महाशक्तियों के आर्थिक स्वार्थ और सत्ता के कारण -- संयुक्त राष्ट्र संघ का अस्तित्व खतरे में

मानवता के इस महा विनाश से दुखी होकर विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई जिसके प्रमुख उद्देश्य है विश्व शांति, मानव अधिकारों की सुरक्षा, विकास गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य !

NewsBharati    07-Oct-2021   
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प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व में शांति तथा मानव हितों की रक्षा के लिए लीग ऑफ नेशन नाम की एक संस्था का गठन किया गया जिसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ की तरह ही विश्व में शांति स्थिरता और मानव अधिकारों की रक्षा का था ! 1990 की तरह 1930 के दशक में भी विश्व में आर्थिक मंदी आई और इस मंदी पर काबू पाने के लिए यूरोप के जर्मनी इटली और एशिया के जापान ने अपने पड़ोसी देशों पर कब्जा करके वहां पर अपने आर्थिक हितों को पूरा करने की कोशिश की, परंतु लीग ऑफ नेशन इस सब को चुपचाप देखती रही !
 
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आज की महाशक्तियों के समान ब्रिटेन और फ्रांस का रुतबा इस संस्था में उसी प्रकार का था ! परंतु यह दोनों देश स्वयं उपनिवेशवादी थे इसलिए इन्होंने उपरोक्त देशों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जिसके परिणाम स्वरूप लीग ऑफ नेशन का प्रभाव समाप्त हो गया और जर्मनी में अतिवादी हिटलर के सत्ता में आते ही उसने 1939 में विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी ! इस युद्ध का समापन 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम के हमले के बाद हुआ जिसमें लाखों जापानी नागरिक मारे गए ! मानवता के इस महा विनाश से दुखी होकर विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई जिसके प्रमुख उद्देश्य है विश्व शांति, मानव अधिकारों की सुरक्षा, विकास गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य ! इस संस्था के संचालन के लिए दो प्रमुख सदन बनाए गए जिनमें जनरल असेंबली और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रमुख है ! जनरल असेंबली में पूरे विश्व के देशों का प्रतिनिधित्व है वहीं पर सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं जिनमें 5 सदस्य स्थाई हैं जिन्हें विश्व में महाशक्ति के रूप में जाना जाता है| यह हैं – अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन | इन पांचों के पास वीटो की शक्ति है जिसके द्वारा यह जनरल असेंबली में पारित प्रस्ताव को खत्म करवा सकते हैं |

दूसरे विश्व युद्ध में केवल पूरे विश्व में विभिन्न युद्धों में और हिरोशिमा नागासाकी को मिलाकर केवल तीन लाख लोग मारे गए थे| परंतु आज के युग में केवल कोविड-19 के द्वारा जिसे एक प्रकार से बायोलॉजिकल युद्ध पुकारा जा सकता है उसमें अनगिनत लोग पूरे विश्व में मारे गए हैं और इतने ही लोग इस बीमारी से पीड़ित होने के बाद तरह-तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं ! इसके अतिरिक्त इस महामारी के कारण पूरे विश्व में बेरोजगारी पलायन और तरह-तरह के बुरे सामाजिक प्रभाव देखने में आ रहे हैं ! एक प्रकार से पूरे विश्व की शांति और व्यवस्था पर प्रश्न उठने लगे हैं ! इसके साथ साथ अभी-अभी अफगानिस्तान में तालिबान के द्वारा वहां पर सत्ता पर कब्जा और मानव अधिकारों के हनन के द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों की धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं ! परंतु इस सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोविड-19 से संबंधित चीन पर कोई कार्यवाही नहीं की क्योंकि चीन एक महाशक्ति है और वह राष्ट्र संघ के किसी भी प्रस्ताव को असफल कर सकता है और इसी शक्ति के द्वारा चीन ने राष्ट्र संघ में कोरोनावायरस पर विचार ही नहीं होने दिया !
 
संयुक्त राष्ट्र संघ में जब कोविड-19 की उत्पत्ति और फैलाव के बारे में विचार किया जा रहा था तो उस समय चीन ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए इस विचार को नहीं होने दिया ! इसी प्रकार विश्व स्वास्थ संगठन में अमेरिका ने चीन की मदद करने के लिए कोविड-19 के बारे में वहां भी कोई कार्यवाही नहीं होने दी ! इसी प्रकार पिछले लंबे समय से पाकिस्तान आतंकी संगठनों को संरक्षण दे रहा है जिसके कारण पूरे विश्व की शांति खतरे में पड़ी हुई है | विश्व की हर बड़ी आतंकवादी गतिविधि के पीछे पाकिस्तान के प्रशिक्षित आतंकी पाए जाते हैं | जिसका उदाहरण है 2001 में अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर हमला और उसके बाद भारत के अंदर उसकी लोकसभा पर 2002 में तथा उसकी आर्थिक राजधानी मुंबई में 2008 में किए गए आतंकी हमले हैं ! इस सब को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने से रोकने के लिए अपनी एफएटीएफ नाम की जांच संस्था से जांच करवा रही है !
 
इस जांच रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ की काली सूची में डाला जाने का प्रावधान है जिसके फलस्वरूप पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद बंद हो सकती है ! परंतु चीन ने अपनी एक सड़क एक बेल्ट योजना को सफल बनाने के लिए वह पाकिस्तान को एफएटीएफ की जांच में मदद कर रहा है जिसके कारण लंबे समय से चल रही जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है ! जबकि पूरे विश्व को यह साफ साफ पता है की आतंकवाद कहां पर पनप रहा है और अफगानिस्तान के तालिबान को किसने मदद की है ! पूरा विश्व जानता है 80 के दशक में अमेरिका के इशारे पर ही पाकिस्तान में तालेबान का गठन रूसी सेनाओं को अफगानिस्तान से भगाने के लिए किया गया था ! इस प्रकार उस समय पाकिस्तान को अमेरिका ने आतंकी संगठनों को तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जिसको देखते हुए लंबे समय तक अमेरिका पाकिस्तान की मदद संयुक्त राष्ट्र संघ में करता रहा जैसा कि अब चीन कर रहा है ! अभी-अभी अमेरिका की सीनेट में वहां के 22 प्रभावशाली सीनेटर ने एक बिल पेश किया है जिसके द्वारा यह वहां की सरकार से विश्व की उन शक्तियों के बारे में जानकारी मांग रहे हैं जिनकी मदद के द्वारा तालेबान अफगानिस्तान में सत्ता में आए और उन्होंने खासकर पाकिस्तान की भूमिका के बारे में रिपोर्ट मांगी है !

विश्व में उपरोक्त उथल-पुथल के अतिरिक्त भी अनेक देशों में मानव अधिकारों का हनन और कानून की सरकारों के विरुद्ध ग्रह युद्ध की स्थिति बनी हुई है ! इसकी शुरुआत 1948 से हुई जब पूरे अरब देशों में वहां पर रहने वाले यहूदियों को प्रताड़ित करके भगाया गया ! जिसके बाद यहूदियों ने इजराइल की स्थापना की ! परंतु फिर भी इन अरब देशों ने यहूदियों को शांति से नहीं बैठने दिया है ! तभी से इनके विरुद्ध इजराइल के आसपास के देश युद्ध की स्थिति बनाए हुए हैं जिसके कारण यहां पर दो प्रमुख युद्ध 1967 और 1973 में हो चुके हैं, और आजकल भी फिलिस्तीन आतंकी यदा-कदा इजराइल पर हमला करते रहते हैं ! इसके अलावा लंबे समय से एशिया के कंबोडिया तथा अफ्रीका के सोमालिया रवांडा सूडान सेर्बिया मैं वहां पर विभिन्न कारणों से गृह युद्ध चल रहे हैं !
 
जिन को शांत करने में संयुक्त राष्ट्र संघ असफल रहा है ! 2003 में विश्व की महाशक्ति अमेरिका ने इतनी दूर आकर इराक पर हमला किया जिसमें10 लाख इराकी मारे गए ! इसी प्रकार अपनी सुविधा के अनुसार अमेरिका ने 80 के दशक में पाकिस्तान के द्वारा तालिबान को तैयार किया जिन्होंने अफगानिस्तान से रूसी सेना को वापस जाने के लिए मजबूर किया और उसके बाद यही तालेबान अफगानिस्तान में सत्ता में आए जिनको अमेरिका ने 2001 में वहां पर हमले के बाद सत्ता से बेदखल किया था ! इस प्रकार देखा जा सकता है कि विश्व की महा शक्तियां जिनमें अमेरिका रूस और चीन अपनी सुविधा के अनुसार विश्व के देशों में सत्ता परिवर्तन करवाती रहती हैं, चाहे इसके लिए उन्हें आतंकवाद का सहारा ही क्यों ना लेना पड़े !

1947 में विश्व की 2 माह शक्तियां अमेरिका और सोवियत संघ में शीत युद्ध प्रारंभ हो गया जिसके लिए अमेरिका ने नाटो और सोवियत संघ ने वारसा संधि नामक सैनिक संगठनों का गठन किया ! जिसके द्वारा इन्होंने अपने खेमे में अपने प्रभाव के देशों को सम्मिलित किया ! इसके परिणाम स्वरूप विश्व में जगह-जगह क्षेत्रीय युद्ध प्रारंभ हो गए थे ! नाटो और वारसा संधि की तरह इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ की विफलताओं को हुए विश्व में तरह-तरह के क्षेत्रीय संगठन तैयार हो रहे हैं ! जिनमें ऑक्स जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया है इसी प्रकार क्वाड जिसमें जापान ऑस्ट्रेलिया भारत और अमेरिका प्रमुख हैं ! इसी प्रकार के अनेक संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए स्थापित किए जा रहे हैं ! इस प्रकार के संगठनों के द्वारा धीरे धीरे संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता समाप्त होती जा रही है ! यहां पर जो प्रमुख कारण सामने आ रहा है वह है महा शक्तियों के पास वीटो पावर का होना जिसके कारण यह शक्तियां राष्ट्र संघको केबल अपने हितों और स्वार्थ के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती हैं जिसके कारण महासंघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है !

1945 में परमाणु बम के प्रयोग के बाद विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई ! परंतु इस बार कोरोना के द्वारा करोड़ों लोगों की मौत के बाद भी विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन के बारे में कोई नहीं सोच रहा है ! भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसी संदर्भ में 2019 और अभी कवाड़ सम्मेलन के समय संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने संबोधन में दोबारा इसमें सुधार और पुनर्गठन पर विचार का आह्वान किया ! अब बदलती हुई युद्ध तकनीकों के अनुसार 1945 जैसा युद्ध नहीं होगा परंतु इसके स्थान पर परोक्ष युद्ध होंगे ! जिनमें क्वाड जैसी महामारी या दुश्मन देश में आतंकवाद या मनोवैज्ञानिक युद्ध के द्वारा युद्ध से ज्यादा विनाश किया जाएगा ! जैसा की विश्व में जगह जगह देखने में आ रहा है ! इस सब को देखते हुए विश्व के देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी विश्व की संस्था को प्रभावशाली बनाने के लिए शीघ्र अति शीघ्र प्रयास करने चाहिए !