किसान आंदोलन की आड़ में सिख्स फॉर जस्टिस का ऐंजडा

NewsBharati    16-Dec-2020 16:56:37 PM   
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किसानों को झांसा देने वालों ने तीनों क़ानून के बारे में ऐसा बवंडर खड़ा कर दिया है कि इन दोनों राज्यों का किसान पसोपेश में फंस गया. उसे सचमुच लगने लगा कि इन क़ानूनों से उसकी फसल को सरकार से हर वर्ष ज़्यादा से ज़्यादा मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) ख़त्म हो जाएगा, जो लोग सिर्फ़ मोदी-सरकार का विरोध करने के लिए सामान्य किसानों के कंधों पर अपनी बंदूक़ चलाने की कोशिश कर रहे हैं. वे किसानों का सबसे बड़ा अहित कर रहे हैं.
 
किसानों के भले के लिए इसी वर्ष सितंबर में संसद द्वारा पारित तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में ख़ास तौर पर दो राज्यों पंजाब और हरियाणा के कुछ जिलों तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों से दिल्ली की सीमाओं पर जुटे किसानों के आंदोलन के शाहीन बाग-2 में तब्दील होने के स्पष्ट संकेत हैं. पहला , इस आंदोलन को पर्दे के पीछे से हांक रहे सिविल सोसाइटी के चेहरे अब सामने आ रहे हैं. दूसरा, सीएए और एनआरसी के नाम पर जिस तरह दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर दुनिया भर में हल्ला मचाया गया, वैसा ही स्यापा कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका से लेकर विश्व भर के अनेक देशों में प्रायोजित हो रहा है.
 

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विदेशों से आने वाली खबराें काे देखें ताे किसान आंदोलन का खालिस्तानी एंगल अब उभर कर सामने आने लगा है. सिख्स फाॅर जस्टिस खालिस्तानी समर्थक संगठन है जो अमेरिका से संचालित हाेता है. संगठन के सदस्य और इससे जुड़े सभी लाेग विदेशाें में पंजाब के किसानाें के समर्थन में काराें, ट्रैकटराें और ट्रकाें की रैलियाँ निकाल कर लंदन, बर्मिंघम, फ्रैंकफर्ट, वैंकूवर, टोरंटो, वाशिंगटन डीसी, सैन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावासाें काे बंद करने की धमकी दे रहे हैं. कुछ विदेशी राजनेताओं की किसान आंदोलन में बढ़ती दिलचस्पी बहुत कुछ कह रही है.
 
कुछ दिन पहले पंजाब के मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री से मिलकर किसान आंदाेलन की आड़ में देश विराेधी ताकताें के सक्रिय हाेने से अवगत करवाया था. अभी कल ही कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन को शरारती तत्वों ने हाईजैक कर लिया है. रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि गांव से भागे हुए भगोड़े, गुंडा तत्व यहां पर आ गए हैं और जगह-जगह घूम रहे हैं.
 
ज्यादातर सिंधु बार्डर पर मौजूद हैं. यह लोग खालिस्तान का नारा लगा रहे हैं. कुछ लोग इसमें खालिस्तान के हिमायती हैं. इनकी तुरंत पहचान की जानी चाहिए . वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी भी ख़बरें आ रही हैं, कि किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली और दूसरी जगहों पर नागरिकता संशोधन क़ानूनों यानी सीएए व एनआरसी के विरोध में फिर धरना प्रदर्शन शुरू हो सकते हैं.
 
इसलिए अगर राष्ट्रीय विचारों के समर्थक इस आंदोलन की कमान अर्बन नक्सलियों, पाकिस्तानी टुकड़खोरों, ‘भारत तोड़ो गैंग’ वगैरह के हाथों में जाने के ख़तरे की बात कर रहे हैं तो उसमें बहुत अतिशयोक्ति नहीं. लेकिन आंदोलन को परदे के पीछे से हांक रहे लोगों की एक बात के लिए तो ‘तारीफ़’ करनी होगी कि एकदम सफ़ेद झूठ को उन्होंने सत्यवादी राजा हरीशचंद्र की-सी ऐसी सचाई और मासूमियत से भले मानस किसानों के सामने पेश कर दिया कि वे बेचारे इस मायाजाल में फंसकर, अपना डेरा-डंडा उठाकर दिल्ली की ठंड भुगतने के लिए चले आए!
 
किसानों को झांसा देने वालों ने तीनों क़ानून के बारे में ऐसा बवंडर खड़ा कर दिया है कि इन दोनों राज्यों का किसान पसोपेश में फंस गया. उसे सचमुच लगने लगा कि इन क़ानूनों से उसकी फसल को सरकार से हर वर्ष ज़्यादा से ज़्यादा मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) ख़त्म हो जाएगा, कृषि उपज मंडियां, जहां उसे यह एमएसपी मिलने की उम्मीद हर बार रहती है, धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगी; बड़ी कम्पिनयां उसके खेत हथिया लेंगी और उसे अपने ही खेत पर बंधुआ मज़दूर बनकर काम करना पड़ेगा वगैरह वगैरह... मज़ा देखिए कि इस मोहजाल में पंजाब और हरियाणा के किसानों को फँसाया गया .
 

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पंजाब और हरियाणा के किसानों का 85 से 90% तक गेहू- चावल सरकार एमएसपी पर ख़रीद लेती है, और वहां मंडी व्यवस्था सबसे बेहतर है, केरल जैसे राज्य में तो मंडी क़ानून ही नहीं है, लेकिन वामपंथी नेता किसानों के आंदोलन को हवा देने में लगे हैं , सरकार आंदोलन के पहले दिन से कह रही है, लिख कर देने को तैयार है कि 55 साल से जारी एमएसपी ख़त्म नहीं होने जा रही है. हक़ीक़त यह है कि ये क़ानून पारित होने के तुरंत बाद सितम्बर में ही सरकार ने कई फसलों की एमएसपी बढ़ाई.
 
अब सरकार द्वारा घोषित एमएसपी किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए कसौटी का काम करेगा, उससे मंडी से बाहर बेचना हो, अपने घर की दहलीज़ पर ही बेचना हो तो वह एमएसपी के बराबर या उससे अधिक पर मोल-भाव करने को स्वतंत्र है. उसकी बेड़ियां अब टूट गई हैं और बाज़ार की स्पर्धा के कारण उसे एमएसपी से भी ज़्यादा क़ीमत मिलना संभव हो गया है.
 
मसलन, ये क़ानून बनने के बाद से महाराष्ट्र में फ़सलों-फलों के उत्पादक, उत्तर पूर्वी राज्यों में ऑर्गेनिक खेती वाले किसान, केरल में अनानस उत्पादक किसानों के असोसीएशन सीधे कंपनियों से सौदे करके अपने उत्पाद बेच रहे हैं. इस साल जून-जुलाई में आलू उत्पादक क्षेत्र में ख़रीदारों ने सीधे कोल्ड स्टोिरज से आलू ख़रीदे, जिससे किसानों को फ़ायदा हुआ. बाज़ार में आलू की क़ीमत अधिक होने से मंडी में भी उनको ज़्यादा दाम मिले.
 
जो लोग सिर्फ़ मोदी-सरकार का विरोध करने के लिए सामान्य किसानों के कंधों पर अपनी बंदूक़ चलाने की कोशिश कर रहे हैं. वे किसानों का सबसे बड़ा अहित कर रहे हैं. ये तीन क़ानून भारत के किसानों को उनके पैरों पर खड़ा होने में सबसे बड़ा सम्बल देंगे.

R L Francis

R.L. Francis, a Catholic Dalit, lead the Poor Christian Liberation Movement (PCLM), which wants Indian churches to serve Dalits rather than pass the buck to the government. The PCLM shares with Hindu nationalists concerns about conversion of the poor to Christianity. Francis has been writing on various social and contemporary issues.