जीवन में वैराग्य की आवश्यकता

NewsBharati    15-Jul-2024 10:16:02 AM   
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जीवन के अंतिम समय में हर मनुष्य शांति चाहता है और यह शांति उसे वैराग्य के अपनाने से ही मिल सकती है ! वैराग्य का तात्पर्य है अपने मन को काम, क्रोध, लोभ और मोह से दूर करते हुए उसे नियंत्रित करना ! क्योंकि मनुष्य की शांति का केंद्र मन ही है ! सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन चार आश्रमों—-ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,बानप्रस्थ और सन्यास आश्रम में विभाजित है ! ब्रह्मचर्य आश्रम विद्या अर्जन एवं ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए स्वयं कोआगामी जीवन के लिएतैयार करने के लिए होता है ! गृहस्थ के अंतर्गत मनुष्य जीवन के नियत कर्म जैसे परिवार का पालन पोषण समाज के प्रति नियत कर्म करता है !
 

The need for detachment in life 

इसलिए इसे कर्म क्षेत्र भी बुलाया जाता है !बानप्रस्थ में वह जीवन के ऐसे मोड़ पर पहुंच चुका होता है जहां धीरे-धीरे जिम्मेदारियां समाप्त हो चुकी होती है और इस स्थिति में वह मानसिक शांति चाहता है ! यह मानसिक शांति उसके मन पर निर्भर होती है क्योंकि मन के द्वारा ही मनुष्य का जीवन नियंत्रित होता है ! मनुष्य ज्ञानेंद्रिय–आंख, कान, नाक, जीव और त्वचा के द्वारा ही संसार का अनुभव करता है और यह सब इंद्रियां सूचना मन को पहुंचती है ! इसके अलावा भूतकाल की यादें भी मन को अशांत करती हैं !

इस स्थिति से उबरने का मार्ग केवल वैराग्य है ! यहां पर वैराग्य का तात्पर्य है विचारों का वैराग्य इसमें सर्वप्रथम ज्ञानेंद्रिय द्वारा प्राप्त सूचना के प्रति उदासीन मनोवृति अपनाना जिसके द्वारा मनुष्य इंद्रियों के भोग विलास से बचते हुए काम क्रोध जैसे विकारों से भी मुक्ति पा सकता है ! इसके बाद भूतकाल की यादों, आदतों और विचारधारा से पीछा छुड़ाने के बारे में प्रयास किया जाना चाहिए ! हालांकि पुरानी यादों से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता फिर भी हम कोशिश कर सकते हैं कि यह यादें हमारे आज को नकारात्मक रूप से प्रभावित न कर सकें ! यदि हम यह कर सकते हैं तो इसे सच्चा वैराग्य या सन्यास कहा जा सकता है ! मन को पुरानी यादों औरआदतों इत्यादि से दूर रखने के लिए ऋषि पतंजलि द्वारा बताए हुए यम और नियम को अपनाना चाहिए !मन को शांत रखने के लिए मंत्र जाप करना चाहिए क्योंकि मंत्र जाप मन को ईश्वर के साथ जोड़ना होता है जिससे वह पुरानी यादों से ना प्रभावित हो ! ध्यान और प्राणायाम के द्वारा दृढ़ इच्छा शक्ति प्राप्त होती है जिसके द्वारा एक बैरागी अपने जीवन में वैराग को अपनाकर मन को नियंत्रित करता हुआ शांति प्राप्त करके जीवन के परम लक्ष्यमोक्ष की कामना कर सकता है !

ईश्वर निर्गुण अनादी और परम शांत हैं इस कारण ईश्वर में इसी प्रकार की आत्मा विलीन हो सकती है जिसमें यह सब गुड हो ! जीवन में कर्म क्षेत्र से मुक्त होकर बानप्रस्त औरसंन्यास के समय मेंमनुष्य आराम से बैराग के द्वाराअपने मन को शांत कर सकता हैऔर प्रकृति के तीनों गुडो से ऊपर उठाते हुए स्वयं को ईश्वर में विलीन होने के योग बन सकता है ! मनुष्य योनि का परम उद्देश्य हीईश्वर प्राप्ति होता है इसलिए हर मनुष्य को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.