दिग्विजय दिवस

NewsBharati    11-Sep-2020 11:04:26 AM
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- डॉ.लीना गोविन्द गहाणे  
 
विश्‍व-इतिहास के पन्‍नों में स्‍वर्णाक्षरों में लिखा जाता है । आज ही के दिन याने 11 सितंबर 1893 को अमरीका के शिकागो में संपन्‍न ‘विश्व धर्म सम्‍मेलन’ में स्वामी विवेकानंद ने अपने सुप्रसिद्ध व्याख्यान से पूरी दुनिया को प्रेरित और रोमंचित कर दिया था । स्‍वामी विवेकानंद का वह भाषण आज तक बेहद चर्चित है । उस दिन स्वामी विवेकानंद ने अपने उन्‍नत आध्यात्मिक विचारों और प्रयोगों को वैश्विक मंच पर प्रस्‍तुत करते हुए भारत का गौरव बढ़ाया था । और दुनिया के समक्ष भारत की एक मजबूत छवि परस्तुत की । इस तरह भारत ने विश्व-स्‍तर पर वैचारिक-विजय प्राप्त किया थी । अत: हर साल 11 सितंबर को ‘दिग्विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है ।
 
भारत के सनातन धर्म-ग्रंथों में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की विचारधारा प्रकट हुई है जिसका अर्थ होता है - ‘धरती ही परिवार है’ । इस विचार को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में दिये अपने भाषण द्वारा चरितार्थ कर दिया । स्वामी विवेकानंद ने लीक से हटकर अपने भाषण की शुरुआत ‘अमरिका के बहनो और भाईओ’ से की थी जो सभा को संबोधित करने की विशेष-शैली के रूप में उभर आई । इससे दुनिया के लोग आश्‍चर्यचकित हुए । यह एक ऐसा अवसर था जब वैश्विक भाईचारे का संदेश दुनियाभर में गूंज उठा और भारत की महान् आध्यात्मिक-चेतना उजागर हुई । स्वामी विवेकानंद की वाणी में छिपी मानवतावादी-समझ से श्रोतागण भाव-विभोर हुए ।

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आगे, स्वामी विवेकानंद ने सम्‍मेलन में उनका स्‍नेहपूर्ण और जोरदार स्‍वागत के लिए हृद्य से आनन्द व्यक्त किय और दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्‍यवाद दिया । उन्‍होंने अपने भाषण में इसका जिक्र भी किया जिससे यह विदित होता है कि भारत की भव्‍य परंपरा का वे अपार आदर एवं गौरव करते थे । भाषण में उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें गर्व है कि वे एक ऐसे धर्म से हैं जिसने दुनियाभर के लोगों को सहनशीलता और सबके के प्रति स्‍वीकृति का पाठ पढ़ाया है । स्‍वामी विवेकानंद जी ने देशभक्ति और मातृभूमि के इतिहास एवम सभ्‍यता के प्रति गर्व महसूस करते हुए, निष्‍ठा एवं आत्‍माभिमान आदि विशिष्‍ट गुणों के बरेमे बताया और कहा क़े ये बाते सभी के लिये अनुकरणीय है ।
 
फिर, स्‍वामी विवेकानंद ने इसी भाषण में सभी धर्म सत्‍य है एसी भारतीय धारणा है और हम इसे हर रूप में स्‍वीकार करतें हैं। शिव महिम्न के शोल्क को उध्रुत करते हुए इसे उन्होने प्रमाणित किया और कहा कि जिस प्रकार नदियां अलग-अलग स्रोतों से निकलने के बावजूद आखिर में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी प्रकार मनुष्‍य अपनी इच्‍छा के अनुरूप पृथक-पृथक रास्‍ते चुनता है ।
 
रुचीनां वैचित्र्या दजुकुटिलनानापथजुषां
नृणामेको गम्य स्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥७॥ ( शिव महिम्न: स्तोत्रम् )
 
स्‍वामी विवेकानंद कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, राजयोग, शिक्षा आदि के पुरज़ोर प्रतिपादक थे । वे नारी का सम्‍मान करते थे । उन्‍होंने जागृति का संदेश देते हुए सामाजिक क्रांति एवं सुधार की संभावनाओन की दिशा में पहल की थी। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्‍वामी विवेकानंद का जीवन ही एक संदेश है जिससे हमें प्रेरणा मिलती है । आज भी उनके विचार न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि समयोचित भी है ।
 
स्‍वामी विवेकानंद व्‍यावहारिक बाते और तत्वज्ञान के समन्‍वय के पक्ष में थे । उनका मत था कि समन्‍वय करने के लिए सबकी अच्‍छाइयों को देखना पड़ेगा । परन्‍तु हम तो ऐसे अधम हैं कि हर वक्‍त सबकी बुराइयों को देखते हैं । इससे ज्ञात होता है कि वे संकीर्णता की उपेक्षा करते हुए व्‍यापक और विशाल मनोभावना के मालिक थे । इसमें दो राय नहीं कि स्‍वामी विवेकानंद प्रभावशाली एवं महान् व्‍यक्तित्‍व थे । उनकी सोच में दूर तक असर डालने वाली ताकत थी । उनकी वाणी में चारों ओर विचरोंकि की तरंगे उत्‍पन्‍न करने कि क्षमता थी ।
 
स्‍वामी विवेकानंद ने अपने भाषण के अंत में कहा कि मुझे पूरी उम्‍मीद है कि ‘‘आज इस सम्‍मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मियो, हर प्रकार के क्‍लेश चाहे वे तलवार से हो या कलम से और सभी मनुष्‍यों के बीच की दुर्भावनाओं का नाश करेगा ।‘‘उनकी राय इतनी ऊंची और उदात्‍त थी कि उससे न सिर्फ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का आशय झलकता था अपितु दृढ़ संकल्‍प शक्ति भी प्रकट होती थी । विवेकानंद जी के संदर्भ में ‘‘जहां चाह वहां राह‘‘ - यह लोकोक्ति सार्थक सिद्ध हुई है ।
 
इस तरह स्‍वामी विवेकानंद आधुनिक जगत् में भारत के सांस्‍कृतिक मूल्‍यों के संरक्षक के रूप में उभर कर आये प्रतिभावान् व्‍यक्ति हैं । साथ ही, वे पूरे विश्‍व को भारतीय संस्‍कृति की चेतना का परिचय कराने वाले धीर पुरुष भि हैं , जिन्‍होंने अपनी सक्षमता और निर्भीकता से भारत माता को गौरवान्वित किया है । स्‍वामी विवेकानंद जैसे महान व्‍यक्तित्‍व पर हमें गर्व होना चाहिए और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलना हमरा कर्तव्‍य बनता है । आइए, हम सब मिलकर स्‍वामी विवेकानंद के विचारों को अपने जीवन में अपनाकर अपनी मातृभूमि का सिर ऊंचा उठाएंगे और जीवन मूल्‍यों की रक्षा करेंगे ।
 
भारत माता की जय