भारत द्वारा 38,000 वर्ग किलोमीटरअक्साई चिन क्षेत्र कोचीन के हाथों गंवाने की कहानी

NewsBharati    09-Dec-2023 17:44:39 PM   
Total Views |
लोकसभा में कश्मीर पर गृहमंत्री का बयान है कि जब भारतीय सेना आक्रमणकारी पाकिस्तान सेना को अक्टूबर 1947 में परास्त कर रही थी तथा अपने क्षेत्र को पाक के कब्जे से मुक्त कर रही थी तब पंडित नेहरू शांति शांति करते हुए संयुक्त राष्ट्र सङ्ग में गए जबकि भारत को उस समय इसकी आवश्यकता नहीं थी ! उनके इस कदम से पूरा जम्मू कश्मीर एक विवाद क्षेत्र बन गया तथा कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाक कब्जे में पूरे 76 साल से है जिसका निस्तारण निकट भविष्य में नजर नहीं आता ! इसी के साथ जब जम्मू कश्मीर राज्य का अन्य 560 रियासतों की तरह निश्चित कानून प्रक्रिया के द्वारा भारत में विलय हुआ हो गया था तब विलय के पूरे 7 साल के बाद शेख अब्दुल्ला के कहने पर नेहरू ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए वहां धारा 370 और 35a लागू की और इनको संविधान में जोड़ा !
 
 
Aksai Chin

जिनके कारण इस राज्य में भारत का कानून लागू नहीं होता इसलिए इस राज्य मे भारी व्यवस्था फैली जिसका फायदा उठाकर पाकिस्तान ने यहां पर आतंकवाद के द्वारा यहां की शांति भंग की जिसमें3.5 लाख कश्मीर पंडितों को वहां से विस्थापित होना पड़ा ! इसी के साथ देश को यह भी जानना चाहिए की किस प्रकार नेहरू की कार्यशैली और उनके विश्व पटल परलोकप्रिय नेता की छविके लिए भारत कोअपना अक्साई चिन क्षेत्रचीन के हाथों गवाना पड़ा !इस सबके बावजूद भी कुछ कांग्रेसी नेता चीन के साथ गलवान झड़प में भारतीय क्षेत्र को चीन के हाथों हारने की बात करते हैं जो सत्य नहीं है !

चीन में1949 में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुईऔर माओ वहां के शासन अध्यक्ष बने !उसके बाद माओ ने विस्तारवादी नीति अपनाई जिसमें चीन नेअपने पड़ोसी देशो की भूमियों पर कब्जे करने शुरू कर दिए और इसी के चलते चीन ने 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया !इसके साथ ही चीन ने दक्षिणी तिब्बत से लगाते हुए भारत केअक्साई चिन क्षेत्र में भीअपनी कब्जे की कार्रवाई शुरू कर दी ! इसके लिएउसने जिंगजियांग के काशगर को तिब्बत के लासा से जोड़ने वाली सड़क जी 219 का निर्माण करके किया जिसमें पूर्वी लद्दाख के कुछ क्षेत्रों में भी इस सड़क का निर्माण किया गया ! इसकी सूचना नेहरू सरकार कोमिल गई थीपरंतु सरकार ने इस सूचना को देश को बताना उचित नहीं समझाऔर इसे गोपनीय रखा !उस समय मीडिया इतना विकसित नहीं था जो इस प्रकार की खबरों को स्वयं निकाल लेता !

चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे का विरोध पूरे विश्व के देशों ने किया परंतु भारत ने इस पर कोई चीन के विरुद्ध प्रतिक्रिया नहीं की क्योंकि उसे समय नेहरूविश्व पटेल पर शांति के पुजारी के रूप में अपनी लोकप्रियता स्थापित करना चाहते थे जिसमें उन्हें चीन की सहायता चाहिए थी ! शांतिप्रिय नेता की छवि बनाने के लिए ही भारत और चीन के बीच 1954 पंचशील समझौता हुआ और हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा चारों तरफ गुंजा ! पंचशील समझौते के पांच सिद्धांत थे जिन में शांतिपूर्ण वातावरण के लिए एक दूसरे की प्रभु सत्ता तथा क्षेत्र का सम्मान, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देना और बराबरी तथा शांतिपूर्ण तरीके साथ- रहना !इस संधि पर नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाओएन लाई ने हस्ताक्षर किए थे ! इसी के साथ तिब्बत में व्यापार और समानय संबंधों के लिए भी चीन के साथ 8 वर्षों का समझौता किया गया !तिब्बत पर इस प्रकार की संधि से विश्व को यह संदेश गया कि भारत ने तिब्बत पर चीन के कब्जे को मान्यता प्रदान कर दी है !इसके साथ ही भारत ने तिब्बत में 1904 से लाहसा संधि के द्वारा स्थापित सेना की तीन चौकिया को भी वहां से हटा लिया था ! इस प्रकार भारत ने तिब्बत के विषय पर चीन के सामने पूरी तरह से समर्पण कर दिया था ! भारतने हमेशा पंचशील समझौते का आदर किया परंतु चीन ने कभी इसको नहीं माना !

इसके बाद भी चीन, भारत -चीन सीमा परऔर भी क्षेत्र पर अपना अधिकार जताने लगा ! जिसमे बारहोती के चारागाह और उत्तर प्रदेश-- तिब्बत सीमा के क्षेत्र थे ! भारत की सरकार का ध्यान उसकी उत्तर पूर्व सीमाओं की तरफ उस समय गया जब खुफिया सूत्रों से पूरे 1952 में सूचना आने लगी कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में घुसने के लिए सड़क बनानी शुरू कर दी है जो सिंहकुयांग से अक्साईचिन होते हुए पश्चिमी तिब्बत में लांकिला दर्रे पास घुसेगी ! इस गुप्त सूचना की पुष्टि भारतीय वायुसेना की खोजी उड़ानों से भी हो गई थी !जिन में सड़क साफ-साफ दिखाई दे रही थी !

इसकी पुष्टि के लिए भारतीय सेना के प्रमुख जर्नल करिअप्पा ने सेना के खोजी दल को कप्तान राजेंद्र नाथ की कमान में अक्साईचिन क्षेत्र में चीन की गतिविधियों के बारे में पता लगाने के लिए भेजा ! इस दल ने पैदल चलकर17000 फीट ऊंची पहाड़ियों को पार कर इस क्षेत्र की गुप्त सूचनाओं को एकत्रित किया तथा इसने पाया कि इस क्षेत्र में चीन ने सड़क के साथ-साथ और भी कब्जे की कार्रवाई की हुई है ! यह रिपोर्ट सेना मुख्यालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को दी दी जिससे प्रधानमंत्री इस क्षेत्र कीअसलियत के बारे में जान सके ! परंतु पंडित नेहरू के आदेश पर इस रिपोर्ट को गोपनीय माना गया तथा देश को अभी तक यह पता नहीं चल पाया कि उसकी भूमि पर चीनी कब्जा होना शुरू हो गया है !अपनी सैनिक शक्ति के घमंड में चीन ने भारत के राजदूतको 1953 में ही बीजिंग में बता दिया था कि वह तिब्बत में भारत की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा और ना ही भारत को भारत तिब्बत सीमा परउसकी सैनिक किले बंदी पर कोई एतराज होना चाहिए !

उपरोक्त गतिविधियों से साफ संदेश मिल रहा था कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के अनुसार भारत की अक्साई चिन तथा नेफ़ा क्षेत्र में कब्जा करने की योजना बना रहा है और धीरे-धीरे वह कब्जा कर भी रहा हैं ! इसकी सूचना समय-समय पर रक्षा मंत्री कृष्णमनन तथा नेहरू तक भी पहुंच रही थी !इस समय भारतीय सेना चीनी सीमा पर चीन के किसी भी हमले के मुकाबले के लिए तैयार नहीं थी क्यों किसेना के पास ना तो आधुनिक हथियार थेऔर ना ही इस क्षेत्र में संचार के लिए सड़क इत्यादि थी जिससे सेना के लिए सहायता पहुंच सके !सीमाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 1959 तत्कालीन सेना प्रमुख जर्नल थिमैया ने प्रधानमंत्री से सेना के लिएआधुनिक हथियार और गोला बारूद के लिए मांग की जिस पर प्रधानमंत्री नेउदासीनता दिखाते हुएउनकी मांगों को अनसुना कर दिया ! चीन की लगातारआक्रामक गतिविधियों को देखते हुए भीप्रधानमंत्री यही कहते रहे कि चीन कभी भी भारत पर हमला नहीं करेगा क्योंकि हिंदी चीनी भाई-भाई हैं ! जनरल थिमैया ने बार-बार नेहरू को चीनी खतरे के बारे में आगाह किया परंतु नेहरू ने जनरल थिमैया के सुझावों पर कोई ध्यान नहीं दिया ! इससे निराश होकर थीमैया ने सेना प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था ! इसी समयआईबी के प्रमुख बी एन मौलिकअमेरिका के साथ मिलकरअपने स्तर पर लद्दाख क्षेत्र से तिब्बत में विद्रोही संगठनों को सहायता पहुंचा रहे थे ! जिसके लिए उन्होंने भारत सरकार से सहमति लेने को जरूरी नहीं समझा ! इस प्रकार भारत चीन में तनाव बढ़ता गयाऔर तनाव तब चरम पर पहुंचा जब मई 1962 मेंबी मौलिक नेआईबी के लिए सूचना एकत्रित करने के लिए तवांग से आगे दोनों देशों की सीमाओं के बीच में तीन सैनिक चौकिया स्थापित करवा दी ! इससे चीन को संदेश गया कि शायद भारतआक्रमक मुद्रा में है ! इसलिए चीन नेअचानक अक्टूबर1962 में मानसून सीजन के समाप्त होते ही भारत पर लद्दाख से लेकर अरुणाचलप्रदेश की सीमाओं पर हमला कर दिया ! भारतीय सेना इस हमले के लिए तैयार नहीं थी परंतु फिर भी भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता की परंपरा के अनुसार चीनी सेना का मुकाबला किया तथा इन हमलावरों कोभारतीय सीमा में और आगे बढ़ने से रोका ! इसमें मेजर शैतान सिंह तथा सूबेदार गुमान सिंह इत्यादि की वीरता की कहानिया आज भी प्रसिद्ध है ! इस सब के बावजूद भी इस युद्ध मेंभारत को करारी हार का मुंह देखना पड़ा तथाइसके बाद चीन ने भारत के अक्साई चिन पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया जो आज भी उसके कब्जे में है !
इतनी बड़ी हार के बादभारतीय सेना का मनोबल काफी गिर गया था इसलिए हार के असली कारणो का पता लगाने के लिए मार्च 1963 में सेना ने एक जांच कमेटी गठित की जिसके अध्यक्ष लेफ्टिनेंटजनरल हैंड्रेनसन बुक्स थे तथा इसके सदस्य ब्रिगेडियर भगत थे ! इस कमेटी ने पूरे 6 महीने सीमाओं पर जाकर तथा सेना के डॉक्यूमेंट की गहराई से अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट तैयार की जो प्रधानमंत्री के निर्देश पर इस समयगोपनीय घोषित कर दी गई थीऔर इसके बारे मेंदेश को कुछ नहीं बताया गया इसीलिए1963 से लेकर आज तक यह रिपोर्ट गोपनीय है !शायद इस रिपोर्ट में सरकार की पूरी लापरवाही तथा अपनी रक्षा तैयारों के प्रति दिखाई गई उदासीनता का कच्चा चिट्ठा दिया गया था जिसकोनेहरूसार्वजनिक नहीं करना चाहते थे इस प्रकारपंडित नेहरू चीन की आक्रामक गतिविधियों के बारे में देश को कुछ भी नहीं बता रहे थे जिसके कारणआखिर में देश कोअपनी38000 वर्ग किलोमीटरभूमि को चीन कोदेना पड़ा ! शायदइसी अपराध बोध में1963 में हीउनकी मृत्यु हो गई !
परंतु इस समय पूरे देश को यहजानकार गर्व होगा कि भारतीय सेना अपने आधुनिक हथियार और गोला बारूद के साथ-साथ सीमाओं पर संचार के साधनों की व्यवस्था के कारण इतनी सक्षम है कि वह चीन के हर हमले कापूरी तरह से जवाब देने मैं सक्षम है ! इसका प्रदर्शन हमारी सेना 2019 में गलवान मेंऔर2022 में तवांग में कर चुकी है ! जमीनी सीमाओं के साथ-साथ भारत नेअमेरिका के साथ मिलकर क्वॉड के रूप मेंउसकी दक्षिणी चीन सागर में भी घेराबंदी कर ली हैजिसके कारण चीन काफी घबराया हुआ है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.