असीम- दिव्य- आनंद

NewsBharati    25-Sep-2024 12:06:22 PM   
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शरीर की इंद्रियों से भोगे जाने वाला सुख क्षणिक होता है तथा विज्ञान के न्यूटन के नियम के अनुसारउसकी उतनी ही प्रतिक्रिया स्वरूप मनुष्य को उतना ही दुख भी झेलना पड़ता है ! जीव परमेश्वर काअंश है ! इस जीव रूपी अंश का परमानंद केवल परमेश्वर से जुड़ने में ही होता है ! परंतु यही अंश अपरा प्रकृति के द्वारा शरीर धारण करता है जिससे जीवात्मा के नाम से पुकारा जाता है और उसे कम फलों के अनुसार योनि प्राप्त होती है ! इसी नियम के अनुसार जीव को मनुष्य योनि प्राप्त होती है तथा अपरा प्रकृतिसे निर्मित होने के कारण मनुष्य पर प्रकृति के गुढों का भी प्रभाव होता !

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शरीर रूपी नगर का स्वामी देहदारी जीवात्मा ना तो कर्म का सृजन करती है नही ही कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैऔर नहीं कर्म फल की रचना करती है ! यह सब तो प्रकृति के गुढों—सतों, रजों और तमो गुण द्वारा ही किया जाता है ! इन गुढों के प्रभाव में मनुष्य इच्छा करता हैऔर परमेश्वर अच्छा को पूरा करते हैं ! इस प्रकार मनुष्य अपनी इच्छाओं से मोहग्रस्त हो जाता है और इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए हर तरह के काम करने लगता है ! जिसका प्रतिफल उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है ! इस प्रकार आत्मा कर्मों तथा इच्छित फल प्राप्ति के मोह से ग्रस्त होकर अपने असली स्वरूप से दूर होकर दुखों के भंवर में फंसकर जन्म और मृत्यु की भवसागर में फंस जाती है !

संसार की 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य को विवेक प्राप्त है ! इस विवेक के द्वारा वह अपनी आत्मा को प्रकृति के गुढों से बचाता हुआ कर्म फलों में फंसने से बचा सकता है ! इसके लिए उसे लोभ, काम, क्रोध और मोह जैसे विकारों पर नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है ! क्योंकि पहले ज्ञानेंद्रिय द्वारा किसी वस्तु को वह देखता है फिर उसे पाने की इच्छा जागृत होती है ! इच्छित वस्तु के प्राप्त न होने पर क्रोध पैदा होता है और उसके बाद उसकी बुद्धि का पतन होकर वह नाश को प्राप्त हो जाता है ! इसलिए मनुष्य को अपने विवेक से अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना चाहिए जिससे काम क्रोध जैसे विकारों से वह ग्रसित ना हो ! इस प्रकार उसकी आत्मा पर भौतिक इच्छाओं और उनके प्रतिफल रुपी माया जालअपना प्रभाव नहीं डाल सकेगा ! और इस प्रकार आत्मा शुद्ध हृदय से अपने पूर्ण स्वरूप परमात्मा से संबंध स्थापित करके असीम दिव्यानंद का अनुभव कर सकेगी !
इस विवेक पूर्ण मनुष्य योनि का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति हैऔर शुद्ध हृदय से आत्माअपने परमात्मा स्वरुप में मिलकर अपने परम उद्देश्य की प्राप्ति कर सकती है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.