अभी हाल ही में दो प्रमुख खबरे समाचार माध्यमों की शीर्षक बनीं, जो कई सेक्युलर भारतीयों में उत्सुकता का कारण। पहली एंटी CAA के दंगों की प्रमुख अभियुक्ता सफूरा जरगर व दूसरा देश में नक्सली हिंसा के प्रणेताओं के नीति निर्धारक वरवर राव। दोनों के लिए मीडिया के एक विशेष वर्ग ने देश व विश्व व्यापी अभियान चलाया, कई आर्टिकल लिखे गए, प्राइम टाइम डिबेट की गयी। जहाँ सफूरा के लिए धरनों के दौरान उसके अनैतिक संबंधों से ठहरे गर्भ का वास्ता दे कर उसे जमानत देने की प्राथना की गयी वहीँ वरवर राव के लिए "एक विद्वान व वृद्ध कवि से सरकार को क्या खतरा है? उनको रिहा करना चाहिए' का झूठा प्रचार कर एक माहौल बनाने की कोशिश हुई। सफूरा के लिए अभियान सफल रहा, सरकार ने उसकी जमानत का विरोध नहीं किया, कुछ मजबूरियां रही होंगी और उसे जमानत मिल गयी। सफूरा अब स्वछंद होकर टुकड़े-टुकड़े गैंग का पुनर सञ्चालन कर सकती है। परन्तु वरवर राव के विरुध्द कोर्ट को अधिक संगीन प्रमाण मिले होंगे जिससे उनको रिहा नहीं किया गया।
वामपंथियों का समाचार माध्यमों पर हमेशा से प्रभाव रहा है। उन्होंने माध्यमों का उपयोग सत्ताओं को नियंत्रित करने के लिए,उनसे वांछित कार्य करवाने व अपने समाज व देश विरोधी कृत्यों को छुपाने के लिए किया है। वामपंथियों का मुख्य हथियार रहा है 'आधा सत्य' . .
पड़ोसी देशों के 31500 प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने के कानून को मुसलमानों के लिए खतरा बता कर 30-35 करोड़ मुसलमानों को दिल्ली व देशभर में CAA के विरोध के नाम पर सड़कों पर उतार दिया। जामिआ से लेकर हॉवर्ड तक उनका पूरा इको सिस्टम वर्तमान सरकार को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने पर तुल गया। लंदन, न्यूयोर्क, कनाडा, सभी स्थानों पर नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करने की मुहिम छिड़ गयी।
वे जब कहते हैं कि शासन-प्रसाशन, समाज के बाहुबली व धनबलियों के द्वारा सताया गरीब व्यक्ति जब पुलिस व न्यायालय से न्याय नहीं मिलता तो नक्सली बनता है, परन्तु वो यह नहीं बताते कि वह गरीब जिसके लिए दो समय का भोजन जुटा पाना कठिन है लाखों की AK-47, ग्रनेड ,बम ,बारूद, गाड़ियां कहा से लाता है? उसके मन में समाज व राष्ट्र के प्रति यह नफरत और विद्रोह का भाव कौन भरता है ? उसको बंदूक उठाने का मार्ग किसने दिखाया ? क्या बन्दुक उठाने से उसे न्याय मिल जाता है ? क्या उसका परिवार उसके नक्सली बनने से उजड़ नहीं जाता ? जो पैसा, समय व ज्ञान उसे समाज का द्रोही बनाने में लगाया जाता है, उसके कल्याण में उपयोग नहीं हो सकता ? यह प्रश्न हमारे मन में भी उठने चाहिए।
गावों में घूम घूम कर व्यवस्था का शिकार बने परिवारों को कानूनी व आर्थिक सहायता के नाम पर अपने जाल में फंसाया जाता है। भोले कम पढ़े ग्रामीण तो सहायता के नाम पर इनके चंगुल में आ जाते हैं परन्तु शिक्षित युवा षड़यंत्र पूर्वक इस खेल में शामिल किये जाते हैं। शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे कामरेड कैसे इन योजनाओं को अंजाम देते हैं, यह समझने के लिए श्री विवेक अग्निहोत्री की पुस्तक अर्बन नक्सल पढ़नी चाहिए। नेहरू व इंदिरा जी के समय से ही सभी बड़े शिक्षण संस्थानों पर वामपंथियों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। JNU इसका मक्का कैसे बना यह अब कोई छुपा रहस्य नहीं है। JNU से निकले वामपंथी विद्यार्थी शिक्षक के रूप में देश-दुनिया के प्रमुख शिक्षा संस्थानों पर काबिज हो गए व धीरे धीरे भारतीय संस्कृति, इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना व विश्व में उसे प्रचारित प्रसारित कर कुरीतिया, अंधविश्वास दूर करने के नाम पर चंदा इकठ्ठा कर देश के सामाजिक तानेबाने को नष्ट करने के काम में लग गए। यह नुस्खा इतना प्रचलित व कारगर हुआ कि पूरी अगली पीढ़ी इस कार्य में लग गयी व लाखों NGO बनाकर विदेशों से पैसा आने लगा। वामपंथियों ने देश में मिशनरियों व जिहादी शक्तियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, बड़े पैमाने पर हिन्दू आदिवासियों व वंचित वर्ग को ईसाई या मुसलमान बनाने में परोक्ष रूप से सहायता की।
वामपंथी पोलित ब्यूरो जो कम्युनिस्ट संगठनों की निर्णय प्रक्रिया की सर्वोच्च संस्था होती है द्वारा समाज के प्रत्येक क्षेत्र से उभरती प्रतिभाओं जैसे विद्यालयों में उत्कृष्ठ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पुरस्कार देकर अपने प्रति आकर्षित करना व उनके संगठन के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्पन्न करना। अच्छे कवि, साहित्यकार, पत्रकार, अध्यापक, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले लोग,वैज्ञानिक, फिल्म व कला से जुड़े लोग अक्सर समाज में मान सम्मान व पहचान के लालच में इनके चंगुल में फंस जाते हैं व न चाहते हुए भी इनके कु-कृत्यों का समर्थन करने लगते हैं। यदि हम थोड़ा अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि बुकर, मैग्सेसे आदि पुरस्कार देकर अपनी विचारधारा के लोगों को स्थापित किया जाता है। आजकल की नयी पीढ़ी इनके मीडिया मैनेजमेंट के चंगुल में फंस जाती है और इनका अनुसरण करने लगती है। वामपंथियों का प्रभाव देश की प्रशासनिक सेवाओं से लेकर सभी स्थानों में देखा जा सकता है, हाल के Anti -CAA दंगों के मुख्य रचनाकार पूर्व IAS गोपीनाथ कण्णन इसका मूर्त उदहारण है।
वरवर राव इसी श्रेणी में आने वाले, तथाकथित विद्वान हैं, नयी पीढ़ी को प्रभावित करने वाले लोगों के समूह से आते हैं। किसी भी गरीब का उत्थान करने के लिए प्रयास करने वाले व्यक्ति या समूह का सहयोग व समर्थन किया जाना चाहिए, परन्तु यह कैसा उत्थान है जो आपको देश के टुकड़े करने, समाज और पूर्वजों और उनकी संस्कृति का नाश करने का सकल्प दिलाता है ? माओ, मार्क्स व लेनिन की विचारधारा तो रूस, चीन व यूगोस्लाविया में भी कब की मृतप्राय हो चुकी है, हम उसकी लाश उठाकर ढोने पर क्यों मजबूर हैं ? एक गरीब मजदूर भी पेट भरने के लिए दिनभर श्रम करता है लेकिन देश व समाज को तोड़ने का कार्य कदापि नहीं करता परन्तु वामपंथीयों ने पैसा, पद व प्रतिष्ठा के लिए देश को भी बेच दिया है। वरवर राव के विरुद्ध सैकड़ों देशद्रोह सहित के आपराधिक प्रकरण आंध्र, तेलंगाना ,महाराष्ट्र ,छत्तीसगढ़ आदि में दर्ज हैं। कुख्यात भीमा-कोरेगाव दंगों में भूमिका को लेकर पुणे में दर्ज प्राथमिकी व कोर्ट का अवलोकन नीचे दिया है ;-
On 8th Jan 2018 crime is registered by Vishrambaug police on a complaint by one Tushar Damgule that the speeches and songs performed by Maoist front organization 'Kabir Kala Manch' and ‘Republican Panthar’ at the "Yalgaar Parishad" meeting held in Pune on December 31, 2017, instigated violence in the Bhima-Koregaon parade held on January 1, 2018.
The District Government Pleader opposed the application stating that several incriminating materials, including letters and electronic communications, were recovered during the search which pointed their nexus with banned organizations. It was submitted that the accused persons recruited students of elite universities to banned organizations and that they were involved in a conspiracy against the Government of India to achieve the objects of Maoist organizations. They were involved in mobilizing men, money and arms for Maoists, submitted the Government Pleader.
नक्सलबाड़ी आंदोलन को आदर्श बताकर खूनी क्रांति के प्रणेता वरवर राव ने न जाने कितने निर्दोष युवाओं को आतंकवाद के दलदल में धकेला, न जाने कितने पुलिस व अर्धसैनिक बल के जवानों-अधिकारीयों व जनप्रतिनिधियों, निर्दोष लोगों की हत्या की। खूनी क्रांति की प्रेरणा देने वाले लोग स्टालिन व माओ के ही वंशज हो सकते हैं। वरवर राव का अपराध इस लिए भी गंभीर है क्योंकि उन्होंने शिक्षक होकर समाज की विषमताओं को दूर करने के स्थान पर उसको अधिक रक्तरंजित कर दिया। उनका लिखा साहित्य न जाने कब तक कितनी पीढ़ियों को भ्रमित करता रहेगा व निर्दोष लोग मारे जाते रहेंगे।
क्या कारण है कि इस देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में वैदिक ज्ञान, हिन्दू जीवन दर्शन, जैन दर्शन, सिक्ख दर्शन या भारत से निकले किसी भी दर्शन को नहीं पढ़ाया गया परन्तु विश्व को क्रूरतम शासक देने वाली मार्क्स, माओ व लेनिन की विचारधारा को ७३ वर्षों से हम ढो रहे हैं ? हमने कौटिल्य का अर्थशास्त्र नहीं पढ़ाया, हमे कालिदास के साहित्य के स्थान पर सेक्सपिअर को पढ़ाया गया ? हमें मौर्य या विजयनगर साम्राज्य नहीं मुस्लिम आक्रांताओं को महान बता कर पढ़ाया गया ? समय है कि भारत में भी सामाजिक विज्ञान के नाम पर पढ़ाये जा रहे दूषण को शिक्षण संस्थाओं से दूर किया जाय, जो इस देश में टुकड़े-टुकड़े गैंग पैदा कर रही है। ऑस्ट्रेलिया की तरह सामाजिक विज्ञान पढ़ने के लिए कोई अनुदान न दिया जाय व मार्क्स-लेनिन-माओ को भारत के विश्वविद्यालयों से बिना किसी देरी के दूर किया जाय अन्यथा ऐसे वरवर राव, सुधा भरद्वाज, रोना विल्सन, कोनराड गांडी पैदा होते रहेंगे और विभाजित हिन्दू समाज व आने वाली पीढियों के मन में विष भरते रहेंगे।