युद्ध की तैयारी से सुरक्षा एंव शान्ति कहावत की चरितार्थ करता चीन का लद्दाख में शान्ति के लिये तैयार होना

NewsBharati    13-Nov-2020 18:53:48 PM   
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आखिरकार चीन आठवी कोर कमान्डर स्तर की मीटिंग में दोनो देशो के बीच लद्दाख सीमा पर चले आ रहे तनाव को कम करने और शान्ति स्थापित करने के लिए तैयार हो ही गया। उसका हदय परिवर्तन अचानक मानवता के आधार पर नही हुआ है बल्कि पह भारतीय सेनाओ के असली स्वरूप तथा इसके सैनिको की इच्छा शक्ति, शारीरीक मजबूती तथा सर्मपण की भावना को मई से लेकर अबतक देखने के बाद हुआ है। गलवान घाटी विवाद में भारतीय सैनिको ने निहत्थ ही इसे सादा चीनी सैनिको को मौत के घाट उतार कर इसका प्रर्दशन कर दिया है। चीन को संदेश साफ शब्दो मे दिया जा चुका है कि अब भारत 1962 का पिछडा तथा गरीब भारत नही है बल्कि अ बवह 2020 का आर्थिक एंव सैनिक महाशक्ति है। लम्बी अंग्रेजो की गुलामी के बाद भारत 1947 में आजाद हुआ। अंग्रेजो ने अपने शासन में केवल इसे लूटा जिसके कारण देश मे चारो तरफ पिछडापन, गरीबी तथा अव्यवस्था का माहोल था। सुरक्षा क्षेत्र में सेनाओ के पास नाम मात्र के हथियार जैसे 303 वोल्ट एक्शन राइफल जैसे ही हथियार थे। इसके अतिरिक्त सीमाओ की सुरक्षा के लिये परम आवश्ययक सीमाओ तक सड़क तथा अन्य आधारभूतढाॅचे का नामो निशान नही था। र्दुगम पहाडी क्षेत्रो जैसे लेह लद्दाख इत्यादि में स्थिती ओर भी खराब थी। इस स्थिती का फायदा उठाकर चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के द्वारा 1950 मे तिब्बत पर कब्जे के बाद पूर्वी लद्दाख तथा अरूणाॅचल प्रदेश के 48000 वर्ग कि.मी क्षेत्र जिसे अक्साई चीन के नाम से पुकारा जाता है पर चुपचाप 1959 मे कब्जा कर लिया। संसाधनो की कमी तथा र्दुगम क्षेत्र होने के कारण इसकी सूचना भारत को काफी देर से लगी जिसके कारण वह इन क्षेत्रो मे अपनी स्थिति मजबूत करके अभीतक जमा हुआ है।
 
पाकिस्तानके साथ चार तथा चीन के साथ 1962 में युध्द के बाद भारतीय सरकारो ने अपनी रक्षा तैयारियो को समयानूसार आधुनिक तथा मजबूत करने की दिशा मे जोर शोर से प्रयास शुरू कर दिये थे। इसके द्वारा सेनाओ केा आधुनिक शस्त्र तथा गोला बारूद के साथ साथ सैन्य दुष्टि से जरूरी सीमावर्ती क्षेत्रो में सडक तथा सुरंगी का निर्माण किया। असंभव माने जाने वाली लेह से पूर्वी लद्दाख के दौलत वेग ओल्डी तक 16000 फुट उंचाई पर दुर्गम पहाडी क्षेत्र मे 243 कि.मी लंबी सड़क का 20 वर्ष मे निमार्ण किया। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश से लेह को अटल सुरंग द्वारा सीधा जोडना इस प्रकार हर मौसम मे लेह - लद्दाख की सीमाए देश के मुख्य भाग से हर समय जुडी रहेगी और आवश्यता पडने पर सड़क तथा वायु मार्ग से सैनिक सहायता कही पर भी आसानी से पहुचाई जा सकती है। पूर्वी लद्दाख मे 16000 फुट की ऊॅचाई पर दौलत वेग ओल्डी मे वायु सेना का हवाई अडडा अब सेना के भारी भारी टेको की भी लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्र मे पहुचा रहा है। इसलिए आज कल इस क्षेत्र मे भारतीय टैक दिन रात घूम - घूम कर चीन को युध्द की चेतावनी एंव शक्ति प्रर्दशन कर रहे है। इसी के साथ - साथ दौलत वेग ओल्डी से भारतीय वायुसेना के लडाकु हवाई जहाज उड़कर दुश्मन को डरा रहे है। भारतीय सेना के तीनो भागो - थल,वायु तथा जल सेना ने क्रमवार आधुनिक शस्त्र तथा गोला बारूद के साथ साथ अपनी गतिशीलता मे भी समय की मांग के अनुसार परिवर्तन करके अपनी गतिशीलता तथा मारक क्षमता का कई गुना बडा लिया है।
इसी के अनुसार देश की थल सेना मे इंटीग्रिटिड़ वैटल ग्रुप नाम के सैनिक दलो का निमार्ण किया गया है। इसमे एक इन्फेन्ट्री ब्रिगडे तथा इसके सहायक अंग जैसे तोपखाना टैंक तथा दुश्मन की निगरानी के लिये आधुनिक इलेक्ट्रानिक संसाधन तथा ड्रोन इत्यादि होगे। यह वैटल ग्रुप सेना की डिवीजन के मुकाबले में एक तिहाई होने के कारण आसानी से प्रभावी क्षेत्र में से पहुॅचकर दुश्मन को पूर्ण रूप से जवाब देने मे सक्षम होगे। इसके साथ-साथ इनकी रचना से अग्रेजी समय से चली आ रही भरी भरकम डिवीजनो के स्थान पर इन दलो के आने के बाद अगले 5 वर्ष मे भारतीय थल सेना में 150000 सैनिको की कटोती भी संभव हो सकती है। इससे देश की रक्षा बजट मे भी बचत होगी। संरचना के साथ साथ थल सेना मे 7,00,000 नई आधुनिक राइफल, 55000 लाईट मशीन गन(एलएमजी) 44,6000 कारवाइन खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसी के अंर्तगत रक्षा मंत्रालय ने अमेरिका की हथियार बनाने वाली कम्पनी शिगशोर से 72,500 असाल्ट राइफल खरीदने का अनुबंध किया है। इसमे से 66,500 थल सेना को मिलेगी तथा बाकी वायु तथा जल सेना को दी जायेगी। इनकी 716 राइफलो की पहली खेप दिसम्बर 2019 मे देश में पहुॅच चुकी है। जिनकी गुणवत्ता सेनिक मापदंडो पर खरी उतरी है। स्वदेशी निर्माण को बढावा देने के लिये सेना के आर्डनेन्स फेक्टीबोर्ड ने रूस के साथ मिलकर उ.प्र. में ।ज्ञ 203 क्लासीनोबो राईफलो के निमार्ण की योजना बनाई है। अपनी आरमड सेनाकी मारक क्षमता बढाने के लिये भारत ने अमेरिका से ड.777 तोपे जो 155डड केलीवर की होने के साथ ही शक्तिशाली इंधनयुक्त टेªको पर लगी है के आर्डर भी दे दिये है। इस प्रकार टेको के साथ मे मिडीयम श्रेणी की तोपे दुश्मन के ठिकानो पर मिलकर उसको विध्वश शीघ्र अती शीघ्र करेगी। सेना के रक्षा अनुसंधान विभाग मे थल सेना को पिनाका मल्टीपल राकेट लाॅचर प्रदान किया है। यह केवल 44 सेेंकड में 12 उच्च श्रेणी के राकेट 90 कि.मी. दूरी तकफायर कर सकता है। यह राकेट लाॅचर टाट्रा ट्रक पर रखे गए है। इससे इन्हे कही पर भी आसानी से ले जाकर दुश्मन के विरूध्द इनका प्रभावी ढंग से प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार अतिरिक्त ओर बहुत से संसाधन थल सेना के लिये उपलब्ध कराये जा रहे है।
थल सेना के साथ ही देश की जलसेना को भी आज की चुनोतियो के अनुसार तैयार किया जा रही है। जलसेना के युध्दपोतो को दुश्मन की पनडुबियो से ज्यादा खतरा रहता है। जैसे कि 1971 के भारत पाकिस्तान युध्द मे पाकिस्तान की एक पनडुबी ने भारत के खुरवरी नाम के युध्द पोत को डुबो दिया था। जिसपर जलसेना के बहादुर अफसर कॅप्टन मुल्ला ने इसी के साथ जल समाधि लेकर नौसेना के आदर्श और नैतिक मूल्यो का उदाहरण प्रस्तुत किया था। इस खतरे से निपटने के लिये जल सेना के लिये च् .81नैपचून नाम के पनडुबी मारक हवाई जहाजो को अमेरिका से खरीदा गया है। जल सेना की मारक क्षमता बढाने के लिये रूस से चक्र नाम की पनडुब्बी ली गयी है। इसके साथ ही जल सेना के तलवार तथा शिवालिक श्रेणी के युध्द पोतो तथा कोलकत्ता क्लास के विध्वंसक युध्द पोतो को भी ब्रहसमोस क्रुज मिसाइलो से सुसजित करने से जल सेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ गयी है। इस प्रकार पूरे दक्षिण एशिया के देशो के चारो तरफ फेले हिन्द महासागर का अब वास्तव मे हिन्दुस्तान संरक्षक बन गया है। भारत की जल सेना की शक्ति को और बढाने के लिए हिन्द महासागर में स्थित अंडमान निकोबार द्वीपो मे नौसेना के मजबूत ठिकाने स्थापित कर दिए गये है। जिनसे चीन के युध्द पोतो तथा दक्षिण चीन सागर की निगरानी आसानी से की जा सके। चीन का 60 प्रतिशत निर्यात तथा 80 प्रतिशत तेल इसी दक्षिण चीन सागर के द्वारा होता है। इसलिये इस क्षेत्र में भारत की नौसेना के मजबूत होने के बाद चीन के रूख में और भी नरमी आ गयी है।
वायु सेना को मजबूत करने की दिशा मे खरीदे गये चैथी पीढी के लडाकु हवाई जहाज राफेल की पहली खेप का स्वागत देशने अभी कुछ दिन पहले ही जोर शोर से किया है। यह 36 राफेल विमान फ्रांस की डसाल्ट राफेल कंपनी से खरीद गये है। इस विमान में आधुनिक इल्ट्रानिक सिस्टम के अतिरिक्त इसमे हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाईले मे भी फिट है। इन विमानो का संचालन अम्बाला के वायुसैनिक ठिकाने से किया जायेगा। जहाँ से यह पूरी चीन सीमा पर दुश्मन के ठिकानो को बर्बाद कर सकते है। इसके अतिरीक्त उन्नत श्रेणी के 21 मिग 29 लडाकू विमानो के साथ ही 12 शुकोई विमान भी खरीदे जा रहे है। अग्रिम क्षेत्रो मे निगरानी तथा युध्दो मे थल सेना की फायर द्वारा सहायता पहुचाने के उददेश्य से चिनाकू तथा 64 अपाचे हेलीकाॅप्टर भी खरीदे गये है। वायुसेना मे युएवी और ड्रोन का भी भरपूर प्रावधान कर दिया गया है। वायुसेना के उत्तर पूर्वी प्रदेश में स्थित ठिकाने पर जमीन से हवा मे मार करने वाली मिसाईल का पूरा स्कावडन स्थापित कर दिया गया है। जिससे अरूणाचल प्रदेश चीन की गतविधीयो पर लगाम जा सके। इस प्रकार भारत की वायुसेना पाकिस्तान के थ्.16ए श्रथ्.17 तथा चीन के चैनाडू श्र.20ए शेपाॅग के थ्ब्.31 इत्यादी लडाकू विमानो का जवाब देने के लिये तैयार हो गयी है।
 
सैनिक दृष्टि से एक कहावत काफी प्रसिध्द है कि मशीन या हथियार के मुकाबले उसे चलानेवाला मनुष्य ज्यादा जरूरी होता है। यदि चलानेवाला देशभक्ति तथा समर्पण की भावना से युध्द कर रहा है तो वह पुराने तथा साधारण हथियारो से भी विजय प्राप्त कर लेगा। इसका प्रर्दशन भारतीय सेना ने 1965 के युध्द के दौरानछोटे से नेट लडाकू विमानो द्वारा पाकिस्तान के बडे बडे अमेरिकन विमानो को गिराकर दिया था। इसी युध्द मे भारत के हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी पुरानी आर सी एल तोप से पाकिस्तान के 20 - 20 आधुनिकतम टेको को बर्बाद किया था।
इस दृष्टि से भारतीय सेना चीनी सेना से कई गुन्हा बेहतर है। चीनी सेना मे सैनिक अनिवार्य सैन्य सेवा कानून के अंर्तगत भर्ती किये जाते है। जबकि भारतीय सेना मे स्वंय अपनी इच्छा से देश सेवा तथा सर्मपण की भावना से सैनिक भर्ती होते है। इस कारण चीनी सैनिक अक्सर भारतीय सैनिको से हारते ही नजर आते है। 1962 के रंजागला युध्द मे भारतीय सेना के केवल 120 सैनिक चीन के 3000 सैनिको पर भारी पडे थे। और इसी का प्रर्दशन अभी गलवान घाटी मे भी हो चूका है। इस दृष्टि से सारे अस्त्र शस्त्रो के साथ - साथ भारतीय सैनिक चीनी तथा पाकिस्तान सैनिक से बेहतर साबित हो रहे है। इस सबको देखते हुए चीन तथा पाकिस्तान अब दोबारा भारत की तरफ आँख उठाने की कोशिश नही करेगे।

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.