आधुनिक युग की जीवन शैली तथा न्यूक्लियर परिवार व्यवस्था के कारण आज का मानव स्वयं को अक्सर अकेला और अनजाने भय से ग्रसित महसूस कर रहा है ! इस समय इस समस्या को कोरोना संक्रमण के कारण लगे प्रतिबंधों ने और भी जटिल बना दिया है ! इन कारणों से आजकल मनोरोग भी संक्रमण की तरह ही चारों तरफ फैल रहा है ! इसके परिणाम स्वरूप रोजाना आत्महत्या आम हो गई है ! अध्यात्म की दृष्टि से मनुष्य के अंदर विद्यमान आत्मा ईश्वर का अंश है और अंश अपने आप में पूर्ण नहीं होता जब तक की वह अपने पूर्ण स्वरूप ईश्वर से न जुड़ जाए ! परंतु आज के समय में जीवन की आपाधापी में मनुष्य ईश्वर से जुड़ने का प्रयास ही नहीं करता है ! जिसके कारण उसके अंदर विद्यमान आत्मा अपने आप को अकेला पाती है और उसके अनुसार ही मनुष्य का मन प्रभावित होता हैजिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य को अकेलापन महसूस होता है ! मनुष्य का शरीर प्रकृति के पांच तत्वों से निर्मित है और उसके साथ पांच ज्ञानेंद्रियां हैं तथा मन और बुद्धि है ! मनुष्य के व्यक्तित्व को जहां समाज और परिवार प्रभावित करता है वहीं पर व्यक्तित्व में प्रकृति के गुणों सत, रज और तमोगुण का भी प्रभाव होता है ! यदि तमोगुण की प्रधानता है तो मनुष्य कामी क्रोधी और अहंकारी होता है ! इस प्रकार शरीर के अंदर विद्यमान आत्म तत्व के चारों तरफ आवरण बन जाता है ! जो उसे अपने पूर्ण स्वरूप ईश्वर से नहीं मिलने देता है ! इस स्थिति में धीरे धीरे मनुष्य अकेला होकर अनजाने भय से ग्रसित होने लगता है ! जिससे वह आखिर में मनोरोगी बन जाता है ! मनोरोग के कारण ही उसे बहुत सी शारीरिक व्याधियों जैसे शुगर ब्लड प्रेशर इत्यादि घेर लेती हैं ! ऐसे व्यक्ति समाज से भी कटे होते हैं जो उनका अकेलापन और भी बढ़ाता है !
इस प्रकार के अनजाने भय और मनोरोग का कारण अक्सर पीड़ित व्यक्ति को पता ही नहीं चलते हैं ! क्योंकि इनको खोजने का उसे तरीका ही नहीं पता है ! इसके लिए अध्यात्म में स्वाध्याय का प्रावधान है ! स्वाध्याय के द्वारा मनुष्य अपने आचरण का अवलोकन करके पता लगा सकता है कि उसकी इस नकारात्मक प्रवृत्ति का क्या कारण है ! इसलिए पतंजलि के अष्टांग योग में पहले और दूसरे कदम यम और नियम का पालन करते हुए मनुष्य को अपने व्यक्तित्व पर चढ़े हुए नकारात्मक आवरण को उतारने का प्रयास करना चाहिए ! इसमें स्वाध्याय के द्वारा उसे अपनी कमियों का पता लगाकर इन्हें दूर करके मनन और ध्यान के द्वारा ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए ! इस प्रकार ईश्वर प्राणी धान होकर उसके अंदर विद्यमान आत्मा अपने पूर्ण रूप से मिलकर संतुष्ट हो जाएगी और मनुष्य का अकेलापन और अनजाना भय भी दूर हो जाएगा ! आत्मा ईश्वर रूपी सहारे के द्वारा अपने आप को मजबूत महसूस करने लगेगी ! इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने आप को इन मनो रोगों से बचाने के लिए अष्टांग योग के द्वारा दिए गए यम -- सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य असते और अपरिग्रह तथा नियम शॉ च संतोष स्वाध्याय ध्यान और ईश्वर प्राणी धान के द्वारा अपना आत्मसाक्षात्कार करें ! इस प्रकार पूर्ण आनंद के साथ जीवन यात्रा को पूरा करते हुए वह आखिर में मोक्ष को प्राप्त होगा !