देश में नागरिक सुरक्षा के लिए प्रशासनिक ढांचे की जिम्मेवारी निश्चित करना जरूरी

NewsBharati    19-May-2022 15:26:56 PM   
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देदेश की राजधानी दिल्ली मे मुंडका के एक गैर औद्योगिक क्षेत्र में एक भवन में औद्योगिक गतिविधियां चल रही थी जिसमें 13 मई को आग लग गई और इस हादसे में 27 लोग मारे गए 100 आग में जलकर घायल हो गए ! बाद में पता लगा है कि यह औद्योगिक गतिविधि गैरकानूनी थी और इस बिल्डिंग के पास दिल्ली के आग विभाग से एनओसी भी नहीं थी ! दिल्ली में इस प्रकार की यह पहली घटना नहीं है, इससे पहले 2019 में ही करोल बाग के एक होटल में आग लगी जिसमें 9 लोग मारे गए और बहुत से जलकर घायल हो गए ! ऐसे ही 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में भीषण आग लगी जिसमें 59 लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हुए ! इसी प्रकार की अनेक घटनाएं दिल्ली में आए दिन होती रहती है जिनमें आग लगने का अक्सर मुख्य कारण होता है की बिल्डिंगों के पास ना तो आग विभाग से क्लीयरेंस सर्टिफिकेट होता है और इनमें गैरकानूनी गतिविधियां चल रही होती है ! परंतु देश की राजधानी दिल्ली में भी क्षेत्र के संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को यह गतिविधियां नजर नहीं आ रही होती हैं ! तो क्या जिन अधिकारियों द्वारा जानबूझकर की गई लापरवाही के कारण यह जाने गई है उन्हें इन मौतों का सीधा-सीधा जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए !
 
नागरिक सुरक्षा

दिल्ली की इन सब घटनाओं में कुछ बातें एक जैसी पाई गई है, जैसे कि संबंधित बिल्डिंग का दिल्ली के आग विभाग की तरफ से सब कुछ ठीक होने का प्रमाण पत्र ना होना तथा बिल्डिंग में संकट के समय बाहर निकलने के लिए पर्याप्त साधनों का ना होना जैसा कि मुंडका की बिल्डिंग में भी नहीं था ! और अक्सर बिल्डिंगों में प्रतिबंधित गतिविधियों का चलाया जाना जैसा कि अक्सर होता है ! मुंडका की घटना के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल ने इस पर अपना दुख प्रकट कर दिया है और उन्होंने नाराजगी जताते हुए दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए हैं किइस प्रकार की घटनाएं दोबारा नहीं होनी चाहिए ! उपराज्यपाल के निर्देशों के बाद औपचारिकता पूरी करने के लिए एनडीएमसी के कमिश्नर ने क्षेत्रों के डिप्टी कमिश्नर को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने निर्देश दिए हैं कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में औद्योगिक तथा अन्य निषेध गतिविधियां नहीं चलनी चाहिए तथा संबंधित क्षेत्रों के अधिकारी सुनिश्चित करेंगे कि उनके क्षेत्रों में कोई भी इस प्रकार की गतिविधियां नहीं चल रही है और सार्वजनिक और प्राइवेट कार्य स्थलों पर आग के विरुद्ध पूरी सावधानी बरती जा रही है !

आखिर यहां पर है सवाल उठता है कि इस प्रकार के पत्र की अभी क्या आवश्यकता थी क्या संबंधित क्षेत्र के अधिकारियों को यह पहले से ज्ञात नहीं था कि उन्हें अपने क्षेत्रों में इस प्रकार की गैर कानूनी गतिविधियों को नहीं चलने देना चाहिए और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित बिल्डिंगों में आग के विरुद्ध पूरी सावधानी बरती जा रही है ! जबकि दिल्ली के पूरे क्षेत्रों में लाइसेंस विभाग, गृह कर विभाग, अग्नि विभाग इन सबके संबंधित अधिकारी होते हैं, जिनका कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके नियमों के विरुद्ध तो कोई गतिविधि उनके क्षेत्रों में नहीं चल रही है ! अभी सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि मुंडका कि संबंधित बिल्डिंग को 2011 में ही अवैध निर्माण घोषित कर दिया गया था तो इसके बाद फिर क्यों 11 साल तक संबंधित विभाग चुपचाप इस बिल्डिंग को देखता रहा और उन्होंने इस को सील करने की कार्रवाई क्यों नहीं की ! यह सब प्रश्न देश में प्रशासनिक ढांचे की कमियों को दर्शाते हैं और यह कमियां इस ढांचे में केवल भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल के कारण पैदा होती है !

प्रशासनिक कमी के कारण ही देश के बहुत से हिस्सों में अवैध कब्जे और निर्माण किए गए जिनके बारे में आजकल मीडिया में काफी शोर सुनाई देता है ! इसमें भी देश की राजधानी दिल्ली में बहुत से क्षेत्रों में प्रशासन की आंखों के सामने अवैध निर्माण और कब्जे किए गए जैसे कि जहांगीरपुरी शाहीन बाग और दिल्ली के बहुत से अन्य क्षेत्र ! देश के दूरदराज के क्षेत्रों में यह माना जा सकता है कि वहां पर संसाधनों की कमी के कारण प्रशासन नहीं पहुंच सका और यह निर्माण हो गए, परंतु दिल्ली जैसे क्षेत्र में जहां चप्पे-चप्पे पर प्रशासन की नजर है वहां यह अवैध निर्माण कैसे हो गए ! इस समय देश में अवैध निर्माण का सबसे बड़ा उदाहरण नोएडा मैं सुपरटेक की ट्विन टावर नाम की बिल्डिंग के रूप में सामने आया है ! इन दोनों टावरों को भवन निर्माण के कानूनों को ताक में रखकर नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की पूरी मिलीभगत और इनकी देखरेख में इनका यह अवैध निर्माण हुआ ! इन टावरों के निर्माण में पहले निर्माण करने वाली कंपनी ने केवल 14 मंजिलों के लिए मंजूरी ली थी परंतु धीरे-धीरे अधिकारियों की रजामंदी से इन टावरों को 44 मंजिल तक बड़ा दिया गया !

नियम के अनुसार 22 मंजिल से ऊपर जाने के लिए दो टावरों के बीच में 24 मीटर की दूरी होनी चाहिए जबकि इन टावरों के बीच में केवल 14 मीटर की दूरी है जो इन टावरों में रहने वाले निवासियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है ! परंतु यहां भी प्रशासनिक ढांचे की मिलीभगत के द्वारा ही इतना गैरकानूनी निर्माण हो सका ! विश्व की मीडिया का ध्यान इनकी तरफ उस समय गया जब देश की उच्चतम न्यायालय को इन बिल्डिंगों को गिराने का निर्देश देना पड़ा ! इन टावरों की ऊंचाई और क्षेत्र की अन्य बिल्डिंगों की सुरक्षा को देखते हुए इन को ध्वस्त करने के लिए विदेशों के विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ रही है ! इसके साथ साथ इनके ध्वस्त की जाने की खबर पूरे मीडिया की सुर्खी लंबे समय से बनी हुई है, जो भारत में प्रशासनिक ढांचे में फैले भ्रष्टाचार को पूरे विश्व में प्रचारित कर रही है ! राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सुपरटेक कि बिल्डिंग ही अकेली ऐसी नहीं है, ऐसे अनेक निर्माण इस क्षेत्र में पाए जाते हैं जिनके ध्वस्त किए जाने के आदेश समय समय पर नजर आते रहते हैं !इन सब में प्रशासनिक ढांचे की संलिप्तता हर जगह पाई जाती है !

उपरोक्त के साथ-साथ प्रशासनिक कमियों के कारण ही देश में तरह-तरह की अन्य गैर कानूनी गतिविधियां जैसे जहरीली शराब से मौतें तस्करी और अन्य अन्य गतिविधियां बेरोकटोक चलती रहती हैं ! इस सबसे देशवासियों का विश्वास प्रशासनिक ढांचे में कम होता रहता है ! इन गतिविधियों का बेरोकटोक चलने का मुख्य कारण है दोषी कर्मचारियों को उनकी कमियों के लिए उचित दंड का प्रावधान ना होना ! और दंड के नाम पर केवल संबंधित अधिकारी की निष्क्रियता या मिलीभगत पाए जाने पर उसके विरुद्ध केवल ट्रांसफर या अन्य छोटी-मोटी कार्यवाही जैसे सस्पेंशन इत्यादि की कार्यवाही से खानापूर्ति कर दीया जाना ! जबकि न्याय के अनुसार यदि किसी प्रशासनिक अधिकारी की कमी के कारण देश के किसी निवासी की मौत हुई है तो उसे उसकी मौत का जिम्मेदार मानते हुए उस पर अपराधिक मुकदमे दर्ज होने चाहिए ! और दोषी पाए जाने पर कर्मचारी को मौतों की सजा के अनुसार ही सजा दी जानी चाहिए ! इसको देखते हुए मुंडका में प्रशासनिक कर्मियों के कारण जो मौतें हुई हैं क्या उसके संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मियों को इन मौतों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा जाना चाहिए ! इसी प्रकार नोएडा विकास प्राधिकरण के जिन अधिकारियों की मिलीभगत से यह दो विशाल टावर सुपरटेक ने खड़ी की है इसी तरह कानून की दृष्टि से इन टावरों में निवेशकों के धन की वसूली के लिए प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों पर जिम्मेवारी तय की जानीचाहिए ! न्याय की भावना के अनुसार जितना अपराध एक कातिल या चोर डकैत का होता हैउतना ही अपराध मुंडका और सुपरटेक की घटनाओं में सहयोग देने वाले अधिकारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों का भी तय किया जाना चाहिए ! यदि ऐसी व्यवस्था हो जाए तो देश में भ्रष्टाचार और अनैतिक गतिविधियों पर लगाम शीघ्रता से लगाई जा सकती है ! और यही संबंधित अधिकारी राजनैतिक दबाव के विरुद्ध भी खड़े होते नजर आएंगे क्योंकि उन्हें पता होगा कि अनैतिक गतिविधियों के लिए भविष्य में उनकी जिम्मेवारी कानून की दृष्टि से मानी जाएगी जिसमें उन्हें लंबी लंबी सजाएं होने के प्रावधान हो सकते हैं !

इस समय यदि हमें देश में प्रशासनिक सुधार करने हैं तो जहां अच्छे काम के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के लिए शाबाशी का प्रावधान है वहीं पर इनकी कमी पाए जाने पर इन अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराए जाने का भी प्रावधान होना चाहिए ! क्योंकि बिना इस प्रावधान के कोई भी कर्मचारी सत्य निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करेगा ! प्रशासनिक सुधार के लिए सर्वप्रथम देश में भारत की प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की कार्यशैली को पारदर्शी और भ्रष्टाचार से मुक्त कराना बहुत जरूरी है ! गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर देश में प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की भ्रष्टाचार में लिप्तता कि एक लंबी लिस्ट पाई जाती है ! अभी अभी कुछ समय पहले झारखंड राज्य में पूजा सिंघल नाम की प्रशासनिक अधिकारी के घर में 20 करोड़ की धन राशि पाई गई है ! और इसी प्रकार के अनेक उदाहरण देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन दिखाई देते रहते हैं इन प्रशासनिक अधिकारियों का इस प्रकार के आचरण में लिप्त होने का मुख्य कारण है कि इन्हें भारत के संविधान में प्राप्त सुरक्षा ! इसके अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा के किसी भी अधिकारी के विरुद्ध सरकार की अनुमति के बिना ना तो कोई अभियोग चलाया जा सकता है और ना ही कोई जांच की जा सकती है ! यह सुरक्षा अंग्रेजों ने अपने नौकरशाही को निर्भयता से काम करने के लिए सिविल सर्विस एक्ट 1919 में दी थी ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद में भारत के संविधान निर्माताओं ने इन अधिकारियों को यह सुरक्षा भारत के संविधान में भी उपलब्ध करा दी है जिस के दुरुपयोग से यह अधिकारी कानून के शिकंजे से बच कर भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं ! अब समय आ गया है जब पारदर्शिता के लिए इस प्रकार के प्रावधानों को बदला जाना चाहिए और देश के हर कर्मी को कानून की नजर में एक जैसा समझा जाना चाहिए ! इस प्रकार यदि भारत के प्रशासनिक अधिकारी स्वच्छता से काम करेंगे तो उनको देखकर नीचे के कर्मी स्वयं ही ही भ्रष्टाचार से दूर होकर देश को एक स्वच्छ प्रशासन उपलब्ध कराएंगे ! जिसमें देश की जनता की जिंदगी और धन की सुरक्षा सुनिश्चित होगी ! इस प्रकार देशवासी अनजाने डर से भी मुक्त हो जाएंगे !

इस समय में आधारभूत ढांचे में जहां सड़कें इत्यादि का प्रावधान है वहीं पर देश की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने वाले तंत्र को भी समय अनुसार आधुनिक बनाने का प्रावधान भी किया जाना चाहिए !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.