ईश्वर भक्ति और माया

NewsBharati    11-Nov-2024 11:47:26 AM   
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यह अटल सत्य है कि जहां पर श्रद्धा और ईश्वर भक्ति होगी वहां पर कुमाया का प्रभाव नहीं होगा क्योंकि माया और भक्ति दोनों स्त्रियां हैंऔर दो स्त्री एक स्थान पर नहीं रह सकती ! ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण किया है और वह इसका संचालन माया से करते हैं !


God Bhakti and Maya

माया दो प्रकार की होती अच्छी माया संसार में निर्माण और जीव को सदमार पर चलने की प्रेरणा देती है जबकि कुमाया विनाश और जीव को काम क्रोध लोभ रूपी शस्त्रों से ईश्वर से विमुख करके उसे 84 लाख योनियोंके भवसागर में डालती है ! ईश्वर कृपा और जीव केअथक प्रयासों के बाद जीव को मनुष्य योनि प्राप्त होती है ! जिसमें सोचने की शक्ति और विवेक केवल मनुष्य योनि को ही प्राप्त है ! विवेक के द्वारा वह धर्म के मार्ग पर चलकर वैराग्य प्राप्त कर सकता है और वैराग से ज्ञान प्राप्त होता होगा, ज्ञान से ईश्वर भक्ति प्राप्त होगी जिसके द्वारा वह निष्काम कर्म करता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है ! जो संसार में हर प्राणी का परम उद्देश्य होना चाहिए !

कुमाया प्रकृति के गुड्ओं के अनुसार मनुष्य को प्रभावित करती है ! तमोगुण के प्रभाव में वह पशु की तरह केवल निद्रा, काम और भोग विलास के लिए जीता है ! रजो गुण में लोभ, मोह और कामना के लिए हर समय प्रयास रतऔरकर्म करता है ! मनुष्य मनुष्य सांसारिक वस्तुओं की कामना करता है फिरउसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करता है ! यदि वह इसमें सफल नहीं होता है तो उसके अंदर क्रोध जागृत होता है जिससे उसका विवेक समाप्त हो जाता हैऔर वह विनाश को प्राप्त होता है ! इस प्रकार वह ईश्वर से विमुख होता हुआ दोबारा कष्टदायक भवसागर में गिर जाता है !

गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म ज्ञान तथा भक्ति योग का मार्ग ईश्वर प्राप्ति के लिए बताया है ! इसमें निष्काम कर्म के द्वारा कर्म फल ईश्वर को समर्पित कर किया जाता है जिससे श्रद्धा और भक्ति प्राप्त होती है ! 84 लाख योनियों के आवागमन को देखते हुए मनुष्य को अपने विवेक से अपने आप को प्रकृति के तमों और रजोगुण से ऊपर उठाते हुए सतोगुण को अपनाना चाहिए ! प्रकृति के गुडो के प्रभाव से मुक्ति के लिए जीव केवल मनुष्य योनि में ही प्रयास कर सकता है ! इसलिए मनुष्य योनि को अनमोल योनि कहा गया है !

तमो और रजो गुण से मुक्ति पाने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य को सद्पुरुषों की संगतअपनानी चाहिए और इसके साथ ही उसे सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए ! यह सद्गुरु कोई धार्मिक ग्रंथ जैसे गीता, रामचरितमानस जैसे ग्रंथ हो सकते हैं ! जिनमें ईश्वर ने मनुष्य को स्वयं सदमार्ग दिखाया है !इसी को देखते हुए सिख धर्म में कहा गया है कि गुरु मानयों ग्रंथ ! इसके साथ नवधा भक्ति जिसका वर्णन मानस और गीता में किया गया है इसके अनुसार मनुष्य प्रभु का नाम जपते हुए उसमें पूरी श्रद्धा के साथ विश्वास करते हुए पूर्व संसार में हर स्थान पर केवल ईश्वर को ही देखता है ! इस प्रकार मनुष्य कुमाया के प्रभाव से मुक्त होकर ईश्वर प्राप्ति के मार्ग परउन्नति करते हुएअंत मे मोक्ष प्राप्त करता है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.