्रकार यमुना विकास प्राधिकरण के सेक्टर 17a में 1000 एकड़ भूमि माइक्रो एसईजेड के नाम पर अधिकृत की गई थी ! जिससे यह क्षेत्र निर्यात का प्रमुख केंद्र बन सके ! परंतु यहां पर भी प्राधिकरण के कर्मियों ने इस जमीन को मोटी मोटी रिश्वत लेकर बिल्डरों को आधी कीमत पर दे दिया ! इससे प्राधिकरण को 600 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा ! इसी प्रकार के भ्रष्टाचार के उदाहरण देश के ज्यादातर नगर विकास प्राधिकरण और जनकल्याण योजनाएं जैसे मनरेगा ग्रामीण स्वास्थ्य योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के क्रियान्वयन में देखें जा सकते है ! देश की सरकार जन भावनाओं के अनुरूप योजनाएं बनाती हैं परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक ज्यादातर योजनाएं उपरोक्त कारणों के कारण सफल नहीं हो पाई है !
व्यवस्था के अनुसार कार्यपालिका में योजना बनाना उनका क्रियान्वयन तथा आकलन इन सब की जिम्मेवारी नौकरशाही की होती है ! इस स्थिति में यदि देश का विकास अपेक्षाकृत न होने से इसकी जिम्मेवारी भी नौकरशाही की ही चाहिए ! इसलिए अब समय आ गया है जब देश की व्यवस्था के सुधार के लिए देश की कार्यपालिका का प्रमुख अंग कहे जाने वाली नौकरशाही मैं भी समय की मांग के अनुसार सुधार किए जाएं ! इसके लिए सर्वप्रथम इसकी चयन प्रक्रिया मैं सुधार की आवश्यकता है ! सिविल सर्विस कोड के अनुसार केवल लिखित परीक्षा और उसके उपरांत साक्षात्कार के परिणामों के द्वारा ही चयन किया जाता है ! जबकि इस सेवा में खासकर प्रत्याशी का व्यक्तित्व और उसकी मनोदशा का भी मनोवैज्ञानिक विधि से परीक्षण किया जाना चाहिए ! विशेषज्ञों के अनुसार एक सर्वे में पाया गया है की नौकरशाही मैं प्रवेश करने का मुख्य उद्देश्य केवल इसमें प्राप्त अकूत शक्तियां तथा रुतबा है ! और अक्सर इसके आवेदक ज्यादातर देश के उन भागों से आते हैं जहां पर अभी भी सामंत शाही किसी न किसी रूप में पनप रही है ! इसलिए यह आवेदक अपनी दबी हुई भावनाओं को पूर्ण करने के लिए नौकरशाही में आकर जनता के प्रति उदासीन और लालफीताशाही अपनाकर उसमें असंतोष और निराशा का माहौल पैदा करते हैं ! जिसके कारण तरह-तरह के धरने प्रदर्शन और माओवाद जैसा आतंकवाद देखा जा सकता है ! इस प्रकार देश विरोधी शक्तियों को नौकरशाही की कार्यप्रणाली प्रोत्साहित करती है इसलिए कानून की दृष्टि से उपरोक्त व्यवहार करने वाले नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के साथ-साथ देश विरोधी धारा के अंतर्गत मुकदमे चलाए जाने चाहिए जिनमें इनको इतनी सजा मिले जिससे भ्रष्टाचार में लिप्त अन्य लोगों को सबक मिल सके !
नौकरशाही की उपरोक्त चयन प्रक्रिया इंग्लैंड में ठीक थी क्योंकि वहां के निवासियों का व्यक्तित्व स्वस्थ था परंतु ऐसा हमारे देश में नहीं है ! इसलिए हमारे देश में भारतीय सेना के अधिकारियों की चयन प्रक्रियाकी तरह प्रक्रिया अपनानी चाहिए जिसे सर्विस सिलेक्शन बोर्ड का नाम दिया गया है ! इस प्रक्रिया की खोज जर्मनी में दूसरे विश्व युद्ध के पहले की गई थी ! जर्मनी अपनी सेनाओं में ऐसे अधिकारियों का चयन करना चाहती थी जो देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर सकें ! इसलिए एक समय पर जर्मनी ने पूरे विश्व को अपनी शक्ति दिखा दी थी ! इस प्रक्रिया में लिखित परीक्षा के बाद प्रत्याशी को सर्विस सिलेक्शन बोर्ड में कुछ दिनों के लिए अन्य प्रत्याशियों के साथ रखा जाता है ! जहां पर उसकी गतिविधियों का अध्ययन करके मनोवैज्ञानिक उसके व्यक्तित्व का आकलन करते हैं ! इस प्रकार यदि देश की सरकार वास्तव में अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और स्वच्छता लानी चाहती है तो उसके लिए उसे नौकरशाही की चयन प्रक्रिया में बदलाव करना होगा ! इसके अतिरिक्त नौकरशाहों को उनके कार्यों और उत्तरदायित्व के प्रति जवाबदार बनाने के लिए संविधान की धारा 311मैं भी बदलाव करने होंगे ! जैसे कि सेना के कर्मियों को संविधान की इस प्रकार की कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं है ! इसलिए यदि किसी सैन्य अधिकारी की कर्तव्य के निर्वहन या दुश्मन के सामने किसी प्रकार की कायरता पूर्ण कार्यवाही नजर आती है तो उसके विरुद्ध बिना किसी रूकावट के कानूनी कार्रवाई के प्रावधान हैं ! और इसके अनुसार उस सैन्य कर्मी को मृत्युदंड तक दिया जा सकता है ! यदि इस प्रकार के प्रावधान हमारी नौकरशाही में भी हो तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है की नौकरशाही में भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है ! इसके साथ साथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नौकरशाहों की संपत्ति का विवरण सरकारों के पास निर्धारित तिथि तक जमा होना चाहिए और इस विवरण का आकलन आर्थिक विशेषज्ञों के द्वारा किया जाना चाहिए जिससे इनके भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके !
इसलिए अब समय आ गया है जब विकास के नाम पर तरह-तरह के दावों के साथ-साथ देश की व्यवस्था में भी समय अनुसार बदलाव किए जाने चाहिए ! देश की पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए 2006 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने आदेश किए थे ! परंतु अभी तक इन आदेशों पर किसी प्रकार की प्रगति नहीं हुई है ! यदि देश की सरकार देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कृत संकल्प है तो उसे शीघ्र अति शीघ्र अंग्रेजो के द्वारा लगाए गए सिविल सर्विस कोड 1919 और पुलिस एक्ट 1861 को शीघ्र अति शीघ्र बदल कर उसे प्रजातांत्रिक भावनाओं के अनुरूप बनाना चाहिए ! जिससे देश की नौकरशाही और पुलिस जनता के प्रति अपनी जवाबदारी महसूस कर सकें !