ऐतिहासिक एवं बेहद महत्वपूर्ण फैसला

NewsBharati    02-Oct-2020 12:49:26 PM   
Total Views |
HC_1  H x W: 0
 
 
आपराधिक साजिश, राष्ट्रीय सद्भाव बिगाड़ने के आरोपों के एक बेहद संवेदनशील मामले में विशेष अदालत ने न्यायिक फैसला सुनाया है, लिहाजा वह दस्तावेजी और ऐतिहासिक है। अब कई भ्रम टूट सकते हैं, कई राजनीतिक कलंक धुल सकते हैं। इसके साथ ही अयोध्या और श्रीराम जन्मभूमि से जुड़े तमाम विवादों का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। अतः अब पूरे देश को आगे की तरफ देखना चाहिए और समाज में पूर्ण शांति व भाईचारा बनाये रखने के प्रयासों पर बल देना चाहिए।
 
अयोध्या विवाद मुकदमे में सीबीआई द्वारा अभियुक्त बनाये गये सभी 32 आरोपी विशेष अदालत द्वारा बरी कर दिये जाने के बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद से सम्बन्धित सभी प्रकार के मुक़द्दमों का निपटारा हो गया है। अयोध्या में 6 दिसंबर,1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को ढहा दिया था। अदालतें उस इमारत को बाबरी मस्जिद करार नहीं देतीं, लिहाजा विवादित ढाँचा शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
 
विध्वंस मुकदमे में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इसे ढहाने के लिए किसी प्रकार की आपराधिक साजिश रची गई? सीबीआई ने इस बारे में अपनी चार्ज शीट में भारतीय दंड संहिता की धारा 120(बी) लगा कर जिस प्रकार 32 व्यक्तियों को अभियुक्त बनाया उसे विशेष अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि उनके विरुद्ध पर्याप्त ठोस सबूत नहीं पाये गये जिससे यह साबित हो सके कि विवादित ढांचे को गिराने के लिए पहले से ही कोई षड्यंत्र रचा गया था। इन सभी पर दो समुदायों के बीच में रंजिश पैदा करने के आरोप भी थे। 
 
बहरहाल आपराधिक साजिश, राष्ट्रीय सद्भाव बिगाड़ने के आरोपों के एक बेहद संवेदनशील मामले में विशेष अदालत ने न्यायिक फैसला सुनाया है, लिहाजा वह दस्तावेजी और ऐतिहासिक है। अब कई भ्रम टूट सकते हैं, कई राजनीतिक कलंक धुल सकते हैं और कुछ कानून की भूमिका पर संतोष जताते हुए राजनीतिक चुप्पी धारण कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने जिस फैसले में रामलला को विवादित भूखंड देने का आदेश दिया था, उसमें विवादित ढांचे को ढहाने की घटना को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक’ करार दिया था।
 
शायद उसी सोच के मद्देनज़र मुस्लिम पक्ष को, मस्जिद बनाने के लिए, 5 एकड़ जमीन देने का भी फैसला सुनाया था। इस नज़रिए से यह अदालती फैसला बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह अयोध्या विवाद का पटाक्षेप करता है। हालांकि इतने सालों के दौरान यह सवाल राजनीति करता रहा कि 6 दिसंबर,1992 की महाघटना क्यों हुई? विवादित ढांचे का विध्वंस एक आपराधिक साजिश थी और वह अपराध किन स्तरों पर हुआ, इसकी विवेचना भी जरूरी थी। इन सालों में सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के दो हिस्सों में हमारी सियासत भी बँट गई थी। आज सब कुछ बेमानी और पूर्वाग्रही लग रहा है। हालांकि विरोधी पक्ष अब भी शांत बैठे गा, ऐसा लगता नहीं। 
 
अतः कुछ राजनीतिक दल यह मांग कर सकते हैं कि सीबीआई को विशेष अदालत के फैसले के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील करनी चाहिए परन्तु अब इसकी कोई सार्थकता नहीं है क्योंकि 6 दिसम्बर, 1992 को हुए इस कांड के साथ ही तत्कालीन केन्द्र की नरसिम्हा राव सरकार ने यह आदेश जारी कर दिया था कि भारत में सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति वही रहेगी जो 15 अगस्त 1947 को अर्ध रात्रि के समय थी। मथुरा की अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के संबंध में याचिका कल खारिज कर दी थी।
 
दरअसल इसके साथ ही अयोध्या और श्रीराम जन्मभूमि से जुड़े तमाम विवादों का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। अतः अब पूरे देश को आगे की तरफ देखना चाहिए और समाज में पूर्ण शांति व भाईचारा बनाये रखने के प्रयासों पर बल देना चाहिए।

R L Francis

R.L. Francis, a Catholic Dalit, lead the Poor Christian Liberation Movement (PCLM), which wants Indian churches to serve Dalits rather than pass the buck to the government. The PCLM shares with Hindu nationalists concerns about conversion of the poor to Christianity. Francis has been writing on various social and contemporary issues.