समाज के स्वस्थ निर्माण में उस समाज में रहने वाले मनुष्यों के आचरण का बहुत महत्व होता है ! इसमें भी समाज के अग्रणी पुरुषों और नेताओं के आचरण का महत्व और भी अधिक है !क्योकि इनके आचरण से ही आम आदमी अपना आचरण तय करता है ! इसीलिए भगवान ने कर्म योग के सिद्धांतों को समझाते हुए कहां है कि महापुरुष जो- जो आचरण करते हैं सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करता हैं ! आज सूचना का युग है जिसमें मीडिया समाज के नेताओं के हर अच्छे बुरे आचरण को चित्रों और सूचना के द्वारा जनता को पहुंचा देता हैं ! इसलिए समाज के अग्रणी नेताओं को अपने आचरण को नैतिक मूल्यों से निर्धारित करना चाहिए ! इसी के साथ साथ देश के शासन तंत्र को नियंत्रित करने वाले सरकारी बाबुओं को भी अपने आचरण को इस प्रकार करना चाहिए जिससे एक आम नागरिक को शासन तंत्र में ईमानदारी और व्यवस्था नजर आए ! इस प्रकार नेताओं और बाबू के आचरण से एक स्वस्थ समाज की रचना होगी और देश के नागरिकों का शासन तंत्र में विश्वास ही मजबूत होगा !
त्रेता युग में जब भगवान राम वनवास के लिए चले गए तब अयोध्या और जनकपुरी के निवासी उन्हें वापस लाने के लिए भरत जी के साथ भगवान राम के पास बन में पहुंचे ! गुरु वशिष्ट जी, राजा जनक और भरत जी ने उन्हें तरह-तरह से समझा कर वापस लाने का प्रयास किया ! परंतु भगवान राम ने नैतिकता और अपने पिता के वचन को रखने के लिए भरत से कहा कि भाई ऐसा आचरण करो जिससे पिताजी का वचन रह जाए और कुल की मर्यादा पर आंच ना आने पाए !इस निर्णय से अयोध्या और जनकपुर के निवासियों को अपने राजा के मर्यादा पूर्ण आचरण का एक अच्छा संदेश मिला ! इस प्रकार अपने पिता की मर्यादा की रक्षा करने के लिए भगवान पूरे 14 साल बन के कष्टों को झेल कर अयोध्या में वापस लौटे ! इस कारण भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है !
गीता के अनुसार मनुष्य के कर्मों को प्रकृति के तीनों गुण सत गुण रजो और तमोनिर्धारित करते हैं ! जिस गुण की भी मनुष्य के अंदर प्रधानता होती है मनुष्य उसी के अनुसार आचरण करता है ! जैसे कि तमोगुण में उसके अंदर पाप कर्म करने की कामना होती है ! रजोगुण कामना प्रधान होता है और कामना के पूरे न होने पर मनुष्य को क्रोध आता है, क्रोध में विवेक समाप्त होकर मनुष्य नाश को प्राप्त होता है ! सतोगुण में वह नैतिकता पूर्ण कर्म करके उन्हें बिना फल की इच्छा के भगवान को अर्पित करता है !इस प्रकार यदि पूरा समाज कर्म फल की इच्छा के बिना कार्य करेंगे तो ना तो वह पाप कर्मों में लिप्त होंगे और ना ही समाज का माहौल खराब होगा ! इसलिए समाज के अग्रणीयों को समाज में अपने आचरण से सतोगुण का प्रचार करना चाहिए जिससे उसका अनुसरण करते हुए एक साधारण व्यक्ति अपने कर्मों द्वारासमाज के लिए अपना योगदान देते हुए मोक्ष को प्राप्त हो सके !