इतिहास इस बात का साक्षी है कि कॉन्वेंट स्कूलों के माध्यम से ' धर्मपरिवर्तन ' जैसी घृणित ईसाई मिशनरी गतिविधियां हमेशा से ही मूल निवासियों को " सभ्य " बनाने के मिशन / षड्यंत्र के रूप में चलती रही हैं। प्रायः एक ऐसी धारणा बन गयी है कि ईसाईयों द्वारा संचालित कॉन्वेंट स्कूल और कॉलेज सबसे बेहतर शिक्षा प्रदान करते हैं , जो वर्षों से हमारे देश के निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गई है। लेकिन , ये संस्थाएं ईसाई मिशनरियों के लिए धर्मपरिवर्तन / मतांतरण कराने के सहज और गुप्त केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं। ईसाई स्कूल एक योजना के तहत समाज के सभी वर्गों को मतांतरित होने का प्रलोभन देते हैं कि यदि वे मतांतरित होते हैं तो उन्हें मुफ्त स्कूल , किताबें , आने जाने के लिए परिवहन व्यवस्था के साथ साथ जीवनयापन के लिए बहुत कुछ मिलेगा। उनके लिए यीशु में प्रेम अथवा आस्था पर्याप्त नहीं है , प्रत्युत धर्मपरिवर्तन आवश्यक है। पेट की पीड़ा जिसके माध्यम से मिशनरी तंत्रों ने धर्म ( रिलीजन ) को नैतिक उन्नयन की प्रक्रिया के बजाय संख्याबल के कुत्सित राजनीतिक खेल में बदल दिया है। ऐसी ही एक हृदयविदारक और रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना तमिलनाडु में सामने आई है , जहां एक 17 वर्षीय बालिका लावण्या को ईसाई धर्म में मतांतरित होने के लिए दबाव डाला गया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी। वास्तव में इस दुर्दांत कहानी में अनेक चौंकाने वाली और मन को दुर्बल करने वाली परतें हैं , प्रत्येक परत पहले की तुलना में अधिक भयानक और दिल को दहलाने वाली है , हालांकि यह भी सच है कि मुख्यधारा की मीडिया ऐसी कहानियों पर पर्दा डालने में कोई कमी नहीं रखता है। सोशल मीडिया पर वायरल नाबालिग लावण्या के 44 सेकंड के वीडियो में वह अपने उत्पीड़न की दर्दनाक कहानी को बयान करती हुई दिखाई दे रही है। उसकी यह दर्दनाक कहानी किसी के लिए भी मानवता में विश्वास खोने के लिए पर्याप्त है।
तंजावुर के माइकलपट्टी में सेक्रेड हार्ट्स हायर सेकेंडरी स्कूल में ग्रेड 12 की छात्रा लावण्या सेंट माइकल गर्ल्स होम नामक बोर्डिंग हाउस में रह रही थी। लावण्या को राकेल मैरी नामक एक नन पर उसके परिवार पर अपने धर्म को छोड़कर ईसाई मत में मतांतरित होने के लिए दबाब बनाने का आरोप लगाते हुए देखा जा सकता है। उसने वीडियो में कई बार डांटे जाने , पोंगल की छुट्टियों के समय छुट्टी नहीं दिए जाने और अधिकारियों द्वारा उसे हॉस्टल में काम करने के लिए विवश करने की घटनाओं के बारे में भी बताया। यह पैशाचिक उत्पीड़न यहीं नहीं रुका बल्कि हॉस्टल वार्डन साक्यामैरी ने लावन्या को शौचालय सहित सम्पूर्ण हॉस्टल परिसर को अकेले साफ करने के लिए भी विवश किया। इस प्रकार के लगातार चलने वाले उत्पीड़न और यातना ने नाबालिग लावण्या को स्कूल के बगीचे में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का सेवन करके आत्महत्या करने करने के लिए विवश कर दिया , जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी। हैरान करने वाली बात यह है कि लावण्या के माता - पिता को उसको अस्पताल में भर्ती करवाने के एक दिन बाद 9 जनवरी को सूचित किया गया। उस समय वह मृतशैया पर थी।
मुख्यधारा की मीडिया और तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता जो झूठे कथानकों को बढ़ावा देने के लिए सच्चाई पर पर्दा डालने में हस्तसिद्ध हैं , वे लावण्या के प्रकरण में धर्मान्तरण के कोण को बड़ी सहजता से नकारने का पाखण्ड कर रहे हैं , लेकिन यह सत्य है कि इसकी अनुभूति करने के लिए उनको अपने पसंदीदा समाचार चैनल , विचारधारा और ऐच्छिक पूर्वाग्रह में निहित अपने विश्वास को तिलांजलि देनी होगी। ये सभी तथाकथित प्रतिष्ठित हस्तियां इच्छानुसार चिन्हित मुद्दों पर एक पूर्वकल्पित कथानक् के समर्थन में अपना रोष प्रकट करने के लिए उछलते रहते हैं , इस तरह वे आम आदमी के व्यक्तिगत अधिकारों को हानि पहुंचाते हैं। इन तथाकथित ' प्रतिष्ठित ' हस्तियों को कथित हिंदू विषयों पर छाती पीटते हुए देखा जा सकता है , लेकिन जब बलपूर्वक धर्मांतरण और लव जिहाद के मुद्दों को की बात आती है तब यही तथाकथित लोग इन्हे षड्यंत्र का ठप्पा लगाकर दरकिनार करते हुए देखे जा सकते हैं। वामपंथी झुकाव वाले कथित बुद्धिजीवी अपनी तुष्टिकरण की राजनीति और सेलेक्टिव रोष या होहल्ले के माध्यम से खुद को और अपनी निम्न मानसिकता का पर्दाफास स्वयं करते हैं। स्वयं के झूठ या कल्पना पर आधारित कथानक निर्मित करने के लिए किया जाने वाला ये भीरुतापूर्ण कार्य न केवल एक बौद्धिक भ्रष्टाचार हैं , बल्कि उन दो कौड़ी के सिद्धांतों के लिए भी एक काला धब्बा है जिनपर वे चलने का हास्यपूर्ण दावा करते हैं।
लेकिन ये बौद्धिक पाखंडी या उनके चेले किसी गलतफ़हमी में न रहें , लावण्या देश के लिए बिरसा मुंडा जैसे नायक के समान एक नायिका है। बिरसा मुंडा एक युवा वनवासी नायक थे , जिन्हे धोखे से बपतिस्मा दिया गया था और स्कूल में " बिरसा डेविड " बना दिया गया था , लेकिन बड़ा होने पर उन्होंने अपना ईसाई नाम और पहचान का तिरष्कार कर दिया और तत्कालीन सरकार और उसके द्वारा संरक्षण प्राप्त चर्च और भूस्वामियों के विरुद्ध नायक बनकर खड़े हो गए थे। यह भारत में ईसावाद के अनैतिक षड्यंत्रों के अड्डों यानी चर्चों द्वारा जनजातीय लोगों के उत्पीड़न का काला इतिहास है। लावण्या ने भी सभी कष्टों का सामना करते हुए अपनी हिंदू पहचान छोड़ने और मानवता विरोधी अब्राहमिक ( ईसाई ) पंथ में मतांतरित होने से इनकार कर दिया। भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु के लगभग 120 वर्ष बाद , क्या हमने आज भी एक राष्ट्र के रूप में धर्मांतरण की इस पैशाचिक पहेली को अनुभव किया है ?
वास्तव में , 2016 में चेन्नई के एक थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज द्वारा जारी एक अध्ययन से ज्ञात होता है कि तमिलनाडु ईसाईयत के विकास के लिए भारत में सर्वाधिक अनुकूल राज्य था। कन्याकुमारी जिले में ईसाइयों की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि देखी गई है , जहां जनसंख्या में ईसाइयों की भागीदारी 1921 में 30.7 प्रतिशत से बढ़कर 1951 में 34.7 प्रतिशत हो गई थी और तब से लेकर यह बढ़कर 46.8 प्रतिशत हो गई है। 1951 में राज्य की जनसंख्या का 90. 47 प्रतिशत भाग बनाने वाली हिंदुओं की जनसंख्या 2011 तक घटकर 87. 58 प्रतिशत रह गई है। यह ऐतिहासिक सत्य सर्वविदित है कि कन्याकुमारी से सटे क्षेत्रों में 19 वीं शताब्दी की शुरुआत से हिंदू - ईसाई सांप्रदायिक तनाव का वातावरण था। ईसाईयों की इस त्वरित जनसंख्या वृद्धि के लिए पेंटेकोस्टल क्रिस्चन ग्रुप्स जैसे मिशनरी गिरोह द्वारा संचालित व्यापक और आक्रामक धर्मांतरण गतिविधियों को श्रेय दिया जाता है। ये धर्मांतरण गिरोह अपनी धर्मपरिवर्तन की घृणित गतिविधियों के लिए विदेशी धन का उपयोग करते हैं और साथ ही सार्वजनिक परिवहन संसाधनों और हिन्दुओं के बीच में ईसाई साहित्य वितरित करते हैं और साथ ही हिंदू घरों की दीवारों पर ' जीजस कम्स ' ('Jesus comes') का चित्रण करते हैं। हिंदू पुनरुत्थानवादी संगठनों के विरुद्ध इस तरह की आक्रामकता निःसंदेह राज्य के अधिकारियों द्वारा राजनीतिक संरक्षण द्वारा पोषित होती है। मद्रास उच्च न्यायालय ने 7 जनवरी 2022 को एक वक्तव्य में कहा कि धर्म के संदर्भ में तमिलनाडु के कन्याकुमारी में जनसंख्या संबंधी एक विकराल उलटफेर दृष्टिगोचर हुआ है और वहां के हिंदू 1980 के बाद से जिले में अल्पसंख्यक हो गए हैं , भले ही 2011 की जनगणना कुछ और ही आंकड़ा या चित्र प्रस्तुत करती है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति जी . आर . स्वामीनाथन की उच्च न्यायालय की पीठ ने एक कैथोलिक पादरी पी जॉर्ज पोन्नैया की याचिका पर पारित आदेश में यह टिप्पणी की है , जिसमें कन्याकुमारी जिले के एक गांव अरुमानई में आयोजित एक सभा में हिंदू धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाने के लिए उनके खिलाफ दायर ‘ हेट स्पीच ’ मामले को रद्द करने की मांग की गई थी। इस पर न्यायालय ने कहा था ,' धर्म के संदर्भ में कन्याकुमारी के जनसांख्यिकीय प्रोफाइल में एक बड़ा उलटफेर देखा गया है। 1980 के बाद से जिले में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए। हालांकि 2011 की जनगणना एक अलग चित्र प्रस्तुत करती है जिसके अनुसार हिंदू सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं , जिनकी जनसंख्या 48.5 प्रतिशत है , जो कदाचित धरातल की वास्तविकता का प्रस्तुतिकरण नहीं करती है। ' न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा , ' कोई भी इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकता है कि बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के हिंदू , हालांकि ईसाई धर्म में मतांतरित हो गए हैं और उक्त धर्म का पालन कर रहे हैं लेकिन आरक्षण का लाभ उठाने के उद्देश्य से वे सभी स्वयं को रिकॉर्ड पर हिंदू ही कहते हैं। ' न्यायालय ने आगे कहा ,' ऐसे लोगों को क्रिप्टो क्रिस्चन कहते हैं। ' ( बार और बेंच रिपोर्टिंग से शब्दशः उद्धृत )
भारत का एक और राज्य जो ईसाई मिशनरियों के लिए एक सहज और सुरक्षित आधार और वातावरण उपलब्ध कराने के लिए सुर्खियों में रहा है , वह है आंध्र प्रदेश। वर्ष 2021 में , केंद्र सरकार ने एक लिखित उत्तर में लोकसभा को बताया कि गृह मंत्रालय को आंध्रप्रदेश में 18 गैर - सरकारी संगठनों के विरुद्ध " ईसाई धर्म में मतांतरण " कराने के कुकृत्य में कथित लिप्तता के बारे में " शिकायतें मिली थीं। आंध्र प्रदेश में सरकार द्वारा स्वीकृत ईसाईकरण में एक भयानक वृद्धि वर्ष 2004 में वाई . एस . आर . की कांग्रेस सरकार के आगमन के साथ देखी गई थी और तब से लेकर आज तक वाई . एस . जगन की वर्तमान सरकार में भी निरंतर बढ़ ही रही है। इसी प्रयोजन से जगन की सरकार ने राज्य में 30,000 पादरियों को आर्थिक मदद की स्वीकृति भी दी है। सरकार का तुष्टिकरण यहीं नहीं रुकता है , बल्कि सरकार ने यरूशलेम और ईसाईयों के दस अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर जाने वाले ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए वित्तीय सहायता को और अधिक बढ़ाने की भी घोषणा की है। तदतिरिक्त , धर्मान्तरित लोग अनगिनत सरकारी पदों पर आरक्षण का लाभ उठाने के लिए अपनी नई धार्मिक पहचान को छिपाने का कुत्सित खेल खेलते हैं। सार्वजनिक तौर पर दिन के उजाले में चल रहे छद्म लूट के इस देशद्रोही और कुत्सित खेल को समाप्त करने की आवश्यकता है।
वास्तव में हमें इस मुद्दे पर निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं की जांच करनी चाहिए :
1. कॉन्वेंट स्कूल और कॉलेज छात्रों को हिंदू प्रतीक कहते हुए माला पहनने , मेहंदी लगाने या तिलक लगाने से रोकते हैं , लेकिन उन्ही छात्रों को बाइबल के छंदों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। क्यों ?
2. स्व - घोषित एक्टिविट्स जो मुखर रूप से भारतीय अल्पसंख्यकों पर अन्याय को लेकर बबाल करते हैं , लेकिन जब विषय मौन रहने वाले बहुसंख्यक हिन्दू समाज का आता है तो उन मुद्दों पर इन पाखंडियों के मुख पर प्लास्टर लग जाता है। क्यों ?
3. तथाकथित " हिंदू " राजनितिक दल जिनके लिए यह माना जाता है कि वे हिंदुओं के लिए काम करते हैं , उनकी ओर से भी इस गंभीर समस्या पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है और ये दल पीड़ितों के परिवारों को कोई ठोस सहायता प्रदान करने में विफल रहे हैं। जबकि तथाकथित अल्पसंख्यकों के मामले में यह परिदृश्य बिलकुल विपरीत होता है। क्यों ?
4. जब तक पैशाचिक अब्राहमिक पंथों से आक्रामकता का प्रदर्शन होता रहेगा , जो उनके स्वभाव से धर्मपरिवर्तन का काम हैं , क्या तब तक हिंदुओं को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए बौद्धिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए ?
इस विषय पर हमें गांधी जी के इन वचनों से प्रेरणा लेनी चाहिए , " यदि मेरे पास शक्ति होती और मैं कानून बना सकता , तो मुझे निश्चित रूप से सभी प्रकार के धर्मपरिवर्तन बंद कर देना चाहिए। हिंदू परिवारों के लिए , एक मिशनरी के आगमन का अर्थ परिवार का विघटन होता है , जो पहनावे , शिष्टाचार , भाषा और खान - पान के परिवर्तन के अंतर्गत होता है। " सरकार ने पहले से ही पर्याप्त लुभावने कृत्य कर दिए है , अब यह देश इसके विपरीत व्यवहार की मांग करता है , और इसके साथ ही मौन बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लिए न्याय की भी मांग करता है जो लावण्या जैसे एक होनहार और युवा हिन्दू बालिका को ईसाईयों के धर्मपरिवर्तन के मानवता विरोधी षड्यंत्र के कारण असमय खोने की पीड़ा से व्यथित है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं कि लावण्या और बिरसा मुंडा जैसे नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भारत सरकार को तुरंत एक विधेयक पारित करके धर्मपरिवर्तन के इस क्रूरतापूर्ण , बलपूर्वक या लालच देकर चलने वाली धोखाधड़ी के षड्यंत्र विरुद्ध एक कानून बनाने की आवश्यकता है।