अगले जन्म का चयन

NewsBharati    21-Feb-2023 16:14:16 PM   
Total Views |
संसार की 84,00,000 योनियों में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने कर्म फल के अनुसार बनने वाली वृत्ति के द्वारा अपने अगले जन्म की योनि का चयन कर सकता है ! इसीलिए मानस में कहां गया है कि बड़े भाग मानुष तन पावा ! संसार की सारी योनियों में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे विवेक प्राप्त है जिसके द्वारा वह अपनी सोच द्वारा अपने कर्मों को चुन सकता है जिनके फलों के अनुसार उसकी वृत्ति तैयार होती है और उसी वृत्ति के अनुसार ईश्वर उसे मोक्ष या अगला जन्म प्रदान करते हैं ! मनुष्य योनि का मुख्य लक्ष्य तो मोक्ष ही होना चाहिए जिसका तात्पर्य है परम ब्रह्म में विलीन होना जिसके बाद संसार का जीवन मरण का चक्कर समाप्त हो जाता है ! परंतु मनुष्य को ज्ञानेंद्रियां और मन भी प्राप्त है जिनके द्वारा वह संसार का भोग स्वयं के लिए करता है !

Gita


जैसा की सर्वविदित है संसार में प्रकृति के 3 गुण सत, रजत और तमोगुण हैं ! भगवान ने गीता में कहां है के जो मनुष्य संसार में हर प्राणी में ब्रह्म को देखता है वह अपने कर्म फल ईश्वर को सौंप देता है क्योंकि वह स्वयं भी ईश्वर का ही अंश है इस प्रकार वह कर्मफल से मुक्त होकर सतोगुडी कहा जाता है ! जो प्राणी अपने कर्मों का फल स्वयं के भोग के लिए करता है और उसे और भी ज्यादा कामना होती है उसे रजोगुडी कहा जाता है और जो केवल पशु की तरह कर्म करता है औरउसके फल को पशु की तरह केवल स्वयं के भोग के लिए इस्तेमाल करता है उसे तमोगुण मैं कहा जाता है ! इस प्रकार कर्म फल के अनुसार मनुष्य की वृत्ति तैयार होने लगती है ! जैसा सर्वजीत है प्रत्येक जीव में आत्मा और परमात्मा दोनों विद्यमान रहते हैं परंतु आत्मा जीव के मन के अनुसार कर्म फल में भागीदार बन जाती है और परमात्मा केवल उस जीव के कर्मफल के अनुसार तैयार वृत्ति को देखता रहता है जिस प्रकार एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे हैं एक फल खा रहा है और दूसरा उसे देख रहा है !

ईश्वर जीव के शरीर के अंदर उसकी हर गतिविधि और उसकी वृत्ति को चुपचाप देखता रहता है ! वह जीव की इस प्रकार तैयार वृत्ति के अनुसार उस प्राणी को अगला जन्म उपलब्ध करा देता है ! इससे हमें ज्ञात होता है कि किस प्रकार केवल मनुष्य ही अपने अगले जन्म का चुनाव कर सकता है जबकि अन्य प्राणियों को 8400000 योनियों के चक्कर लगाने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है जिसके बाद वह मोक्ष की कामना कर सकता है ! इसलिए हर मनुष्य को अपने विवेक का इस्तेमाल करके अपने कर्मों को चुनना चाहिए जिससे उसकी पवित्र सोच तैयार हो और यह सोच केवल शुभ कर्मों को निष्काम भाव से करने के बाद ही तैयार होती है ! धीरे-धीरे इस प्रकार उसकी वृत्ति बनती है और वह ईश्वर के परमधाम मैं पहुंचकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है !

इसको देखते हुए हर मनुष्य को अपने विवेक के द्वारा अपने कर्मों को चुनना चाहिए जिससे उसके कर्म फल को वह ईश्वर को समर्पित कर सकें और स्वयं कर्मफल से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त सके अन्यथा उसे अपने कर्म फलों के अनुसार संसार की विभिन्न योनियों में चक्कर लगाना पड़ेगा जिसका केवल वह स्वयं जिम्मेदार है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.