मानस के उत्तरकांड में गरुड़ जी ने काकभुसुंडि से पूछा की ज्ञान, बैराग और भक्ति में क्या अंतर है ! भुसुंडी जी ने इसका उत्तर देते हुए बताया कि तत्वज्ञान का तात्पर्य है ईश्वर के अस्तित्व की पूरी जानकारी प्राप्त करना जिसे ज्ञान के नाम से जाना जाता है ! इस पूरी जानकारी के बाद मनुष्य के हृदय में जो श्रद्धा जागृत होती है उसे भक्ति के नाम से पुकारा जाता है ! ज्ञान और भक्ति एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि ज्ञान के बगैर श्रद्धा जागृत नहीं होती और भक्ति के बिना ज्ञान मार्ग पर अक्सर मनुष्य अपने पथ से भटक जाता है ! परंतु यदि ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह भक्ति में लीन है तो उसके ईश्वर के मार्ग से विचलित होने की संभावना बिल्कुल नहीं है !
ज्ञान से मनुष्य को यह पता लग जाता है कि वह ईश्वर काअंश है और वह अविनाशी चेतन और निर्मल होते हुए भी संसार में माया के वशीभूत होकर सांसारिक गांठ में बंध गया है ! अज्ञान के अंधेरे में उसे यह गांठ नजर नहीं आती इसलिए मनुष्य इसे खोल नहीं पाता और जन्म मरण रूपी आवागमन में फंसा हुआ है ! सतो रजो और तमो प्रकृति के गुणों के प्रभाव में वह संसार में इंद्रिय भोग के लिए कर्म करके कर्म फलों के अनुसार बार-बार जन्म लेता रहता है, और उसे कर्म फलों के अनुसार ही योनि प्राप्त होती हैं !
ज्ञान प्राप्त करने के लिए मनुष्य को ऐसे गुरु की शरण में जाना चाहिए जिसको आत्मसाक्षात्कार रूपी ज्ञान प्राप्त हो चुका है ! वह अपने अनुभव से अपने शिष्य को ईश्वर के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे सकता है इसके बाद मनुष्य गीता में बताए हुए कर्म योग के अनुसार अपने कर्मों का फल ईश्वर को अर्पित करके कर्म फलों से मुक्त होता रहता है ! इस प्रकार वह कर्म फल से मुक्त होकर संसार के आवागमन से भी मुक्त हो जाता है ! इसके बाद जो हर जीव की सबसे बड़ी कामना है वह मोक्ष प्राप्ति उसको हो जाती है ! इस प्रकार वह अपने संपूर्ण रूप ईश्वर में विलीन होकर ईश्वरीय हो जाता है !
इस तथ्य को जानकर मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए जिसके बाद उसके हृदय में श्रद्धा जागृत होगी और वह ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाएगा जिसके बाद सोते ही वह गीता में बताएं हुए कर्म योग के अनुसार अपने कर्म फलों से मुक्त होगा इस प्रकार देख सकते हैं ज्ञान और भक्ति में कोई अंतर नहीं है और यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं