जब भी हम भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बात करते हैं ताे उस पर लार्ड मैकाले की छाया आजादी के सत्तर साल बाद भी साफ दिखाई देती है। सरकार ने अंग्रेजी की गुलामी वाली शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी है। इस में शिक्षा के भारतीयकरण की बात भी कही गयी है, जो अपने आप में बहुत बड़ी अवधारणा है। हमारे यहां भारतीय दर्शन पढ़ाया ही नहीं जाता, विदेशी विचारक पढ़ाये जाते हैं। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने हजारों-हजार वर्ष पहले जो दर्शन दिया उसे बहुत कम जगह दी जाती है। लंबे समय के इंतजार के बाद माेदी सरकार ने एक ऐसी नई शिक्षा नीति लागू करने का फैसला लिया है, जाे न केवल विदेशी भाषा की जंजीरें ताेड़ने वाली है, बल्कि देश काे विकास की राह पर ले जाने के लिए उत्पादकता काे बढ़ाने वाली है। नई शिक्षा नीति का सबसे पहले तो इसलिए स्वागत है कि उसमें मानव-संसाधन मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय नाम दे दिया गया है। मनुष्य को ‘संसाधन’ कहना तो शुद्ध मूर्खता थी। मेरा मानना है कि मनुष्य संसाधन नहीं है। वह जीवन का केंद्र है और अन्य सभी चीजें उसके लिए संसाधन हैं। वह स्वयं कभी संसाधन नहीं हो सकता।
जब भी हम भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बात करते हैं ताे उस पर लार्ड मैकाले की छाया आजादी के सत्तर साल बाद भी साफ दिखाई देती है। लार्ड मैकाले का मकसद हिंदुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना था, जो रंग और रक्त में भले भारतीय हाे, लेकिन वह अपनी अभिरुचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हो। जाे उनकाे भारतीयाें पर शासन करने में उनकी मदद कर सके। लार्ड मैकाले ने 1858 में भारतीय शिक्षा एकट बनाया, जिसका मकसद भारतीयाें काे ऐसे ढंग से शिक्षित करना था, कि वह अंग्रेजों के दास बने रहे।
सरकार ने अंग्रेजी की गुलामी वाली शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी है। इसमें शोध आधारित विश्वविद्यालय का भी प्रावधान है, जिससे देश में पब्लिकेशन, रिसर्च की संस्कृति को और मजबूती मिलेगी। विश्व के जितने भी विश्वविद्यालय अच्छा करते हैं उनका रिसर्च कंपोनेंट, रिसर्च आउटपुट और पब्लिकेशेन बहुत महत्व रखता है। इस शिक्षा नीति में शिक्षा के भारतीयकरण की बात भी कही गयी है, जो अपने आप में बहुत बड़ी अवधारणा है।
हमारे यहां भारतीय दर्शन पढ़ाया ही नहीं जाता, विदेशी विचारक पढ़ाये जाते हैं। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने हजारों-हजार वर्ष पहले जो दर्शन दिया उसे बहुत कम जगह दी जाती है। हमारे आधुनिक शिक्षा जगत के सबसे बड़े मनीषियों डाॅ राधाकृष्णन, सी राजगोपालाचारी, गाँधीजी या दीनदयालजी ने भारतीय शिक्षा के बारे में क्या सोचा उसे कोई नहीं बताता। शिक्षा के भारतीयकरण से औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्ति मिलेगी और भारत, भारतीयता और भारत के प्रति विद्यार्थियो में स्वाभाविक तौर पर प्रेम पैदा होगा। नयी नीति में पाली, प्राकृत, संस्कृत भाषा की पढ़ाई और शोध समेत लुप्तप्राय हो चुकी भाषाओं के संरक्षण की बात भी की गयी है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
भारतीय संस्कृति शिक्षा के व्यवसायीकरण का मूलतः विरोध करती है और कहती है कि दुनिया में केवल शिक्षा ही ऐसा ज्ञान है जो बिक नहीं सकता। अच्छी बात यहां यह है कि इसमें निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा ली जाने वाली फीस पर अंकुश लगाने का संकेत है। यही नहीं‚ नई शिक्षा नीति से उच्च कोटि के विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत आने का दरवाज़ा भी खुल सकता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि नई शिक्षा नीति लागू होने से देश का शिक्षा स्तर ऊंचा हाेगा, तथा सभी ज्ञान के क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले शोध कार्य काे बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता से ही भारत आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य काे पा सकेगा।