जैसा कि योग के नाम से विदित होता है जोड़ना और यह जोड़ना है आत्मा का परमात्मा के साथ जिसे आत्मसाक्षात्कार के नाम से जाना जाता है ! इस में सबसे बड़ी अड़चन होती है मनोधर्म से उत्पन्न इच्छाएं जिन्हें कामना नाम से जाना जाता है ! माया के वशीभूत होकर मनुष्य इन कामनाओं के भंवर में पड़ा रहता है और इसी को भवसागर के नाम से भी पुकारा जाता है !
यदि मनुष्य इच्छाओं को निरपवाद रूप से त्याग दें और मन के द्वारा इंद्रियों को सभी ओर से बस में कर ले तो उसका आत्मसाक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ! क्योंकि जब तक मन चारों तरफ दौड़ता रहेगा तब तक आत्मसाक्षात्कार संभव नहीं है ! संसार में काम के बस में होकर मनुष्य आत्मसाक्षात्कार से दूर चला जाता है और इसी भंवर में पढ़कर वह अपना जीवन पूरा करके दूसरी योनि में कर्मों के आधार पर प्रवेश कर जाता है !
अर्जुन ने यही सवाल भगवान से किया था कि वह मन को किस प्रकार नियंत्रित करें ! इसके लिए भगवान ने बताया कि सर्वप्रथम दृढ़ संकल्प होना और इसके बाद परमात्मा के प्रति गहरी श्रद्धा जागृत करनी चाहिए ! जिससे वह अपने मन को परमात्मा पर केंद्रित कर सके ! इसके बाद धीरे-धीरे क्रमवार पूर्ण विश्वास पूर्वक बुद्धि के द्वारा योग के उद्देश्य परमात्मा से जुड़ना संभव है ! मन को नियंत्रित करने का सबसे सरल मार्ग है श्रद्धा पूर्वक पतंजलि योग सूत्र यम— नियम का जीवन में पालन करना ! यम—-- ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य, असते और अपरिग्रह है तथा नियम—-- शोच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्राणी धान है ! यम के द्वारा अहिंसा से तात्पर्य है मानसिक और शारीरिक हिंसा न करना !
चोरी न करना असते है तथा आवश्यकता से ज्यादा संग्रह न करना अपरिग्रह कहलाता है ! नियम में सबसे महत्वपूर्ण है मन की शोच इसके द्वारा मनुष्य मन को सब प्रकार के अनुभवों और यादो से मुक्त करके सम भाव को प्राप्त कर लेता है ! स्वाध्याय के द्वारा वह हर समय स्वयं का अध्ययन करता रहता है और मन को भटकाने वाली कामनाओं का पता लगाकर उन्हें नियंत्रित कर सकता है ! इस प्रकार यम नियम में बताएं सूत्रों का पालन करते रहना ही तप कहलाता है !
इस प्रकार श्रद्धा पूर्वक यम नियम रूपी तप को करते-करते मनुष्य की आत्मा परमात्मा से जुड़ जाती है और उसे आत्मसाक्षात्कार रूपी मोक्ष प्राप्त हो जाता है जो मनुष्य योनि का परम उद्देश्य है !