जीवन के अंतिम समय का दृश्य और परिणाम

NewsBharati    15-Mar-2024 10:39:09 AM   
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भगवान कृष्णने गीता में कहा है की अंतिम समय में मनुष्य जो भी सोचता हैऔर जैसी उसकी विर्ती होती है वही उसेअगले जन्म में प्राप्त होता है ! जीवन के अंतिम समय का दृश्य मनुष्य को अवचेतन मन दिखाता है !इसलिए मनुष्य का सबसे बड़ा उद्देश्य होना चाहिए कि वहअपने विवेक द्वारा अपने परलोक को सुधारे ! यहअवसर केवल मानव योनि में ही प्राप्त होता है क्योंकिअन्य योनियो मेंजीव को विवेक प्राप्त नहीं होता है ! मनुष्य के मन की दो अवस्थाएं जागृत औरअवचेतन मन होती है !
 
Life Death End

जागृत अवस्था में वह दिन प्रतिदिन का जीवन जीता हैऔर अवचेतन कंप्यूटर के मेमोरी कार्ड की तरह होता है जिसमें दिन प्रतिदिन के कर्मों और उनके परिणामों की छवि अंकित होती रहती है ! व्यक्ति अनुभव करता हैं कि जीवन में जब भी कठिन समय आता है तब अक्सर उसके द्वारा किए गए अच्छे बुरे कर्मों की याद उसेआने लगती है ! अच्छे कर्म कठिन समय का सामना करने के लिए उसका मनोबल बढ़ाते हैं जबकि बुरे कर्मों के द्वारा हुए अपने आप को वह हतोत्साहित महसूस करता है !अंतिम समय में वह असहाय स्थिति में होता है और इस समय अवचेतन मन उसके जीवन के अच्छे बुरे कामों का चित्र उसके सामने प्रस्तुत करना शुरू कर देता है जिसको देखकर इन कर्मों के अनुसार उसकी विर्ती बन जाती है जिसके आधार पर उसेअगला जन्म प्राप्त होता है ! कर्मों के अनुसार यदि उसकी विर्ती पशुओं जैसी होती है तो उसे पशु योनि ही प्राप्त होती है !

रामचरितमानस में वर्णन है किआखिरी समय में दशरथ जी को वह दृश्य याद आने लगा जिसमें उन्होंने श्रवण कुमार की अनजाने में हत्या की थी जिसके परिणाम स्वरूप श्रवणकुमार के पिता ने उन्हें श्राप दिया था कि जिस प्रकार पुत्र शोक में उनकी मृत्यु हो रही है इसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र के वियोग में होगी होगी !इसी प्रकार भीष्म पितामह मृत्यु से पहले पूरे 6 महीने तीरों की सैया पर पड़े रहे थे ! परंतु दार्शनिकों के अनुसार भीष्म यादों की बाणों की सैया पर थे ! जिनके द्वारा उन्हें बाणों से भी ज्यादा पीड़ा मिल रही थी ! कुरु परिवार में भीष्म सबसे ज्यादा बुजुर्ग एवं आयु के थे ! इस स्थिति में उनसे आशा की जाती थी कि वे परिवार में होने वाले अनैतिक कार्यों के विरुद्ध आवाज़ उठाएं परंतु उनके सामने भरी सभा में उनकी कुल वधू का चीर हरण होता रहा और वह बलशाली होते हुए भी इसको चुपचाप देखते रहे जिसका अपराध बोध उनके अवचेतन मन में बैठ गयाऔर इसी के द्वारा उन्हें अपने आखिरी समय मे तीरों जैसी पीड़ा का अनुभव हो रहा था !

आज के युग में अक्सर शक्ति तथा बल के आधार पर लोग जानबूझकर अनैतिक कर्मों में लिप्त रहते हैं जिस कारण ये अक्सर अशांत तथाआक्रोशित रहते हैंऔर ऐसे व्यक्ति का जबआखिरी समय आता है तब अबचेतन मन उसकी वृत्ति पशुओं जैसी बना देता है जाती है जिसके परिणाम स्वरूप उसेअगले जन्म में पशु योनि ही प्राप्त होती है ! इसके विपरीत शुभ कर्म करने वाले व्यक्ति कोअपने कर्मों के परिणाम स्वरूप ईश्वर की छवि दिखाई देने लगती हैऔर वह इसके फल स्वरुप परमेश्वर में विलीन होकर परम शांति को प्राप्त होता है !

इसलिए जिस प्रकार मनुष्यअपने जीवन के आखिरी समय के लिए धन एकत्रित करता है इसी प्रकार से उसेअगले जन्म के लिए शुभ कर्मों को भी एकत्रित करना चाहिए जिसके द्वारा उसे जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त हो सके !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.