ईश्वर भक्ति का सरल मार्ग

NewsBharati    23-Nov-2023 14:54:02 PM   
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आध्यात्मम में ईश्वर भक्ति को बड़े गूड शब्दों में बताया जाता है जिसको एक साधारण मनुष्य समझ पाने में असमर्थ रहता है जिसके कारण उसके अंदर भक्ति भावना पूरी तरह से जागृत नहीं हो पाती है ! परंतु रामचरितमानस की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें गूड़ आध्यात्मिक तथ्यों को सरल भाषा में इस प्रकार बताया गया है जिससे एक मनुष्य इन तथ्यों को आसानी से समझकरअपने आप कोभक्ति के प्रति समर्पित कर सके ! इसी क्रम मेंभगवान राम ने वनवास के समय एक बनवासी स्त्री शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया ! इसे भगवान ने उसे 9 चरणों में समझाया है इसलिए इसे नवधा भक्ति के नाम से पुकारा जाता है ! इसमें प्रथम है संतों का सत्संग जिसके द्वारा मनुष्य को ईश्वर के बारे मेंज्ञान प्राप्त होता है तथा संतो के आचरण से उसे जीवन जीने का उचित मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है ! संतो के सत्संग से मनुष्य के अंदर भक्ति की भावना की एक प्रकार से नीव पढ़नी शुरू हो जाती है !
 

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इसी क्रम में तीसरा कदम है अहंकारऔर अभियान से मुक्त होकर गुरु के प्रति श्रद्धा जागृत करना ! इस श्रद्धा से मनुष्य के अंदर स्वत ही ईश्वर के गुण समूहों को बार-बार याद करने की प्रेरणा प्राप्त होती हैजिसे भक्ति का चौथ! सोपान भी कहते हैं ! इस स्थिति में भक्त का पूर्ण विश्वास ईश्वर के प्रति स्थापित हो जाता है और वह भक्ति में लीन रहने के लिए ईश्वर के नाम जैसे राम मंत्र का जाप करके स्वयं को ईश्वर से जोड़ने का प्रयास करता है ! और धीरे-धीरेवह ईश्वर से जुड़ाव महसूस करने लगता है !इसके बाद भक्ति मेंऔर उन्नति करने के लिए उसे इंद्रियों का निग्रह करके स्वयं को इंद्रिय विषयों के भोगों से अलग कर लेना चाहिए !

इससे वह काम क्रोध लोभ जैसे दोषों से मुक्त होकर सम स्थिति में पहुंच जाएगा इसे भक्ति का छठा चरण बताया गया है ! इस स्थिति में पहुंच करस्वत ही भक्त को पूरा संसार ईश्वरमय दिखाई देने लगेगा और वह संसार के हर जीव में ईश्वर का दर्शन करके कर्म योग का मार्ग अपना लेता है ! जिसका मुख्य उद्देश्य है अपने कर्म फल को वहईश्वर को समर्पित कर देता है !इसके साथ ही भगवान ने शबरी को बताया की ईश्वर से भी ज्यादा संत को समझना चाहिए !आठवीं भक्ति में संतोष पर जोर दिया गया है जिसका भाव है जितना प्राप्त हो जाए उसी में मनुष्य को संतोष का लेना चाहिए ! और इस प्रकार का संतोष तभी संभव है जब ईश्वर में मनुष्य की पूर्ण श्रद्धा होगी !आखिर में मनुष्य को सारे संसार को ईश्वर के विशाल रूप में देखते हुए स्वयं को उसका हिस्सा मानना चाहिए !इस प्रकार एक भक्त को ईश्वर की पूर्ण भक्ति प्राप्त हो सकती है !

भक्ति का उद्देश्य केवल और केवल ईश्वर प्राप्ति या मोक्ष ही होता है !अध्यात्मम मे इसके लि एज्ञान, कर्म औरभक्ति योग के मार्ग बताए गए हैं ! ज्ञान योग में ब्रह्म की खोज की जाती है जिसमें निर्विकार ब्रह्म की कल्पना की जाती है !जिसमें ज्यादातर मार्ग से भटकने की संभावना रहती है !कर्म योग में मनुष्य को निष्काम करके उसके फल को ईश्वर को समर्पित करना होता है ! इस प्रकार कर्म करते-करते वह ईश्वर भक्तिप्राप्त करके ! साकार ब्रह्म की पूजा करने लगता है ! जिसमेंमार्ग से भटकने का कोई संभावना नहीं होती है !इसलिएअपनी जीवन यात्रा को सफल बनाने के लिए हर मनुष्य को भगवान राम के द्वारा दिखाए हुए नवधा भक्ति के मार्ग को अपनाते हुए ईश्वर प्राप्ति करनी चाहिए !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.