सरना कोड से आदिवासी समाज को कितना फायदा होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन जनजातियों के बीच चर्च काे अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद जरूर मिलेगी, क्योंकि विशाल समाज से कट जाने के बाद उनके लिए बाेलने वाला काैन हाेगा ? भारत के आदिवासी समुदाय से एक मात्र कार्डिनल आर्कबिशप तिल्सेफर टोप्पो मानते है कि जनजातियों के बीच कैथोलिक चर्च अभी शैशव अवस्था में है। संकेत साफ है चर्च को जनजातियों के बीच आगे बढ़ने की सम्भावनांए दिखाई दे रही है। कैथोलिक की कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत से भी ज्यादा छोटानगपुर की जनजातियाँ है।
भारत के कैथोलिक बिशपाें ने अगले वर्ष की जनगणना में सरना कोड की मांग की है। कैथोलिक बिशपाें ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील की है कि सरना या आदिवासी धर्म को मान्यता एवं पहचान दी जाए। 19 सितम्बर के पत्र में राँची महाधर्मप्रांत के बिशपाें ने मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि संविधान के तहत आदिवासी लोगों को विशेष दर्जा दिया गया था।
राँची के आर्कबिशप फेलिक्स टोप्पो द्वारा मुख्यमंत्री को भेजें अपने पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 29 और 342 में आदिवासी समुदाय के अधिकार, उनकी भाषा, धर्म, संस्कृति और अलग पहचान की गारंटी दी गई है। अतः उन्हें अलग सरना कोड दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा है, हम झारखंड सरकार से मांग करते हैं कि चल रहे विधानसभा सत्र में, आदिवासियों की पहचान की रक्षा को लेकर एक विधेयक पास किया जाए तथा 2021 में सरना कोड को जनगणना में शामिल करने के लिए प्रस्ताव पारित कर संघीय सरकार को भेजा जाए।
कैथोलिक बिशपाें ने झारखंड सरकार से यह भी अपील की है कि जब तक संघीय सरकार सरना संहिता को मान्यता नहीं देती, तब तक राज्य में नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को लागू नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया जाए। इस बीच झारखंड की राजधानी राँची में 20 सितम्बर को एक रैली निकाली गई, जिसमें आदिवासियों के अधिकारों की मांग की गई। राँची में केंद्रीय सरना समिति के महासचिव संतोष तिर्की ने कहा, हम सरना कोड के लिए आंदोलन कर रहे हैं और हमारे लोग गाँव गाँव जाकर इस आंदोलन के महत्व की जानकारी दे रहे हैं।
कैथोलिक बिशपाें ने अपने पत्र में कहा, कि 1951 की जनगणना में जनजाति के लिए नौवां कोलम शामिल था, जिसे बाद में हटा दिया गया। इसको हटाये जाने के कारण, आदिवासी आबादी ने विभिन्न धर्मों को अपना लिया, जिससे समुदाय को बड़ा नुकसान हुआ। 1951 के बाद हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध के बाद जिसमें अन्य लिखा हुआ था जिसको 2011 में हटा दिया गया। क्योंकि हिन्दू समर्थक भारतीय जनता पार्टी की संघीय सरकार तथा इसके हिंदू राष्ट्रवादी विंग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आदिवासी लोगों को हिंदुओं के रूप में पंजीकृत करना चाहता है।
दरअसल आदिवासी समाज आज बिखरा पड़ा है इसी का फायदा उठाते हुए बड़े पैमाने पर आदिवासियों का मतातंरण (धर्म-परिवर्तन) किया जा रहा है। कुछ देशी एवं विदेशी संगठनाें के लिए आदिवासी समाज कच्चे माल की तरह हो गया है। भारत में ब्रिटिश शासन के समय सबसे पहले जनजातियों के संस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी। जनजातियों की निर्धनता का लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियों ने उनके बीच धर्मातरण का चक्र चलाया। बड़े पैमाने पर इसमें मिशनरियों को सफलता भी प्राप्त हुई। जो जनजातियाँ ईसाइयत की तरफ आकर्षित हुई धीरे-धीरे उनकी दूरी दूसरी जनजातियों से बढ़ती गई।
ईसाई मिशनरी धन की ताकत से जनजातियों को बांट रहे है। वे उनके मूल प्रतीकों, परम्पराओं, संस्कृति और भाषा पर लगातार अघात कर रहे है। उग्र-धर्मपचार के कारण अब उनमें टकराव भी होने लगा है। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, नागालैंड जैसे राज्यों में ईसाई मिशनरियों की गैर-जरूरी गतिविधियों के कारण जनजातियों के आपसी सौहार्द को बड़ा खतरा उत्पन्न हो रहा है।
ईसाई मिशनरियों पर विदेशी धन के बल पर भारतीय गरीब जनजातियों को ईसाई बनाने के आरोप भी लगते रहे है और इस सच्चाई को भी नही झुठलाया जा सकता कि झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य पदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पूर्वोत्तर राज्यों में चर्च के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी के साथ विभिन्न राज्यों में मिशनरियों की गतिविधियों का विरोध भी बढ़ रहा है और कई स्थानों पर यह हिंसक रुप लेने लगा है।
भारत में सरना धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या करीब 150 मिलियन है और वह कई सालों से सरना धर्म के पहचान की मांग कर रहे हैं। आदिवासी लोगों काे लगता है, कि 2021 में जनगणना होने पर सरना कोड लागू हाेने से आदिवासी पहचान, भाषा और संस्कृति के संरक्षण काे बल मिलेगा। सरना आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं।
सरना कोड से आदिवासी समाज को कितना फायदा होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन जनजातियों के बीच चर्च काे अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद जरूर मिलेगी कयाेंकि विशाल समाज से कट जाने के बाद उनके लिए बाेलने वाला काैन हाेगा ? भारत के आदिवासी समुदाय से एक मात्र कार्डिनल आर्कबिशप तिल्सेफर टोप्पो मानते है कि जनजातियों के बीच कैथोलिक चर्च अभी शैशव अवस्था में है। संकेत साफ है चर्च को जनजातियों के बीच आगे बढ़ने की सम्भावनांए दिखाई दे रही है। कैथोलिक की कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत से भी ज्यादा छोटानगपुर की जनजातियाँ है।